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Friday, 1 November, 2024
होमदेशपीएम के संबोधन से गायब होने पर कश्मीरी पंडित नाराज़, दोहराई घाटी में केंद्र शासित प्रदेश की मांग

पीएम के संबोधन से गायब होने पर कश्मीरी पंडित नाराज़, दोहराई घाटी में केंद्र शासित प्रदेश की मांग

पन्नू कश्मीर ने कहा कि घाटी के भीतर चंडीगढ़ जैसा एक केंद्र शासित प्रदेश बनें जिसमें आबादी से हिसाब से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को बसाया जा सके.

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नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को देश के नाम एक संबोधन दिया. रात 8 बजे के इस संबोधन में उन्होंने आम तौर पर देश को लोगों और ख़ासतौर पर जम्मू-कश्मीर के लोगों को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने बताया कि कैसे आर्टिकल 370 पर नये क़ानून से राज्य में विकास होगा और कैसे इसकी तस्वीर बदलेगी.

उन्होंने इस प्रयास में पूरे देश से एक साथ आने की अपील की. हालांकि, इस संबोधन में उन्होंने तीन दशक पहले विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों का ज़िक्र नहीं किया. अपने समुदाय का ज़िक्र नहीं होने पर कश्मीरी पंडितों की संस्था पनुन कश्मीर के उप प्रमुख रमेश मनवाटी ने निराशा जताई.

मानवती ने कहा, ‘आर्टिकल 370 पर सरकार ने बहुत अच्छा कदम उठाया है जिसका स्वागत है. जब हमें घाटी से निकाल बाहर फेंका गया तो हमने 1990 में ख़ुद को संगठित किया. 28 दिसंबर 1991 को हमने एक संकल्प पास किया. मार्गदर्शन नाम के इस संकल्प में जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह से पूनर्गठित करने की मांग की गई थी.’

इसमें ये मांग भी की गई थी कि कश्मीरी पंडितों को घाटी के भीतर ही एक केंद्र शासित प्रदेश मिले जिसकी वजह से वहां भारतीय संविधान बिना किसी रुकावट के पहुंच सके. पनुन कश्मीर ने कहा कि जहां तक जम्मू-कश्मीर को व्यापक संदर्भ में देखें जाने का मामला है, तो 370 पर सरकार के कदम का स्वागत है. लेकिन ये महज पहला कदम है.


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संस्था के मुताबिक कश्मीरी पंडितों की समस्या को सुलझाने के लिए एक मज़बूत आधार रखा गया है. जम्मू और लद्दाख़ के लोगों की आज़ादी के समय से ही जो मांग थी वो इस सरकार ने पूरी कर दी. मानवती ने कहा कि लंबे समय से हमारी मांग रही है कि घाटी के भीतर चंडीगढ़ जैसा एक केंद्र शासित प्रदेश हो जिसमें आबादी के हिसाब से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को बसाया जा सके.

उन्होंने कहा कि 370 हटने के पहले कश्मीरी पंडितों को मुस्लिम बहुलवाद का दंश झेलना पड़ा जिसकी वजह से उनका शारीरिक और सांस्कृतिक नरसंहार हुआ और वो अभी भी केंद्र शासित प्रदेश की अपनी मांग पर कायम हैं. जम्मू में भी एक धड़े की मांग है कि उन्हें अलग राज्य मिले. वो कश्मीर के प्रभुत्व में नहीं रहना चाहते.

कश्मीरी पंडितों की संस्था का कहना है, ‘पीएम के संदेश से घाटी के लोगों में अच्छा संदेश जाएगा. एक विस्थापित समुदाय के तौर पर पिछले 30 सालों से हमने निर्वासन झेला है जो देश से निकालने जैसा है. लेकिन पीएम के संबोधन में हमारा कोई ज़िक्र नहीं होना हमें गहरा धक्का पहुंचाया.’

हालांकि, इन्हें उम्मीद है कि भारत सरकार को अभी भी कश्मीरी पंडितों की परवाह है, क्योंकि गृहमंत्री ने संसद में अपने संबोधन के दौरान इनका ज़िक्र किया था. लेकिन इनका कहना है कि नरसंहार झेलने वाले इस सुमदाय के बारे में पीएम मोदी को स्वयं बोलना चाहिए था और भरोसा दिलाना चाहिए था कि इन्हें पुनर्स्थापित किया जाएगा.

पनुन कश्मीर का कहना है, ‘सरकार को कश्मीरी पंडितों की मांग को भी वैसे ही पूरा करना चाहिए जैसे लद्दाख़ियों की मांग को पूरा किया गया. हमारी 5000 साल पुरानी सभ्यता को संरक्षित किया जाना चाहिए.’ पनुन कश्मीर, कश्मीरी पंडितों की एक संस्था है जो 1990 में बनी थी. हर साल की तरह इस साल भी ये संस्था 14 सितंबर को बलिदान दिवस मानाने वाली है जिसमें घाटी में हुई हिंसा में जान गंवाने वाले 1500 से अधिक कश्मीरी पंडितों को याद किया जाएगा.

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