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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेश'बाहरी लोगों को कैसे टारगेट करें', कश्मीर में हत्याओं से पहले लश्कर की शाखा ने सर्कुलेट किया था दस्तावेज

‘बाहरी लोगों को कैसे टारगेट करें’, कश्मीर में हत्याओं से पहले लश्कर की शाखा ने सर्कुलेट किया था दस्तावेज

यह दस्तावेज़ इस बारे में बताता है कि कैसे ‘संशोधित भूमि कानून बिल’, जिसके अनुसार गैर-स्थानीय (बाहरी) लोग भी अब जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं, का ‘विरोध किया जाना चाहिए’.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि अक्टूबर महीने की शुरुआत में कश्मीर में आम नागरिकों की हत्याओं का सिलसिला शुरू होने से ठीक एक महीने पहले लश्कर-ए-तैयबा की एक शाखा, दि रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने एक दस्तावेज़ सार्वजानिक रूप से प्रसारित किया था, जिसमें इस ‘रणनीति’ का उल्लेख किया गया था कि कैसे घाटी में रह रहे बाहरी लोगों स्थानीय और सैन्य रूप से लक्षित एवं बहिष्कृत किया जाए.

विदित हो कि टीआरएफ ने अक्टूबर के पहले सप्ताह में हुई कई हत्याओं की जिम्मेदारी ली है.

सितंबर महीने में मैसेजिंग ऐप टेलीग्राम और वीपीएन-संरक्षित ब्लॉग ‘कश्मीर फाइट’ के माध्यम से जारी किए गए इस ऑनलाइन दस्तावेज़ के अनुसार, टीआरएफ ने न केवल उन नागरिकों को लक्षित करने की धमकी दी थी जो गैर-स्थानीय लोगों को उनके व्यापार में मदद करते हैं, या उन्हें रहने के लिए जगह देते हैं, बल्कि इसमें उन प्रशासनिक अधिकारीयों को भी निशाना बनाये जाने की बात है जो गैर-स्थानीय लोगों को अधिवास प्रमाण पत्र प्राप्त करने में मदद करते हैं.

दिप्रिंट के पास भी इस दस्तावेज़ की एक प्रति उपलब्ध है.

इस बीच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी-एनआईए) ने भी अब इस दस्तावेज़ को संज्ञान में लिया है और उन हैंडल का पता लगाने की कोशिश कर रही है जिनके माध्यम से इसे साझा किया गया था.

सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक सूत्र के अनुसार यह ब्लॉग पहले-पहल पाकिस्तान में प्रकाशित हुआ और फिर इसे कश्मीर के सभी ओवर-ग्राउंड वर्कर्स (आतंकियों की मदद के लिए खुले में काम करने वाले लोग) के बीच डिजिटल रूप से प्रसारित किया गया. इसके बाद यह नए रंगरूटों के बीच भी वितरित किया गया था.


यह भी पढ़ें: नागरिकों की हत्याओं से चिंतित- NIA, जम्मू-कश्मीर पुलिस का आतंकियों के सहयोगियों पर शिकंजा, 800 हिरासत में


यह दस्तावेज़ इस बारे में बताता है कि कैसे ‘संशोधित भूमि कानून बिल’, जिसके अनुसार गैर-स्थानीय (बाहरी) लोग भी अब जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं, का ‘विरोध किया जाना चाहिए’.

इसमें लिखा है, ‘जिन गैर-स्थानीय लोगों को नया अधिवास प्रमाण पत्र प्रदान किया गया है, उन्हें जम्मू-कश्मीर का दुश्मन माना जाना चाहिए और वह अपने जीवन के लिए खुद जिम्मेदार होंगे.’

यह दस्तावेज कश्मीर के सभी स्थानीय लोगों को इस बारे में ‘सतर्क रहने’ के लिए कहता है कि ‘गैर-स्थानीय लोगों को, विशेष रूप से उन लोगों को जो किसी भी स्थानीय व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की उद्यम स्थापित करना चाहते हैं, कोई भी भूखंड प्रदान नहीं किया जा सके.

यह दस्तावेज ‘कश्मीर में चल रहे संघर्ष के विरुद्ध गतिविधियों’ में शामिल जम्मू-कश्मीर पुलिसकर्मियों को भी दुश्मन के रूप में मानता है और उनसे इसी तरह का व्यवहार करने की बात करता है’.

ओपन ग्राउंड वर्कर्स को हिरासत में लेने के लिए एनआईए द्वारा हाल ही में की गई छापेमारी के बारे में बात करते हुए यह दस्तावेज़ कहता है कि ‘इन सभी से पूरी सख्ती के साथ निपटा जाएगा’.

इसमें लिखा गया है, ‘जो कोई भी इन एनआईए अधिकारियों की सहायता कर रहा है, उसको ढूंढ़ कर मारा जायेगा. हमारे सशस्त्र और प्रतिरोध समूहों को इन एजेंसियों के उन सभी संसाधनों के माध्यम से लक्षित करना चाहिए जो उनके पास उपलब्ध हैं.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा ‘स्थानीय लोगों का समर्थन जुटाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है’.

इस सूत्र का कहना है, ‘यह एक हताशा भरा कदम है और वे लंबे समय से इस रणनीति का पालन कर रहे हैं. उनके लिए गैर-स्थानीय लोग आसान लक्ष्य होते हैं. उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के बाद भी इसी तरह की रणनीति का सहारा लिया था और तब सेब मंडियों में काम करने वाले कई मजदूरों को गोली मार दी थी. इस ऑपरेशन की सफलता के लिए सभी सुरक्षा एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं और 800 से भी ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया है. चूंकि ये लोग अपने कमांडरों के मुठभेड़ों में मारे जाने के बाद अब नेतृत्वहीन हो चुके हैं, अतः स्वयं को सुरक्षा बलों पर हमला करने में असमर्थ रहे हैं और नतीजतन हताश हो रहे हैं. इसलिए, गैर-स्थानीय लोगों पर ये हमले किये जा रहे हैं.’

‘दुश्मनों की सूची’ में शामिल है अधिकारी, पुलिसकर्मी

इस दस्तावेज़ के अनुसार, सभी कश्मीरियों द्वारा गैर-स्थानीय लोगों को ‘अस्वीकार’ किया जाना चाहिए, और जो कोई भी उनकी मदद करने की कोशिश करेगा वह ‘दुश्मनों की सूची’ में शामिल हो जायेगा.

यह कहता है, ‘जो कोई भी किसी गैर-स्थानीय व्यक्ति को जमीन आवंटित करने में शामिल पाया जायेगा, उसे कश्मीर का दुश्मन माना जाएगा. वे अधिकारी भी, चाहे वे कोई भी हों, चाहे वे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते हैं या फाइलों को आगे बढ़ाते हैं, वे भी इस दुश्मनी वाली सूची की जद में आएंगे.’

इसमें यह भी कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के कर्मियों को कश्मीरियों के खिलाफ अभियान वाली गतिविधियों को अंजाम देने के लिए ‘इनाम’ का लालच दिया गया’ है, और इस वजह से इसके कर्मी भी निशाने पर हैं.

इस दस्तावेज़ में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि ‘आक्रमणकारी ताकतों, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर पुलिस, की संपत्तियों को निशाना बनाया जाये, खास तौर पर उन लोगों को लक्षित करते हुए जो सक्रिय रूप से कश्मीर के संघर्ष के विरुद्ध हो रही गतिविधियों में भाग ले रहे हैं’.

इसमें घाटी में कार्यरत आईपीएस और आईएएस अधिकारियों के घरों पर हमले की भी बात की गई है.

इसमें लिखा गया है, ‘अगर रणनीति की मांग होती है, तो कश्मीर में चल रहे प्रतिरोध वाले संघर्ष को कश्मीर से बाहर भी ले जाया जायेगा, विशेष रूप से भारत के उन हिस्सों में जहां से वे आईपीएस और आईएएस अधिकारी आते हैं जो घाटी में काम कर रहे हैं. जब इन क्रूर आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के अपने परिवेश (उनके रहने के वास्तविक स्थान के आसपास का क्षेत्र) में खून बहाया जायेगा, तभी इन क्रूर अधिकारियों को स्थानीय कश्मीरियों का दर्द महसूस होगा.‘

‘गैर स्थानीय लोगों के कालेज में दाखिले का विरोध’

दस्तावेज़ आगे कहता है कि (कश्मीर के) शिक्षा संस्थानों में गैर-स्थानीय लोगों के प्रवेश का ‘पुरजोर और हरसंभव विरोध किया जाना चाहिए’.

इसमें लिखा गया है, ‘आधिपत्यवादी भारतीय शासन तंत्र ने अपने शातिर और कश्मीर विरोधी मंसूबों के तहत विश्वविद्यालयों और कालेजों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. उन्होंने इन संस्थानों में गैर-स्थानीय छात्रों और यहां तक कि गैर-स्थानीय कर्मचारियों को भी दाखिल करना शुरू कर दिया है (केंद्रीय विश्वविद्यालय में चुने गए लगभग 85% छात्र गैर-कश्मीरी हैं). इसलिए छात्र संगठनों के स्तर पर कश्मीर के वास्ते इस तरह के चयनों अथवा दाखिलों का पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए. सशस्त्र संघर्ष के स्तर पर भी इस तरह के दाखिलों का विरोध किया जाएगा.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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