नई दिल्ली: 5 अगस्त को धारा 370 हटाए जाने की पहली बरसी से पहले ही कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ों की संख्या में, अचानक उछाल आ गया है.
कुल मिलाकर, इस साल 30 जुलाई तक 148 दहशतगर्द ढेर किए जा चुके हैं. जिनमें से 116 दहशतगर्द अप्रैल के बाद से मारे गए हैं. इसके मुकाबले 5 अगस्त 2019 से अप्रैल 2020 के बीच, आठ महीनों में ये संख्या केवल 49 थी.
ये संख्या दिखाती है कि दहशतगर्दी जम्मू-कश्मीर में अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है जैसे कि ये उससे पहले थी, जब राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म किया गया और उसे दो केंद्र-शासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़- में बांट दिया गया.
पिछले साल में कामयाबियां
रक्षा और सुरक्षा अनुष्ठानों के सूत्रों ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में आतंकी नेटवर्क पर बहुत गहरी चोट पहुंची है. चूंकि कार्रवाईयों में उसके नेतृत्व का सफाया कर दिया गया है.
एक सूत्र का कहना था कि सुरक्षा बलों का ‘अंदरूनी इलाक़ों में दबदबा; क़ायम होने से आतंकी संगठनों की कमर टूट गई है, जिसके नतीजे में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की उनकी क्षमता में कमी आई है.’
इस साल 30 जुलाई तक दहशतगर्दी से जुड़ी 70 मामूली घटनाओं की ख़बरें आईं हैं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में ये संख्या 107 थी.
इसके अलावा, सूत्रों ने बताया कि ख़ुफिया एजेंसियों की सक्रियता और ज़मीन पर सुरक्षा बलों की सतर्कता के चलते चालू साल में आईईडी धमाकों की 6 कोशिशें नाकाम की गईं.
उन्होंने ये भी कहा कि ठोस ख़ुफिया जानकारी के आधार पर, समन्वय के साथ चलाए गए आतंक विरोधी अभियानों के नतीजे में पिछले एक साल में काफी कामयाबियां हासिल हुई हैं.
सेना के एक सूत्र ने बताया, ‘इस साल मारे जाने वाले लोगों में, 14 पाकिस्तानी आतंकी, और एचएम, जेईएम व एलईटी के सीनियर लीडर शामिल थे. स्थानीय भर्ती भी घट रही है और ये मुख्य रूप से साउथ कश्मीर के चार ज़िलों तक सिमट गई है, जिससे आंदोलन को देसी रंग देकर घाटी में अशांति फैलाने के पाकिस्तान के घिनौने मंसूबों को गहरी चोट पहुंची है.’
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि कश्मीर घाटी में दहशतगर्दों की तादाद अब 200 से कम रह गई है.
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सेना के सूत्र ने कहा, ‘दहशतगर्दों को सक्रिय रूप से निष्क्रिय करके डोडा क्षेत्र में हिंसा फैलाने के प्रयास भी नाकाम कर दिए गए. अगस्त 2019 के बाद से डोडा और किश्तवाड़ में सात दहशतगर्द ढेर किए जा चुके हैं.’
आंकड़ों में सुरक्षा स्थिति
पिछले साल 5 अगस्त को धारा 370 रद्द करने से पहले केंद्र ने जम्मू-कश्मीर में अतिरिक्त बल तैनात कर दिए थे. एक अनुदार अनुमान के अनुसार भी अतिरिक्त बलों की संख्या 60,000 के क़रीब थी.
सिक्योरिटी पर ध्यान इतना ज़्यादा था, कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने तक़रीबन दो हफ्ते तक घाटी में डेरा डालकर सारे बंदोबस्त ख़ुद देखे.
कुछ ख़ास इलाक़ों तक सीमित छुटपुट प्रदर्शनों को छोड़कर स्थिति उम्मीद से अधिक शांत बनी रही, जिसकी एक बड़ी वजह सुरक्षा कर्मियों की भारी मौजूदगी थी.
चूंकि आतंकवाद और इंसर्जेंसी विरोधी कार्रवाईयों की बजाय फोकस अब क़ानून व्यवस्था बनाए रखने पर था, इसलिए धारा 370 हटाए जाने के बाद, सुरक्षा बलों की कार्रवाईयों में कमी आ गई. ज़्यादा कार्रवाईयां करके सरकार शांति बिगड़ने का ख़तरा मोल नहीं लेना चाहती थी.
अगस्त और दिसम्बर 2019 के बीच, 25 दहशतगर्द मार गिराए गए, जिससे 2019 में मारे गए दहशतगर्दों की कुल संख्या 152 हो गई.
इस साल 3 मार्च तक तक मारे गए आतंकवादियों की कुल संख्या 32 थी, लेकिन उसके बाद इसमें उछाल आया, जिससे 148 पहुंच गई, जैसा कि पहले बताया गया है.
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भर्ती के मामले में, 2018 में 219 स्थानीय लोग आंतकी संगठनों में शामिल हुए थे, ये संख्या 2019 में घटकर 119 आ गई. इस साल 30 जून तक, कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के बावजूद ये संख्या 74 थी.
बेहतर पकड़
सेना की 15 कोर के पूर्व कमांडर ले. जन. (रिटा) सतीश दुआ, जिनके चार्ज में हिज़्बुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी मारा गया था, ने कहा कि सुरक्षा के नज़रिए से, आतंकी ढांचे पर बलों की पकड़ अब ज़्यादा मज़बूत है.
उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि पुलिस और सीआरपीएफ जैसे सुरक्षा बलों के हाथ, आज पहले के मुक़ाबले ज़्यादा खुले हैं. पहले, सियासी दख़लअंदाज़ी बहुत होती थी.’
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