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Saturday, 29 June, 2024
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कैसे भारत-पाकिस्तान तनाव और कूटनीतिक गतिरोध के बावजूद करतारपुर कॉरिडोर वार्ता जारी रही

भारत और पाकिस्तान के बीच 24 अक्टूबर, 2018 को गृह मंत्रालय और पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के बीच करतारपुर कॉरिडोर के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.

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नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर 2018 को करतारपुर कॉरिडोर को  मंजूरी दी थी. यह पंजाब के गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा दीपक मंदिर के साथ पाकिस्तान के करतारपुर गांव में गुरुद्वारा दरबार साहिब को जोड़ेगा.

भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच बहुत विचार-विमर्श और कूटनीतिक बाधाओं के एक साल बाद करतारपुर कॉरिडोर को आखिरकार 9 नवंबर को एक भव्य समारोह में खोला जाएगा.

करतारपुर साहिब सिखों के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है और इसकी तीर्थ यात्रा करना समुदाय द्वारा धार्मिक कर्तव्य माना जाता है. लेकिन विभाजन के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण स्थिति ने भारतीय तीर्थ यात्रियों को इसके लिए लगभग असंभव बना दिया था.

नवजोत सिंह सिद्धू का कमर जावेद बाजवा को सुझाव

फरवरी 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अंतरराष्ट्रीय सीमा के उस पार सड़क बनाकर दोनों धर्म स्थलों को जोड़ने वाले कॉरिडोर का प्रस्ताव रखा था, जो कि एक-दूसरे के विपरीत है. यह प्रस्ताव वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा के दौरान उनके तत्कालीन पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ के साथ एक शांति पहल के रूप में किया गया था.

बाद में, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी 2005-06 के आस-पास पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ इस मुद्दे को उठाया, लेकिन इस्लामाबाद वार्ता को आगे बढ़ाने में विफल रहा.

अगस्त 2018 में सत्ता में आने के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने पद संभालने के तुरंत बाद कॉरिडोर के योजनाओं को फिर नवीकृत किया. यह सब तब शुरू हुआ जब कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए. सिद्धू ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के साथ भारतीय सिख समुदाय की करतारपुर आने की इच्छा के बारे में बात की थी.


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बाद में, इमरान खान ने पिछले साल 28 नवंबर को कॉरिडोर की आधारशिला रखी. 12 नवंबर 2019 को गुरु नानक की 550 वीं जयंती तक इसे तैयार करने का वादा किया था. इसके पहले, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 26 नवंबर को डेरा बाबा नानक स्थल पर आधारशिला की भी रखी थी.

चित्रण : अरिंदम मुख़र्जी/ दिप्रिंट

कॉरिडोर को एक सड़क लिंक और एक पुल के रूप में प्रस्तावित किया गया था, जिससे सभी धर्मों के तीर्थ यात्रियों को धर्मस्थल की यात्रा करने की अनुमति मिल सके. शुरू में केवल सिख तीर्थ यात्रियों के लिए खोला जाना था, लेकिन भारत ने बाद में जोर देकर कहा कि गलियारे को सभी धर्मों के लोगों को अनुमति दी जानी चाहिए.

4.19 किमी लंबे कॉरिडोर पर काम 13 दिसंबर 2018 को शुरू हुआ. इसके अलावा, लैंड पोर्ट अथॉरिटी द्वारा लगभग 50 एकड़ के क्षेत्र में एक अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल बिल्डिंग और एक इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (आईसीपी) का निर्माण भी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर किया जा रहा है.

गृह मंत्रालय और पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के बीच 24 अक्टूबर 2019 को कॉरिडोर के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया.

पुलवामा, बालाकोट, धारा 370 के बावजूद करतारपुर वार्ता जारी रही

कॉरिडोर पर बात उस समय शुरू हुई जब दो परमाणु-सशस्त्र राष्ट्रों के बीच तनाव संभवतः अपने चरम पर था. पिछले एक वर्ष में, जब से भारत और पाकिस्तान ने गलियारे के लिए आधारशिला रखी है, ऐसे कई मौके आए, जब दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया और कॉरिडोर की योजनाओं को पटरी से उतारने की धमकी दी गई.

इस साल 14 फरवरी के बाद सबसे बड़ा खतरा तब आया जब जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद द्वारा किए गए आतंकवादी हमले में सीआपीएफ के 40 जवान मारे गए थे. भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में 26 फरवरी को हवाई हमले किए, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद शिविरों को निशाना बनाया गया था.

जबकि भारत सितंबर 2016 से (उरी आतंकी हमले के बाद) तीन साल से अधिक समय से पाकिस्तान के साथ किसी भी बातचीत में शामिल नहीं था. जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म वाले अनुच्छेद 370 और 35ए के समाप्त होने के बाद तनाव एक अलग स्तर पर पहुंच गया और साथ ही राज्य का विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों में हो गया.

इस्लामाबाद ने भारत को परमाणु युद्ध की धमकी दी, यहां तक कि उसने नई दिल्ली पर यथास्थिति की बहाली के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की भी कोशिश की.


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पाकिस्तान ने अपने सहयोगी चीन से समर्थन जुटाने की कोशिश की थी, जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में इस मुद्दे पर आतंरिक चर्चा की थी. पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ वाशिंगटन में बात की थी. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच ‘मध्यस्थता’ की पेशकश की थी.

हालांकि, तनाव के बावजूद करतारपुर कॉरिडोर पर वार्ता दोनों सरकारों के बीच जारी रही और इमरान खान की अगुवाई वाली सरकार ने भारत के साथ राजनयिक संबंधों को बिगाड़ कर अगस्त में पाकिस्तान के भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया को हटा दिया था.

करतारपुर कॉरिडोर का जन्म

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने अपने अंतिम 18 साल पाकिस्तान के करतारपुर गांव में उपदेश और खेती के काम में बिताया था. उनकी मृत्यु के बाद वहां बने गुरुद्वारे को बाढ़ ने नष्ट कर दिया गया था और फिर इसे 1920 में पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह (पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दादा) ने बनाया था.

सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पिछले दिसंबर में पंजाब विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करके उस क्षेत्र के साथ भारत में जमीन के एक टुकड़े के आदान-प्रदान करने की मांग की थी, जिस पर करतारपुर साहिब स्थित है. इस प्रस्ताव को पाकिस्तान ने खारिज कर दिया था.

हालांकि, यह पहली बार नहीं था, जब भारत ने इस तरह का कदम उठाया था. 1969 में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी गुरु नानक की 500वीं जयंती पर इसी तरह का एक प्रस्ताव पेश किया था और पंजाब सरकार से भी यही वादा किया था. यह विभाजन के बाद से सिख समुदाय की मांग थी.

1948 में अकाली दल ने भी ननकाना साहिब और करतारपुर की भूमि को मिलाते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था. 1959 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और प्रमुख खालसा दीवान ने भी मांग उठाई थी कि भारत को गुरुद्वारा की जमीन वापस दिलानी चाहिए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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