बेंगलुरु, 25 नवंबर (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
याचिका में जिन प्रावधानों को चुनौती दी गई है, उनमें गैर सहायता प्राप्त स्कूलों में नियुक्ति में आरक्षण और राज्य सरकार द्वारा पाठ्यक्रम का निर्धारण करना शामिल है।
सरकार के कोई भी आपत्ति दर्ज कराने में विफल रहने के बाद उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
कर्नाटक के निजी स्कूलों ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का रुख करते हुए खुद पाठ्यपुस्तकों का मसौदा तैयार करने की अनुमति मांगी है।
‘कर्नाटक अनएडेड स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन’ (केयूएसएमए) की ओर से दायर याचिका में कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है। याचिका में निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल के लिए पाठ्यपुस्तकें और पढ़ाए जाने वाले विषयों के चयन में राज्य सरकार का दखल रोकने का अनुरोध किया गया।
केयूएसएमए की याचिका में कर्नाटक शिक्षा कानून के कई अन्य प्रावधानों को भी चुनौती दी गई है। निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों और शिक्षेतर कर्मचारियों की नियुक्ति में आरक्षण के प्रावधान वाली धारा को असंवैधानिक बताते हुए उसे हटाए जाने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में राज्य सरकार को बच्चों के मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को लागू नहीं करने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया, जिसमें निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में कमजोर वर्गों व वंचित समूहों के लिए सीट आरक्षित करने का प्रावधान है।
याचिका में दलील दी गई है कि बच्चों के मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के संबंध में केंद्रीय कानून है, इसलिए इस विषय पर राज्य कानून की कोई जरूरत नहीं है।
याचिका पर बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने सुनवाई की।
केयूएसएमए के वकील के. वी. धनंजय ने कर्नाटक सरकार की पाठ्य पुस्तकों में सावरकर के जिक्र को लेकर हाल ही में हुए विवाद का भी जिक्र किया। उन्होंने 1984 के सिख दंगों का भी जिक्र किया और कहा कि सिख स्कूल भी उन्हें नहीं पढ़ा सकते।
इसके बाद खंडपीठ ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
भाषा
अविनाश नरेश
नरेश
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