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Thursday, 9 May, 2024
होमदेशडिमोलिशन के विरोध के बाद सार्वजनिक स्थलों पर अवैध मंदिरों को बचाने के लिए कर्नाटक ने पेश किया विधेयक

डिमोलिशन के विरोध के बाद सार्वजनिक स्थलों पर अवैध मंदिरों को बचाने के लिए कर्नाटक ने पेश किया विधेयक

बोम्मई की बीजेपी सरकार का ये क़दम ऐसे समय आया है, जब मैसूरू में मंदिर गिराने के बाद हिंदू समूहों ने सरकार की आलोचना की थी. बिल में मौजूदा अवैध मंदिरों को संरक्षण दिया गया है, लेकिन नए मंदिर बनाने पर रोक लगा दी गई है.

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बेंगलुरू: कर्नाटक मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने सोमवार को एक विधेयक पेश किया, जिसका उद्देश्य राज्य में अवैध धार्मिक ढांचों को बचाना है. राज्य सरकार मैसूरू के नंजनगुड में एक मंदिर गिराए जाने से पैदा हुए रोष को शांत करने की कोशिश में ये क़दम उठा रही है.

कर्नाटक धार्मिक संरचना (संरक्षण) विधेयक 2021, को पारित करने का उद्देश्य सरकार को सार्वजनिक स्थलों पर खड़े ‘अवैध’ धार्मिक ढांचों के संरक्षण का अधिकार प्रदान करना है. विधेयक के अंतर्गत नियम तब तय किए जाएंगे, जब ये कर्नाटक विधायिका के दोनों सदनों से पारित हो जाएगा. विधेयक में सार्वजनिक स्थानों पर भविष्य में धार्मिक ढांचों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है.

बिल जिसकी एक प्रतिलिपि दिप्रिंट के पास है, की मंशा ये है कि जिस दिन से वो प्रभावी होगा, उस दिन जो भी धार्मिक ढांचे मौजूद हैं, उनके संरक्षण के लिए सभी मौजूदा क़ानून, किसी भी कोर्ट, ट्रिब्युनल या प्राधिकरण के फैसले या आदेश दरकिनार कर दिए जाएंगे. अभी तय किए जाने वाले नियमों में, संरक्षण के पात्र धार्मिक ढांचों की पहचान के लिए, मानदंड भी परिभाषित किए जाएंगे. लेकिन संरक्षण के नियम किसी भी अदालत में लंबित मामलों पर लागू नहीं होंगे.

ये क़दम उठाए जाने से एक दिन पहले, सीएम बोम्मई ने बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में कथित रूप से कहा, कि उनकी सरकार नंजनगुड मंदिर को गिराए जाने के बाद सुधारात्मक उपाय करेगी. 8 सितंबर को मैसूरू के नंजनगुड में, एक मंदिर को गिराए जाने पर हंगामा खड़ा हो गया था, जिसमें विपक्ष और हिंदू-समर्थक संगठनों ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधा था. इसके बाद बोम्मई ने डिमोलिशन अभियान को रोक दिया था, जो सार्वजनिक स्थलों पर सभी अतिक्रमणों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों, और कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्देशों पर चलाया गया था.


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बिल की मंशा क्या है

बिल का उद्देश्य 1,000 से अधिक अवैध रूप से निर्मित धार्मिक ढांचों (मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे, बौद्ध विहार आदि) को संरक्षण देना है, जो 2009 के बाद वजूद में आए जब सुप्रीम कोर्ट ने, सार्वजनिक स्थलों से सभी अतिक्रमण हटाने का आदेश जारी किया था.

विधेयक के लिए उद्देश्यों और कारणों के विवरण में कहा गया है, ‘सांप्रदायिक सदभाव बनाए रखने, और लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचाने के लिए, आवश्यक समझा जा रहा है कि इस अधिनियम के लागू होने से पहले, किसी सार्वजनिक स्थल पर बने हुए धार्मिक निर्माणों को संरक्षण दिया जाए’.

उसमें आगे कहा गया है कि उसका उद्दे श्य, भविष्य में सार्वजनिक स्थलों पर अनाधिकृत धार्मिक ढांचों और निर्माणों पर प्रतिबंध लगाना है. विधेयक के पीछे मंशा ये भी है कि सरकार और उसके अधिकारियों को, अधिनियम को लागू करने के लिए क़ानूनी मुक़दमों, और अदालती कार्यवाही से बचाया जाए. जिन ढांचों को बिल के अंतर्गत संरक्षित करने का इरादा है, वित्तीय ज्ञापन में भी उनकी पहचान ‘अवैध’ के रूप में की गई है.

बिल में ये भी अनुमति दी गई है, कि ज़िला प्रशासन के दायरे में ऐसे संरक्षित ढांचों के अंदर, धार्मिक गतिविधियों को अंजाम दिया जा सकता है. अंत में, इसमें कहा गया है कि एक्ट के अंतर्गत बने हर नियम को, स्वीकृत या रद्द किए जाने के लिए, कर्नाटक विधायिका के दोनों सदनों के समक्ष लाया जाना चाहिए.

विधेयक के साथ नत्थी ज्ञापन में कहा गया है, कि ‘राज्य सरकार को अधिकार दिया जाता है कि वो उन तरीक़ों और शर्तों को तय करे, जिनके तहत इस अधिनियम के लागू होने के दिन मौजूद धार्मिक ढांचों को संरक्षण दिया जाएगा’.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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