बेंगलुरु, चार अगस्त (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बेंगलुरु की एक दीवानी अदालत द्वारा जारी उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें यूट्यूब चैनलों सहित मीडिया मंचों को पिछले दो दशकों में धर्मस्थल में कथित तौर पर यौन उत्पीड़न और हत्या के पीड़ितों को सामूहिक रूप से दफनाने की रिपोर्टिंग करने से रोक दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने निचली अदालत को मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए यूट्यूब चैनल ‘कुडला रैम्पेज’ द्वारा दायर उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें आठ जुलाई को जारी एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा को चुनौती दी गई थी। दीवानी अदालत के पहले के आदेश में धर्मस्थल मंजूनाथस्वामी मंदिर का प्रबंधन करने वाले परिवार को लक्षित करने वाली किसी भी ‘‘अपमानजनक सामग्री’’ से प्रकाशन पर रोक लगा दी गयी थी।
उच्च न्यायालय ने फैसला दिया, ‘‘निचली अदालत द्वारा जारी एकपक्षीय निषेधाज्ञा निरस्त की जाती है। नए सिरे से सुनवाई के लिए मामले को सक्षम अदालत के पास भेजा जाता है। निचली अदालत इस आदेश में निहित निर्देशों और टिप्पणियों को ध्यान में रखे।’’
न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय ने मामले के दीवानी या फौजदारी पहलुओं पर या पक्षकारों द्वारा उठाए गए तर्कों और प्रतिवादों पर कोई रुख नहीं अपनाया है। निचली अदालत से इस मामले पर बिना देरी किए हुए निर्णय देने को कहा गया है।
धर्मस्थल धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े के भाई हर्षेंद्र कुमार डी ने निचली अदालत से यह आदेश प्राप्त किया था। कुमार ने समाचारों, सोशल मीडिया सामग्री और वीडियो वाले 8,000 से ज़्यादा डिजिटल लिंक हटाने का अनुरोध किया था और उन्होंने आरोप लगाया था कि यह उनके, उनके परिवार और मंदिर प्रशासन के लिए अपमानजनक हैं।
उच्च न्यायालय के निर्देश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कुडला रैम्पेज के वकील ए. वेलन ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता के लिए मील का पत्थर बताया।
वेलन ने एक बयान में कहा, ‘‘कर्नाटक उच्च न्यायालय ने न केवल एक फैसला सुनाया है, बल्कि इसने हमारे लोकतंत्र की आधारशिला को फिर से स्थापित किया है।’’
भाषा गोला अविनाश
अविनाश
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