नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को राहत देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले को सोमवार को खारिज कर दिया, जिसके तहत कथित अवैध लौह अयस्क निर्यात से जुड़े मामले में एक कंपनी और अन्य के खिलाफ 2013 में दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया गया था।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय की धारवाड़ पीठ से मेसर्स एमएसपीएल लिमिटेड और अन्य द्वारा कथित तौर पर निर्यात किए गए लौह अयस्क की मात्रा को छोड़कर कुछ आरोपों को लेकर मामले पर नए सिरे से फैसला करने को कहा।
इसने कहा, ‘‘हमने (उच्च न्यायालय के) फैसले को रद्द कर दिया है। सभी पक्षों को तीन फरवरी, 2025 को उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया जाता है। हमने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।’’
पीठ उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना के 12 दिसंबर के फैसले के खिलाफ सीबीआई की 11 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने लौह अयस्क के अवैध निर्यात से जुड़े मामले में सीबीआई द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया था। उन्होंने कहा था कि सीबीआई का एम/एस एमएसपीएल लिमिटेड और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज करना तथा आरोपपत्र दाखिल करना कानून के विपरीत था।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि शीर्ष अदालत ने वैध परमिट के बिना 50,000 मीट्रिक टन से अधिक लौह अयस्क के निर्यात से जुड़े मामलों की जांच करने का अधिकार सीबीआई को दिया है।
इसने कहा था कि कंपनी के खिलाफ दायर आरोपपत्र में कथित कुल मात्रा 39,480 मीट्रिक टन बताई गई थी, जो शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित सीमा से कम थी।
उच्च न्यायालय ने माना था कि मामला दर्ज करना या आरोपपत्र दाखिल करना सीबीआई के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। हालांकि, इसने कहा था कि इसका मतलब यह नहीं है कि एमएसपीएल लिमिटेड के खिलाफ जांच नहीं की जा सकती।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार 50,000 मीट्रिक टन सीमा से नीचे वाले मामलों के लिए कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है।
भाषा पारुल नेत्रपाल
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