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Monday, 6 May, 2024
होमदेशरेप के बाद सो जाना भारतीय नारी को शोभा नहीं देता- अग्रिम ज़मानत देते हुए हाईकोर्ट की टिप्पणी

रेप के बाद सो जाना भारतीय नारी को शोभा नहीं देता- अग्रिम ज़मानत देते हुए हाईकोर्ट की टिप्पणी

ज़मानत देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने, शिकायतकर्ता के ये सफाई न दे पाने को भी नोट दिया, कि कथित अपराध के दिन वो रात 11 बजे ऑफिस क्यों गई, और ड्रिंक्स लेने पर एतराज़ क्यों नहीं किया.

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नई दिल्ली: बलात्कार, धोखाधड़ी और आपराधिक धमकी के एक आरोपी को अग्रिम ज़मानत देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस बात को नोट किया है कि ‘किसी भारतीय नारी को शोभा नहीं देता’ कि ‘बलात्कार’ किए जाने के बाद वो सो जाए.

न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने उपरोक्त बात मंगलवार को कही, जब वो आरोपी रमेश बी की याचिका पर उसे अग्रिम ज़मानत दे रहे थे, जिसके लिए आरोपी को एक लाख रुपए का बांड और इतनी ही राशि की दो ज़मानतें देनी थीं.

अपने आदेश में ज़मानत के कारण बताते हुए, जज ने नोट किया कि ‘अपराध हो जाने के बाद’ शिकायतकर्ता का सो जाने का दावा, चूंकि वो थक गई थी, ‘किसी भारतीय नारी को शोभा नहीं देता’.

अपने संक्षिप्त आदेश में जज ने कहा, ‘बलात्कार हो जाने पर हमारी महिलाओं का व्यवहार इस तरह का नहीं होता’.

ज़मानत के आदेश में एक कारण ये भी दिया गया है कि शिकायतकर्ता ये सफाई नहीं दे पाई कि कथित अपराध के दिन वो रात 11 बजे ऑफिस क्यों गई थी, और उसने अभियुक्त के साथ ‘ड्रिंक्स’ लेने पर एतराज़ क्यों नहीं किया.

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इस बीच कोर्ट ने 6 शर्तें लगाई हैं जिनका अभियुक्त को ज़मानत के दौरान पालन करना होगा. आदेश के अनुसार, एक शर्त का उल्लंघन होने पर भी ज़मानत रद्द कर दी जाएगी.

अभियुक्त बिना इजाज़त ट्रायल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकता जहां उसका मुक़दमा सुना जाना है, और उसे महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को, पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा.


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‘उसने याचिकाकर्ता के साथ ड्रिंक्स लेने पर एतराज़ नहीं किया’

सरकारी वकील ने ज़मानत याचिका का ज़ोरदार विरोध किया और कहा कि अभियुक्त पर लगाए गए इल्जाम गंभीर हैं, और इस बात को साबित करने के लिए काफी तथ्य हैं कि उसने इस कथित अपराध को अंजाम दिया था.

प्रॉसीक्यूटर ने दलील दी कि अपराधी को अग्रिम ज़मानत देना ‘समाज के लिए सुरक्षित नहीं होगा’ और उसकी याचिका ख़ारिज कर देनी चाहिए.

लेकिन जज ने माना कि केवल अपराध की ‘गंभीरता’, किसी नागरिक को ज़मानत से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती, ख़ासकर, जब पुलिस ‘पहली नज़र में’ कोई ठोस केस नहीं बना पाई है.

जज ने कहा, ‘केस के हालात को देखते हुए इस स्टेज पर, शिकायतकर्ता की इस बात का यक़ीन करना मुश्किल है कि उसके साथ शादी का झांसा देकर रेप किया गया’.

उन्होंने शिकायतकर्ता की इस बात पर भी सवाल उठाए कि वो पहले कोर्ट क्यों नहीं आईं, जब अभियुक्त ने कथित रूप से ‘उस पर सेक्स के लिए ज़ोर डाला था’.

जज ने नोट किया, ‘शिकायतकर्ता ने इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया कि वो रात 11 बजे अपने ऑफिस क्यों गई; उसने अभियुक्त के साथ ड्रिंक्स लेने पर भी एतराज़ नहीं किया और अभियुक्त को सुबह तक अपने साथ ठहरने दिया; शिकायतकर्ता की ये सफाई कि अपराध किए जाने के बाद वो थककर सो गई थी, एक भारतीय नारी को शोभा नहीं देती; बलात्कार हो जाने पर हमारी महिलाओं का व्यवहार इस तरह का नहीं होता’.

इसके अलावा, मौजूदा कोविड-19 संकट को देखते हुए, कोर्ट ने ये भी नोट किया कि क़ैदियों को संक्रमण का ख़तरा है. याचिकाकर्ता की दलील को स्वीकार करते हुए, कोर्ट ने इस सिद्धांत को लागू किया कि ‘बेल एक नियम है, और इंकार एक अपवाद है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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