बेंगलुरू, 11 जून (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि बाल यौन पीड़ितों को अदालत में गवाही देने के लिए बार-बार बुलाए जाने से रोकने वाला पॉक्सो अधिनियम का प्रावधान पीड़िता के 18 वर्ष की आयु पार करने के बाद, ‘कमजोर हो जाता है।’
इसके साथ ही अदालत ने उस पीड़िता को निचली अदालत में जिरह के लिए फिर से बुलाए जाने की अनुमति दे दी है, जो कथित अपराध के समय नाबालिग थी।
पीड़िता की उम्र जनवरी 2019 में 15 साल थी, जब यह कथित अपराध हुआ था।
अदालत ने कहा कि जब कथित अपराधी ने 28 मार्च, 2022 को पीड़ता को जिरह के लिए वापस बुलाने की अर्जी दायर की, तब उसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक हो गई थी।
पीड़िता की मां ने अपने भाई के बेटे के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अप्रैल 2018 में, “जब माता-पिता घर पर नहीं थे, तो आरोपी ने पीड़िता के साथ छेड़खानी की थी।” आरोपी ने पीड़िता को धमकी दी थी कि अगर उसने अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताया तो वह उसकी आपत्तिजनक तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर देगा।
मामले के गवाहों में से एक, पीड़िता के पिता ने खुद निचली अदालत में गवाही दी थी कि पीड़िता का कोई यौन उत्पीड़न नहीं किया गया था। इसके बाद, आरोपी ने लड़की को जिरह के लिए वापस बुलाने की मांग की थी। निचली अदालत ने इस अर्जी को ठुकरा दिया था, जिसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी थी।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने अपने हालिया फैसले में कहा कि धारा 33(5) का मतलब यह नहीं है कि आरोपी को मुकदमे में जिरह के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, खासकर, जहां अपराध दस साल से अधिक के कारावास के प्रावधान वाला हो। दूसरा कारण लड़की की उम्र थी।
अदालत ने कहा, ‘‘एक बार जब पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक हो जाती है, तो अधिनियम की धारा 33 (5) की कठोरता कम हो जाती है।’’
भाषा सुरेश दिलीप
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