बेंगलुरु, 21 अगस्त (भाषा) कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने विपक्षी दलों की मांग को स्वीकार करते हुए भीड़ नियंत्रण विधेयक को विस्तृत चर्चा एवं समीक्षा के लिए सदन की समिति के पास भेजने को लेकर बृहस्पतिवार को सहमति जताई।
विपक्षी दलों ने चिंता व्यक्त की कि प्रस्तावित कानून से विरोध प्रदर्शनों और सांस्कृतिक एवं धार्मिक आयोजनों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
कर्नाटक सरकार ने भीड़ नियंत्रण विधेयक बुधवार को पेश किया था, जिसमें बिना अनुमति के कार्यक्रम आयोजित करने, अशांति फैलाने और ‘‘भीड़ द्वारा उत्पात’’ मचाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है।
गृह मंत्री जी परमेश्वर ने सदन में विधेयक पेश करते हुए कहा कि चिन्नास्वामी स्टेडियम में भगदड़ की घटना एक ‘‘सचेत करने वाली घटना’’ थी।
कर्नाटक भीड़ नियंत्रण (कार्यक्रमों और सभा स्थलों पर भीड़ प्रबंधन) विधेयक चिन्नास्वामी स्टेडियम में चार जून को हुई भगदड़ के दो महीने बाद विधानसभा में पेश किया गया। इस भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई थी और कई घायल हो गए थे।
प्रस्तावित कानून के अनुसार, जो कोई भी ऐसा कार्यक्रम या समारोह आयोजित करना चाहता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग या भीड़ एकत्रित हो सकते हैं, तो उसे संबंधित क्षेत्राधिकारी से अनुमति लेनी होगी।
बुधवार को पेश किए गए विधेयक में यह भी कहा गया है कि यदि भीड़ 50,000 से अधिक हो तो संबंधित पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त उचित जांच के बाद आयोजकों के आवेदन पर अनुमति दे सकते हैं।
विधेयक के अनुसार, आयोजकों को निर्धारित कार्यक्रम से 10 दिन पहले अनुमति के लिए आवेदन करना होगा और एक करोड़ रुपये का क्षतिपूर्ति बॉण्ड भी भरना होगा। यह क्षतिपूर्ति बॉण्ड उन कार्यक्रमों पर लागू होगा जिनमें 50,000 से अधिक लोग एकत्रित होंगे।
इसका उल्लंघन किए जाने या कोई अप्रिय घटना होने या गलत सूचना दिए जाने के मामले में दंड का प्रावधान होगा।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ विधायक सुरेश कुमार ने कहा कि भगदड़ की घटना के बाद भीड़ प्रबंधन के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के बारे में उच्च न्यायालय द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद इस विधेयक पर विचार किया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक ‘पोस्टमॉर्टम’ विधेयक है, मैं इसे एसओपी विधेयक ही कहूंगा।’’
विपक्ष के नेता आर. अशोक ने सवाल उठाया कि क्या विधेयक का उद्देश्य स्टेडियम के पास मची भगदड़ के लिए जिम्मेदार लोगों को भी इसके दायरे में लाना है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पुलिस का हथियार नहीं बनना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘सभी राजनीतिक दल कार्यक्रम या आयोजन करते हैं। अगर कुछ गलत हुआ, तो उस दल को क्या सजा दी जाएगी? इस पर विचार किया जाना चाहिए। यह पुलिस का हथियार नहीं बनना चाहिए। सोचकर नियम बनाएं।’’
बीजापुर शहर के विधायक बी पाटिल यतनाल सहित कई विधायकों ने कहा कि इस कानून के तहत पुलिस को दिए गए अधिकार का इस्तेमाल ‘‘प्रदर्शनकारियों की हत्या करने और जनहित के लिए लड़ने वालों को निशाना बनाने’’ के वास्ते किया जा सकता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि इस विधेयक का उद्देश्य एक विशेष धर्म के आयोजनों को निशाना बनाना और विरोध प्रदर्शनों में कमी करना है।
उन्होंने कहा, ‘‘एक समुदाय को दिन में पांच बार ‘साउंड’ प्रणाली का उपयोग करने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जब गणेश उत्सव या किसी अन्य हिंदू त्योहार के दौरान इस प्रणाली का उपयोग करने की बात आती है तो समस्या उत्पन्न होती है। इस विधेयक का उद्देश्य एक धर्म के आयोजनों को निशाना बनाना और विरोध प्रदर्शनों को कम करना है। मैं इसका विरोध करता हूं।’’
विधेयक की कुछ धाराओं पर आपत्ति जताते हुए भाजपा विधायक सुनील कुमार ने कहा कि मुद्दों की गंभीरता के आधार पर विरोध प्रदर्शन की योजना रातोंरात बनाई जाती है, ऐसे में 10 दिन पहले अनुमति लेना संभव नहीं है।
भाजपा और जनता दल (सेक्युलर) के कई अन्य विधायकों ने भी विधेयक पर अपनी आपत्तियां व्यक्त कीं।
विधायकों द्वारा उठाई गई चिंताओं का जवाब देते हुए परमेश्वर ने कहा कि 10 दिन की अवधि को घटाकर पांच दिन कर दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि धार्मिक आयोजनों, सामूहिक विवाह और सरकारी आयोजनों को इससे छूट दी जाएगी।
परमेश्वर के जवाब से असंतुष्ट अशोक सहित विपक्षी सदस्यों ने कहा कि विधेयक को लेकर कई मुद्दे हैं और इसे अधिनियम बनने से पहले उचित विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘विधेयक को समीक्षा के लिए सदन समिति के पास भेजें।’’
परमेश्वर ने अंतत: विपक्ष की मांग मान ली और विधेयक को सदन समिति के पास भेजने पर सहमत हो गए। इसके बाद, विधानसभसा अध्यक्ष यू टी खादर ने कहा कि विधानसभा की सदन समिति का गठन किया जाएगा।
भाषा सिम्मी सुरेश
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