नई दिल्ली : फरवरी में बना राष्ट्रीय कामधेनु आयोग आयुष मंत्रालय के साथ मिलकर दूध, दही, घी, गौमूत्र मिलाकर बनी पंचगवी दवाओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन की योजना पर काम कर रहा है. विभाग का ऐसा मानना है इन दवाओं के इस्तेमाल से गर्भधारण करने वाली माएं सुपर इंटेलीजेंट के बच्चों को जन्म दे सकेंगीं. आयोग के राष्ट्रीय चेयरमैन वल्लभभाई कथीरिया के मुताबिक, ‘यह शास्त्रों में और आयुर्वेद में प्रमाणित हो चुका है कि देसी गाय के पांच उत्पादों से बनने वाली पंचगवी दवाओं में यह गुण हैं कि वे समझदार, गुणवान बच्चों को जन्म देने में मांओं की मदद करें.’
सुपर गुणवान बच्चों के जन्म के लिए गौमूत्र दूध से मिलकर पंचगवी दवाएं बनेंगीं
कथीरिया बताते हैं, ‘आयुष मंत्रालय से इन दवाओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में सहयोग की मांग की है.’
‘यही नहीं आयुष और पशुधन मंत्रालय मिलकर इन दवाओं का उत्पादन और मार्केंटिंग करने के लिए लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय से भी सहयोग लेगा.’
‘योजना के सफल होने पर गांवों में ऐसे वैद्य प्रशिक्षित किए जाएगें जो आंगनवाड़ी केन्द्रों के साथ मिलकर गांवों में गर्भवती महिलाओं के पोषण में इन दवाओं का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सके.’
देशी गायों की नस्लें सुधारी जाएगी
आयोग के मुताबिक देसी गायों की नस्लें सुधारना और उन्हें संरक्षित करना आयोग का प्रमुख दायित्व है और इसके लिए देशभर में 44 देसी गायों की नस्लों को चुना गया है. इनमें गुजरात की गिर, कांकरेज, पंजाब की शाहीवाल, यूपी की गंगातेरी, लालसिंधी, मध्य प्रदेश की मालवी, दक्षिण भारत की कृष्णा वैली, अंगुल और वेचरू प्रमुख हैं. इन देसी गायों के संवर्धन के लिए हर राज्य में सीमेन सेंटर खोलने की योजना है.
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कथीरिया बताते हैं, ‘भोपाल और विशाखापट्नम में आधुनिक सीमेन उत्पादन केन्द्र हैं जहां अच्छे नस्लों के देशी सांडों के सीमेन का जेनेटिक संवर्धन कर बाकी राज्यों को उपलब्ध कराए जातें हैं. सीमेन की कमी से निपटने के लिए विदेश से आयात करने के अलावा हर राज्य में कम से कम एक सीमेन उत्पादन केन्द्र और मेटिंग सेंटर खोलने की ज़रूरत है इसके लिए आयोग पशुधन मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहा है.’
देसी गायों की कम होती संख्या पशुधन मंत्रालय की चिंता
पशुधन राज्यमंत्री प्रताप चंद्र सारंगी दिप्रिंट से विशेष बातचीत में बताया, ‘जर्सी गायों की ज्यादा दुग्ध उत्पादन क्षमता के कारण किसान देसी गायों को त्याग रहें हैं.’
‘पर देसी गायों के दूध के औषधीय महत्व के कारण देसी गायों की संख्या बढ़ाना पशुधन मंत्रालय की प्राथमिकताओं में ऊपर है. सरकार इसके लिए राज्य सरकारों और राज्य गाय आयोग के साथ मिलकर देसी गायों की ख़रीद पर किसानों को सब्सिडी देने की योजना पर विचार कर रही है.’
बायो फर्टिलाइजर और पेस्टीसाइड के उत्पादन के लिए स्टार्टअप
कामधेनु आयोग ग्वालियर निगर निगम और कृष्णायण गौशाला का पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पूरे देश में फैलाने की योजना पर काम कर रहा है. पीपीपी मॉडल के तहत चलने वाले इस गौशाला में गौमूत्र और गोबर से फिनाइल, पेस्टीसाइड का उत्पादन होता है. कथीरिया के मुताबिक, ‘हम हर साल 7 लाख करोड़ के पोटेशियम खेती में इस्तेमाल करने के लिए आयात करते हैं.’
अगर देश भर में गौशालाओं को मिनी स्टार्टअप में बदल दिया जाए तो हमारे राजस्व का कितना पैसा बचेगा और आर्गेनिक खेती को कितना बढ़ावा मिलेगा. मॉडल गौशाला कैसे बने इसके लिए राज्य गौ सेवा आयोग को केन्द्रीय आयोग ने पत्र लिखा है और जल्दी ही सरकार राज्य के गौ सेवा आयोग के अध्यक्षों की बैठक बुलाने वाली है.