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Friday, 22 November, 2024
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कल्पना या टीपू सुल्तान के हत्यारे? वोक्कालिगा वोट-बैंक के लिए BJP ने लिया उरी-नन्जे गौड़ा का सहारा

टीपू सुल्तान का जीवन चुनावी राज्य कर्नाटक में एक चर्चित विषय है और अब उनकी मृत्यु पर लगातार बहस की जा रही है. बीजेपी ने तर्क दिया है कि दो वोक्कालिगा योद्धाओं ने उन्हें मार डाला, लेकिन ये कदम उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है.

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बेंगलुरु: इतिहास की ज्यादातर किताबों में कहा गया है कि 18वीं सदी के मैसूर के शासक टीपू सुल्तान अंग्रेज़ों से लड़ाई के दौरान मारे गए, लेकिन कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस बात पर जोर दे रही है कि वास्तव में दो वोक्कालिगा सरदारों, उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा ने दो सदियों पहले उनकी हत्या की थी.

इतिहासकारों ने सवाल किया है कि क्या इन योद्धाओं का अस्तित्व था, लेकिन फिर भी दावे जारी रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रभावशाली वोक्कालिगा समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए भाजपा नेता एक अभियान के नजरिए से इस कथा को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन रणनीतिक तौर पर उनसे गलतियां हुई हैं.

बेंगलुरु में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में एक राजनीतिक विश्लेषक और फैकल्टी मेंबर ए नारायण ने कहा, “टीपू सुल्तान के साथ मांड्या-मैसूर क्षेत्र की आत्मीयता को देखते हुए बीजेपी ने वोक्कालिगा सरदारों के दो काल्पनिक पात्रों को गढ़ा है जिन्होंने कथित तौर पर टीपू सुल्तान की हत्या कर दी थी. हालांकि, ऐसा लगता है कि अब तक ये रणनीति उलटी पड़ती दिखाई दे रही है क्योंकि टीपू सुल्तान के अंतिम क्षणों के बारे में इस क्षेत्र के लोगों की अपनी समझ है.”

उन्होंने आगे कहा, “विश्वसनीय सबूतों के अभाव में लोग बीजेपी के इतिहास के संस्करण को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं.”

राज्य में मई में मतदान होने की उम्मीद के मद्देनज़र अक्सर भाजपा द्वारा टीपू सुल्तान की चर्चा की जाती है, लेकिन उनकी मृत्यु के तरीके के बारे में विवादास्पद ‘सिद्धांत’ अपेक्षाकृत एक नया मुद्दा है.

हालांकि, विचाराधीन दावे कर्नाटक के कई शीर्ष नेताओं की ओर से आए हैं.

उदाहरण के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि ने कहा कि टीम उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा के बारे में “सबूत” इकट्ठा करने में व्यस्त है, जबकि केंद्रीय राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे का कहना है कि योद्धाओं के अस्तित्व का प्रमाण पहले से ही नाटकों और गाथागीतों में निहित है. राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण और आबकारी मंत्री के गोपालैया भी इन विचारों के मुखर समर्थक हैं.

हालांकि, इतिहासकारों ने इन दावों की वैधता पर सवाल उठाए हैं और यह भी आरोप लगाए हैं कि भाजपा नेताओं द्वारा साझा की गई उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा की कुछ प्रतिनिधित्वात्मक छवियां वास्तव में शिवगंगा साम्राज्य के मारुथु पांडियार शासकों के चित्रण से ली गई हैं, जिन्होंने अंग्रेज़ों से लड़ाई की और सार्वजनिक रूप से अपने कार्यों के लिए 1801 में फांसी पर लटका दिए गए.

कांग्रेस समर्थक उरी और नन्जे गौड़ा के काल्पनिक आधार कार्ड का मीम भी सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं, जिसमें जन्म स्थान को बेंगलुरु में भाजपा कार्यालय बताया गया है.

यहां तक कि बीजेपी नेताओं के एक वर्ग ने भी इतिहास के इस संस्करण का समर्थन करने से इनकार कर दिया है.

कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री डॉ के सुधाकर ने मंगलवार को कहा, “मैं सच में नहीं जानता कि ये उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा कौन हैं. मैं पूर्व पीएम देवेगौड़ा, रेंज गौड़ा, नन्जे गौड़ा (एक अन्य व्यक्ति) को जानता हूं….मैंने उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा के बारे में इतिहास (किताबों) में नहीं पढ़ा है.”

बीजेपी की बयानबाजी को एक प्रभावशाली वोक्कालिगा धार्मिक नेता से भी गहरा धक्का मिला है.

इस सोमवार, वोक्कालिगा समुदाय के आध्यात्मिक मुख्यालय आदिचुनचनगिरी मठ के प्रमुख श्री निर्मलानंदनाथ स्वामीजी ने कथित तौर पर राज्य के बागवानी मंत्री और फिल्म निर्माता मुनिरत्ना को कथित तौर पर “समन” भेजा और उन्हें उरी और नन्जे गौड़ा के बारे में एक फिल्म बनाने का विचार छोड़ने के लिए कहा. माना जाता है कि मंत्री ने इस ओर ध्यान दिया है.

Munirathna
वोक्कालिगा आध्यात्मिक नेता श्री निर्मलानंदनाथ स्वामीजी राज्य के भाजपा मंत्री मुनिरत्ना के साथ | ट्विटर/@MuniratnaMLA

निर्मलानंदनाथ ने उचित रिसर्च के बिना ऐतिहासिक दावे करने के खिलाफ भी बात की है.

निर्मलानंदनाथ ने सोमवार को कहा, “आज राज्य और हमारे समुदाय के लिए बहुत सी चीजें हैं जो करने की ज़रूरत है. उन्हें अलग करके और इस मुद्दे को सामने रख कर भ्रम पैदा करना सही नहीं है.”

उन्होंने कहा, “कुछ भी कल्पना करना और लिखना एक उपन्यास बनाना होता है और रिसर्च दस्तावेज़ और कानूनों के आधार पर कुछ लिखना आने वाली पीढ़ियों को सशक्त बनाता है.”

फिर भी, उरी और नन्जे गौड़ा पर एक फिल्म बनाने की योजना भले ही अभी के लिए छोड़ दी गई हो, लेकिन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सहित भाजपा नेता दोहरी मार झेल रहे हैं.

पत्रकारों द्वारा मंगलवार को पूछे जाने पर कि क्या विवाद भाजपा के लिए एक झटका होगा, बोम्मई ने कहा कि कोई सवाल ही नहीं. उन्होंने कहा, “जब रिसर्च होगी और जिस दिन सच्चाई सामने आएगी, जीत हमारी होगी.”


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टीपू सुल्तान को किसने मारा? इतिहास बनाम ‘कहानी’

हालांकि, टीपू सुल्तान किस तरह के शासक थे, इस बारे में लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है – परोपकारी थे या नहीं, सहिष्णु थे या नहीं – इतिहासकार आमतौर पर कुछ व्यापक बिंदुओं पर सहमत होते हैं.

टीपू सुल्तान का जन्म 1750 में देवनहल्ली में हुआ था. वे एक सैन्य कमांडर हैदर अली का बेटे थे, जिसने मैसूर के वोडेयार शासकों से सत्ता हासिल करने से पहले उनके लिए काम किया था. आखिरकार टीपू ने अपने पिता के बाद बागडोर संभाली और 1799 में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में अंग्रेज़ों से लड़ते हुए उनकी मृत्यु हो गई. कम से कम ये उनके जीवन और मृत्यु के बारे में यह कुछ स्वीकृत ‘तथ्य’ हैं, जो स्कूलों में पढ़ाए जाते हैं.

A portrait of Tipu Sultan | Commons
टीपू सुल्तान की एक तस्वीर | कॉमन्स

हालांकि, कुछ भाजपा नेताओं ने टीपू सुल्तान की मृत्यु को ऐतिहासिक आंकड़ों के बजाय काल्पनिक चरित्रों के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

केंद्रीय राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे, जो भाजपा की अभियान समिति की सदस्य हैं और चुनाव प्रबंधन पैनल की संयोजक हैं, इस सिद्धांत की प्रबल समर्थक रही हैं कि दो वोक्कालिगा सरदारों ने टीपू सुल्तान की हत्या की थी.

पिछले शनिवार को, उन्होंने पत्रकारों से कहा कि प्रख्यात कन्नड़ लेखक डी. जावरेगौड़ा की सुवर्ण मांड्या नामक किताब में उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा का संदर्भ था.

फिर रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने विषय बदल दिया.

उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा, “मैं आज उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा के बारे में बोलने आई हूं. मैं किसी और दिन एलपीजी कीमतों में बढ़ोतरी के बारे में बात करूंगी.”

सी.टी. रवि ने भी उरी-नन्जे गौड़ा के बारे में अपने दावों के समर्थन में सुवर्णा मांड्या का ज़िक्र किया है.

उन्होंने बुधवार को पत्रकारों से कहा, “वे ऐतिहासिक शख्सियत हैं, इसकी पुष्टि 30 साल पहले सुवर्ण मांड्या की किताब में हो चुकी है.”

रवि ने कहा, “उन्होंने टीपू (सुल्तान) को मारा या नहीं…यह (इतिहास) बताएगा कि अज्ञात लोगों ने टीपू की हत्या की और हम इस बारे में पूरी जानकारी जुटा रहे हैं और यह सब इकट्ठा करने के बाद हम इस बारे में चर्चा करेंगे.”

हालांकि, इतिहासकार भी भाजपा के तर्कों से असहमत हैं.

बेंगलुरु के एक इतिहासकार और सेवानिवृत्त प्रोफेसर नरसिमियाह ने दिप्रिंट से कहा, “(सुवर्ण मांड्या) एक किताब नहीं है, बल्कि मांड्या के एक जिले के रूप में गठन के 50 साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए लाई गई एक स्मारिका है. इसमें इन दो पात्रों (उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा) का उल्लेख है, लेकिन टीपू सुल्तान को जान से मारने से इसका कोई लेना-देना नहीं है.”

उन्होंने कहा कि टीपू सुल्तान को उनके ही वित्त मंत्री मीर सादिक ने धोखा दिया था, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ सांठगांठ की और उन्हें शासक की सैन्य रणनीतियों और योजनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की. उन्होंने कहा, इसने चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान को हराने और मारने में अंग्रेजों को सक्षम बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई.


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बीजेपी की वोक्कालिगा पहेली

बीजेपी पारंपरिक रूप से कर्नाटक में चुनावी समर्थन के लिए प्रमुख लिंगायत समुदाय पर निर्भर रही है, लेकिन वह अपने मतदाता आधार को व्यापक बनाने की कोशिश कर रही है. पार्टी विशेष रूप से वोक्कालिगा वोट-बैंक में सेंध लगाने के लिए उत्सुक रही है, जिसे आमतौर पर एच.डी. देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली जद (एस) के वोट-बैंक के रूप में देखा जाता था.

25 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चिक्काबल्लापुरा का दौरा करेंगे, जो बेंगलुरु की सीमा से सटा है और देवनहल्ली को इसके निर्वाचन क्षेत्रों में गिना जाता है. देवनहल्ली टीपू सुल्तान की जन्मस्थली है और भाजपा के लिए रुचि का क्षेत्र है क्योंकि यह वोक्कालिगा आबादी वाली एक आरक्षित सीट है.

हालांकि, अभी तक बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार को अपनी जातिगत गणनाओं से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

इसका एक उदाहरण पिछड़े वर्गों की सूची में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों को दो नव निर्मित श्रेणियों में शामिल करने का सरकार का निर्णय है.

सरकार ने 3ए और 3बी आरक्षण डिवीजनों को खत्म कर दिया था और उन्हें श्रेणी 2 के तहत दो नई उपश्रेणियों के साथ बदल दिया था, जो वर्तमान में वोक्कालिगा और लिंगायतों के लिए जगह बनाने के लिए ओबीसी (2ए) और अल्पसंख्यकों (2बी) के लिए आरक्षण प्रदान करती है.

विचार यह था कि यह चुनाव से पहले इन दो प्रमुख जाति समूहों का समर्थन हासिल करेगा, लेकिन इसके बजाय नई श्रेणियों और उनके द्वारा लाए जाने वाले आरक्षण लाभों पर स्पष्टता की कमी के बारे में सुगबुगाहट थी.

वोक्कालिगा वर्तमान में “3ए श्रेणी” के अंतर्गत हैं, जो अपने साथ 4 प्रतिशत आरक्षण लाता है. समुदाय ने मांग की थी कि इसे बढ़ाकर 12 फीसदी किया जाए. 2सी और 2डी की नव निर्मित श्रेणी के तहत, इस श्रेणी में, उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटा से उधार लेकर अतिरिक्त 2-3 प्रतिशत प्राप्त होने की संभावना है. जिन वीरशैव लिंगायतों को भी इस फैसले से फायदा होना था, उन्होंने इस ‘समाधान’ को खारिज कर दिया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पूरे पुनर्वर्गीकरण पर रोक लगा दी है.

एक अन्य अंतर भाजपा में प्रमुख वोक्कालिगा नेताओं की कमी है.

2008 से जब यह पहली बार सत्ता में आई थी, अब तक, भाजपा के पास तीन लिंगायत सीएम हैं – बीएस येदियुरप्पा, जगदीश शेट्टार, बोम्मई- लेकिन सिर्फ एक वोक्कालिगा, डी.वी. सदानंद गौड़ा.

जबकि राजस्व मंत्री आर. अशोक, सी.टी. रवि, सी.एन. अश्वथ नारायण, शोभा करंदलाजे, और डॉ. के. सुधाकर, अन्य लोगों के साथ, भाजपा में वोक्कालिगा चेहरे के रूप में देखा जाना चाहते हैं, पार्टी की अभी भी पुराने मैसूरु क्षेत्र में सीमित उपस्थिति है.

फरवरी में सीएम बोम्मई ने उनके खिलाफ विरोध के मद्देनजर आर. अशोक को क्षेत्र के एक प्रमुख जिले मांड्या के प्रभारी मंत्री के पद से हटा दिया था.

मांड्या के सात विधानसभा क्षेत्रों में से जद (एस) ने 2018 में सभी सात जीते, लेकिन एक विधायक भाजपा में शामिल हो गया, जिससे पार्टी को वोक्कालिगा गढ़ में अपना पहला प्रतिनिधित्व मिला.

यहां तक कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कन्नड़ सिनेमा आइकन, अंबरीश की पत्नी, सुमलता अंबरीश की स्वतंत्र उम्मीदवारी का समर्थन करने का फैसला किया, क्योंकि कथित तौर पर इन भागों में जद (एस) की ताकत के खिलाफ कोई नेता चुनाव लड़ने को तैयार नहीं था.

नारायण ने दावा किया, “अपने हिंदुत्व के एजेंडे को राज्य भर में आम स्वीकृति दिलाने में विफल रहने के बाद, भाजपा प्रत्येक क्षेत्र के लिए एक सांप्रदायिक लामबंदी की रणनीति अपना रही है.”

उन्होंने कहा कि भले ही भाजपा के पास उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा के बारे में कोई सबूत नहीं है, लेकिन दोनों नामों के अभी मिटने की संभावना नहीं है.

उन्होंने कहा, “वे झूठ को दोहराते हैं, उम्मीद करते हैं कि अंतहीन रूप से दोहराए जाने वाले झूठ को आखिरकार सच मान लिया जाएगा.”

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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