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Tuesday, 12 August, 2025
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काकोरी ट्रेन एक्‍शन के बारे में और ज्यादा पढ़ाया जाना चाहिए: क्रांतिकारियों के वंशज

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लखनऊ, आठ अगस्त (भाषा) लखनऊ के ऐतिहासिक ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के 100 साल पूरे होने वाले हैं। ऐसे में इस ऐतिहासिक घटना में भाग लेने वाले कुछ क्रांतिकारियों के वंशजों का मानना है कि ”काकोरी ट्रेन एक्‍शन” के शैक्षणिक दायरे का विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को पता चले कि उनके पूर्वजों को अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी क्रांति के लिए हथियार खरीदने के लिए नौ अगस्त 1925 को काकोरी में ट्रेन से ले जाया जा रहा ब्रिटिश सरकार का खजाना लूट लिया था। वर्ष 1927 में, ब्रिटिश सरकार ने राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को इस घटना में दोषी करार देते हुए फांसी पर लटका दिया था।

साल 2021 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस क्रांतिकारी घटना का नाम बदलकर ”काकोरी ट्रेन एक्शन” कर दिया था। हालांकि पहले आमतौर पर इसे ‘काकोरी ट्रेन डकैती’ या ‘काकोरी ट्रेन षड्यंत्र’ के रूप में वर्णित किया जाता था।

क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान के पोते अफाकउल्लाह खान ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘यह ऐतिहासिक घटना इतिहास के पन्नों में बमुश्किल कुछ पैराग्राफ तक ही सीमित है। इस ऐतिहासिक घटना को कक्षा आठ से कक्षा 12 तक एक अध्याय के रूप में शामिल करने की सख्त जरूरत है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी वास्तव में जान सके कि हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए कितने संघर्ष किए और कष्ट सहे।’

खान ने कहा कि 1857 से 1947 तक जिन गुमनाम क्रांतिकारियों ने शहादत दी, उनके बारे में विस्तृत जानकारी और प्रश्न होने चाहिए, जो छात्रों से विभिन्न परीक्षाओं में पूछे जाने चाहिए।

उन्होंने का कि इससे छात्रों को प्रोत्साहन मिलेगा और वे उनके बारे में जानने का प्रयास करेंगे।

खान ने कहा कि विश्वविद्यालय स्तर पर भी इस घटना को मुगलकाल की तरह एक विशेष विषय के रूप में पढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए।

उन्होंने कि अगर इस घटना को सिर्फ़ पढ़ाने के लिए पढ़ाया जाएगा तो इससे कोई फायदा नहीं होगा बल्कि असली फ़ायदा तब होगा जब विभिन्न परीक्षाओं में इस महत्वपूर्ण विषय पर प्रश्न पूछे जाएंगे।

खान ने कहा, “धीरे-धीरे, इससे युवाओं में राष्ट्रवाद की एक नयी भावना जागृत होगी। मैंने दसवीं कक्षा तक रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के बारे में पढ़ा था। अब वे पाठ्यक्रम में हैं या नहीं, मुझे नहीं पता। एक बार जब हमारे बच्चे यह जान जाएंगे कि हमारे देश को आजादी किन परिस्थितियों में मिली, तो वे स्वतः ही राष्ट्रवादी हो जाएंगे।’

खान ने यह भी कहा कि हमारे क्रांतिकारियों को उनकी जयंती, पुण्यतिथि और उनसे जुड़ी कुछ अन्य विशेष तिथियों से आगे भी याद रखने की जरूरत है।

ठाकुर रोशन सिंह के पोते राजीव सिंह ने संपर्क करने पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘विश्वविद्यालय स्तर पर काकोरी ट्रेन एक्शन पर और अधिक शोध किया जाना चाहिए। मैंने अपने दादा ठाकुर रोशन सिंह के बारे में सिर्फ सुना है, मुझे उन्हें जीवित देखने का सौभाग्य कभी नहीं मिला। मेरे दादा ने देश के लिए जो किया, उसे वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे।’

राजीव ने कहा, ‘मेरी बस यही इच्छा है कि मेरे दादा द्वारा किए गए कार्यों को उचित सम्मान मिले, आखिरकार उन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। बच्चों को उनके और अन्य क्रांतिकारियों के बारे में और अधिक अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।’

शचींद्र नाथ बख्शी की पोती मीता बख्शी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि ऐसे समय में, जब लोग आमतौर पर क्रांतिकारियों को भूल जाते हैं, उन्हें याद रखना अपने आप में एक बड़ी बात है।

उन्होंने का कि उनका मानना है कि स्कूलों में पढ़ाए जा रहे काकोरी ट्रेन एक्शन के दायरे को काफी बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि बच्चे इस जगह के समृद्ध इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम पर इसके प्रभाव के बारे में और जान सकें।

बख्शी ने कहा, “लखनऊ में स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में छह अगस्त से आठ अगस्त तक काकोरी की बरसी मनाई जा रही है। एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। बच्चों ने पोस्टर भी बनाए। उन्होंने (बीबीएयू) काकोरी पर पाठ्येतर गतिविधियां आयोजित करने की पहल की।’

उन्होंने आगे कहा कि काकोरी घटना को विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों और कार्यक्रमों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

उदय खत्री के पोते रोहित खत्री ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘मेरा मानना है कि काकोरी ट्रेन एक्शन को एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में घटना के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए पूरी तरह से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अगर विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं होगी, तो काकोरी ट्रेन एक्शन के समृद्ध इतिहास के बारे में कोई कैसे जान पाएगा?”

उन्होंने कहा कि काकोरी शहीद मंदिर को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए जिसमें क्रांतिकारियों के बारे में सभी जानकारी हो। वहां एक प्रशिक्षित और जानकार गाइड भी मौजूद होना चाहिए, जो आगंतुकों को घटना के विभिन्न पहलुओं की सटीक जानकारी दे सके।’

भाषा अरुणव आनन्‍द जोहेब

जोहेब

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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