नई दिल्ली: मुख्य न्यायधीश एनवी रमन्ना के रिटायर होने के बाद 27 अगस्त को देश के अगले मुख्य न्यायधीश जस्टिस यूयू ललित होंगे. एनवी रमन्ना ने सरकार को उनके नाम की सिफारिश भेज दी है.
गौरतलब है कि सरकार ने भी एनवी रमन्ना से अपने उत्तराधिकारी के नाम का सुझाव देने को कहा था. दो दिन पहले ही कानून और न्यायमंत्री किरण रिजिजू ने मुख्य न्यायधीश को चिट्ठी लिखकर अपने उत्तराधिकारी का नाम प्रेषित करने का आग्रह किया था. एनवी रमन्ना 27 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं.
जस्टिस यूयू ललित 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए थे और वे 27 अगस्त, 2022 को मौजूदा चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना के रिटायर होने के बाद 49वें मुख्य न्यायधीश बनेंगे.
एक रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि, यूयू ललित कार्यकाल 73 दिनों का ही होगा वह 8 नवंबर, 2022 तक पद पर रहेंगे. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस की रिटायरमेंट की उम्र 65 साल ही होती है.
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बाम्बे हाईकोर्ट से वकालत शुरू की
1957 में पैदा हुए जस्टिस ललित ने 1983 में बॉम्बे हाईकोर्ट से वकालत शुरू की थी और वहां दिसंबर 1985 तक प्रैक्टिस की.
1986 से 1992 के बीच वो पूर्व सॉलिसिटर जनरल रहे सोली सोराबजी के साथ काम किए. उसके बाद अप्रैल 2004 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट बने.
बहुचर्चित 2जी घोटाले का ट्रायल में सीबीआई की मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर बनाया था.
जस्टिस ललित क्रिमिनल लॉ के विशेषज्ञ माने जाते हैं. वह राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण यानी नालसा का कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे.
इन मुक़दमों की सुनवाई से अलग हुए
जस्टिस यूयू ललित ने कई मामलों की सुनवाई से खुद को अलग किया है और इसकी वजह ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट’ बताया गया है.
किसी जज के लिए ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट’ का मतलब मुक़दमे की एक पक्ष से पहले से कोई संबंध या सरोकार.
जस्टिस ललित ने खुद को जिन मामलों से अलग किया इनमें अयोध्या विवाद, मुंबई ब्लास्ट मामला, मृत्युदंड की सज़ा पाए याकूब मेनन की पुनर्विचार याचिका, शिक्षक भर्ती घोटाले से जुड़े हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की याचिका जैसे मामले प्रमुख हैं.
जज रहते हए दिए प्रमुख फैसले
तीन तलाक़ की वैधता पर सुनवाई के दौरान उन्होंने इसे खारिज़ करते हुए कहा था कि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए मूल अधिकार का उल्लंघन है.
अनुसूचित जाति और जनजातियों के उत्पीड़न रोकने वाले 1989 के क़ानून का दुरुपयोग न हो इसके लिए जस्टिस ललित ने कई उपाय किए. काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र मामले में जस्टिस आदर्श गोयल के साथ मिलकर इस मामले में होने वाली एफआईआर के पहले जांच की प्रक्रिया की व्यवस्था बनाई.
किसी मामले में गिरफ्तारी के पहले जांच अधिकारी को मंजूरी आदेश सुनाया. और ऐसे मामलों में अग्रिम ज़मानत देने की व्यवस्था की.
पूर्व सीजेआई रहे रंजन गोगोई और जस्टिस कुरियन जोसेफ के साथ मिलकर रंजना कुमारी बनाम उत्तराखंड सरकार मामले में उन्होंने कहा कि किसी दूसरे राज्य से आने वाले शख्स को नए राज्य में सिर्फ इसलिए एससी नहीं माना जा सकता कि पहले के राज्य में उन्हों एससी होने के तौर पर मान्यता मिली हुई थी.
वहीं प्रद्युम्न बिष्ट मामले में जस्टिस आदर्श गोयल के साथ हर राज्य के दो ज़िलों की अदालतों के भीतर और अदालत परिसर के महत्वपूर्ण जगहों पर बिना किसी ऑडियो रिकार्डिंग वाले सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश दिए थे.
हालांकि उनके आदेश के मुताबिक इन रिकॉर्डिंग्स को सूचना के अधिकार कानून के तहत मांग नहीं की जा सकती.
जस्टिस ललित ने हिंदू विवाह कानून की धारा 13बी2 के तहत आपसी सहमति से तलाक़ के लिए 6 महीने के इंतजार की अवधि अनिवार्य होना हटा दिया. अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर मामले में फैसला दिया कि कई मामलों में छह महीने की यह अवधि ख़त्म की जा सकती है.
जस्टिस ललित ने अदालत की अवमानना के मामले में भगोड़े शराब व्यापारी विजय माल्या को 4 महीने की जेल और 2,000 रुपए का जुर्माना लगाया था.
कुछ हफ्ते पहले जस्टिस ललित ने अदालत की कार्यवाही और पहले शुरू करने का सुझाव दिया था. उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई सुबह 9.30 बजे से 11.30 बजे तक हो और फिर आधे घंटे का ब्रेक होना चाहिए. फिर 12 बजे से दोपहर बाद 2 बजे तक सुनवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा था कि इससे शाम में और चीज़ें करने का वक्त मिल जाएगा.
पिछले महीने हुई सुनवाई में जस्टिस ललित ने कहा कि अगर बच्चे सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो जज और वकील 9 बजे सुबह काम क्यों नहीं शुरू कर सकते.
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