(पवन कुमार सिंह और आमिर खान)
नयी दिल्ली, 23 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका का अंतिम कार्य दिवस रहा। उन्हें विचारों की स्पष्टता, तीक्ष्ण कुशाग्रता और संवैधानिक मूल्यों को कायम रखने वाले निर्णयों के लिए याद किया जाएगा।
उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम समय में, अपनी अध्यक्षता वाली पीठों द्वारा सुरक्षित रखे गए करीब एक दर्जन निर्णयों को सुनाया। वह 24 मई को सेवानिवृत्त होंगे, जो शीर्ष अदालत में अवकाश का दिन है।
न्यायमूर्ति ओका ने दो दशक से अधिक समय तक न्यायाधीश के रूप में, अपने निर्णयों के माध्यम से अपनी बात रखी, जिसमें हमेशा स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों के सिद्धांतों को बरकरार रखा गया।
शायद यह न्यायिक कार्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ही थी कि वह अपनी मां के निधन के एक दिन बाद ही काम पर लौट आए और उच्चतम न्यायालय में अपने अंतिम कार्य दिवस पर 11 फैसले सुनाए।
शीर्ष अदालत में, लगभग चार साल के कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति ओका ने आपराधिक, पर्यावरण, मध्यस्थता और कॉर्पोरेट मामलों सहित कई मुद्दों पर निर्णय दिये।
न्यायमूर्ति ओका जब मुंबई उच्च न्यायालय में वरिष्ठ न्यायाधीश थे, उस समय वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीहरि अणे महाराष्ट्र के शीर्ष विधि अधिकारी – महाधिवक्ता – थे।
अणे ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं आपको निश्चित रूप से बता सकता हूं कि उन्होंने हमेशा वही किया जो सही था। हमेशा… बिना किसी अपवाद के।’’
अणे ने बीफ पर प्रतिबंध मामले में महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व किया था, जब एक विशेष धारा के तहत पुलिस को निजी घरों में भी घुसने और बीफ पकाने के संदेह में लोगों को गिरफ्तार करने की अनुमति दी गई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘न्यायमूर्ति ओका ने कहा था कि महाधिवक्ता के तौर पर आपने खुद कहा है कि यह प्रावधान गैरकानूनी है। जब यह नागरिक की स्वतंत्रता और आजादी के अधिकार के खिलाफ है, तो इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए।’’
अणे ने कहा कि न्यायमूर्ति ओका का मानना है कि कानून की भावना पवित्र है।
न्यायमूर्ति ओका ने हाल में, अपने 2016 के फैसले के संदर्भ में स्वीकार किया कि न्यायाधीश भी मनुष्य हैं और उनसे भी गलतियां हो सकती हैं।
अगस्त 2021 से लेकर अब तक, शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति ओका ने 295 फैसले लिखे और अलग-अलग संयोजनों में 1,000 से अधिक निर्णय देने में शामिल रहे हैं।
न्यायमूर्ति ओका ने ‘‘कम गंभीर अपराध वाले मामलों’’ में जमानत याचिकाओं को खारिज करने वाली अधीनस्थ अदालत की बढ़ती प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए कहा था कि 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले मामले में आतंकवादी अजमल कसाब को भी निष्पक्ष सुनवाई मिली थी।
उनका मानना है कि एक लोकतांत्रिक देश को पुलिस राज्य की तरह काम नहीं करना चाहिए और उन्होंने कहा कि व्यवस्था पर अनावश्यक रूप से बोझ डाला जा रहा है।
कोविड-19 महामारी के दौरान, न्यायमूर्ति ओका ने प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई निर्देश पारित किए और सरकार के असंवेदनशील व्यवहार पर सवाल उठाए थे।
उन्होंने मुकदमे में देरी और लंबे समय तक जेल में रहने का हवाला देते हुए द्रमुक नेता सेंथिल बालाजी को धन शोधन मामले में जमानत दे दी।
बाद में, बालाजी फिर से मंत्री बने, तब न्यायमूर्ति ओका ने ही उन्हें अल्टीमेटम दिया, जिसके बाद विधायक को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को आरोपियों के मौलिक अधिकारों के बारे में भी सोचना चाहिए। उन्होंने बिना सबूत के आरोप लगाने में एजेंसी के ‘‘पैटर्न’’ को रेखांकित करते हुए यह बात कही थी।
पर्यावरण के मोर्चे पर, न्यायमूर्ति ओका की पीठ ने वायु प्रदूषण के स्तर बढ़ने पर दिल्ली में क्रमिक प्रतिक्रिया कार्य योजना (जीआरएपी) के कार्यान्वयन की करीबी निगरानी की और पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया, विद्यालयों को बंद करने का निर्देश दिया और निर्माण श्रमिकों को निर्वाह भत्ता देने का आदेश दिया।
उन्होंने शहर के रिज क्षेत्र में पेड़ों की बेतहाशा कटाई का भी संज्ञान लिया और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के उपाध्यक्ष को अवमानना नोटिस जारी किया।
उन्होंने हाल ही में वरिष्ठ अधिवक्ता पदनामों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। एक अन्य मामले में न्यायाधीश ने कहा था आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत ग्रेच्युटी पाने के हकदार हैं।
उन्होंने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की 2017 की अधिसूचना को रद्द करने सहित कई ऐतिहासिक फैसले पारित किए।
न्यायमूर्ति ओका का जन्म 25 मई 1960 को श्रीनिवास डब्ल्यू ओका और वसंती ओका के घर हुआ था।
उन्होंने विज्ञान में स्नातक किया और फिर बंबई विश्वविद्यालय से एलएलएम की पढ़ाई की। उन्होंने 28 जून 1983 को एक वकील के रूप में पंजीकरण कराया और अपने पिता के चैंबर में ठाणे जिला न्यायालय में वकालत करना शुरू किया।
वह बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्हें 31 अगस्त 2021 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
भाषा सुभाष धीरज
धीरज
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