नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिसमें बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति राय की नई किताब ‘मदर मैरी कम्स टू मी’ के कवर पर आपत्ति जताई गई थी. इस कवर में राय को बीड़ी पीते हुए दिखाया गया है.
याचिकाकर्ता अधिवक्ता राजसीमन ने तर्क दिया कि यह कवर तस्वीर सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट (COTPA), 2003 का उल्लंघन करती है क्योंकि इसमें अनिवार्य स्वास्थ्य चेतावनी नहीं है.
चीफ जस्टिस सुर्या कांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने कहा कि किताब में डिस्क्लेमर दिया गया है और इस तस्वीर का इस्तेमाल धूम्रपान को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया गया है.
कोर्ट ने कहा, “किताब में एक डिस्क्लेमर है. लेखिका एक मशहूर व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी पहचान बनाई है. प्रकाशक (पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया) भी मशहूर है. उन्होंने धूम्रपान को बढ़ावा नहीं दिया है और न ही उन्हें किताब को प्रमोट करने के लिए इस फोटो की जरूरत थी. आपकी समस्या क्या है? क्या यह सिर्फ लोकप्रियता पाने के लिए है?”
कोर्ट ने आगे कहा, “शहर में कहीं भी इस किताब के कवर की तस्वीर वाला कोई होर्डिंग नहीं है. यह केवल उस पाठक के लिए है जो किताब लेकर पढ़ेगा. उनकी तस्वीर से ऐसा कुछ नहीं झलकता. किताब, प्रकाशक या लेखिका का सिगरेट आदि के विज्ञापन से कोई संबंध नहीं है. यह कोई विज्ञापन नहीं है.”
याचिकाकर्ता ने केरल हाई कोर्ट द्वारा 13 अक्टूबर को उनकी याचिका खारिज किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
केरल हाई कोर्ट में क्या हुआ?
केरल हाई कोर्ट में दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने बिना अनिवार्य चेतावनी लेबल के किताब की बिक्री, प्रसार और प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग की थी. उन्होंने स्पष्ट किया था कि वह किताब की सामग्री या साहित्यिक पक्ष को चुनौती नहीं दे रहे हैं.
उन्होंने राय की तस्वीर को “धूम्रपान को बौद्धिक और रचनात्मक अभिव्यक्ति के प्रतीक के रूप में महिमामंडित करने वाला प्रतीक” कहा.
उन्होंने कहा कि यह किताब युवाओं, खासकर किशोर लड़कियों और महिलाओं को गुमराह कर सकती है क्योंकि यह धूम्रपान को एक फैशनेबल चीज़ की तरह पेश कर सकती है.
उन्होंने कहा कि राय की फोटो भारत के तंबाकू कानूनों का उल्लंघन करती है क्योंकि यह बिना चेतावनी के धूम्रपान को महिमामंडित करती है.
याचिकाकर्ता किताब पर प्रतिबंध चाहते थे, लेकिन प्रकाशक पेंगुइन ने कवर को ‘केवल प्रतीकात्मक उद्देश्य’ वाला बताते हुए इसका बचाव किया.
अंत में केरल हाई कोर्ट ने डिस्क्लेमर का हवाला देते हुए यह PIL खारिज कर दी और कहा कि याचिकाकर्ता ने उचित सरकारी समिति के जरिए प्रक्रिया का पालन नहीं किया.
हाई कोर्ट ने कहा कि याचिका केवल आत्म-प्रचार के उद्देश्य से दायर की गई थी और इससे राय के चरित्र पर अनावश्यक टिप्पणी की गई थी.
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