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Friday, 22 November, 2024
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जूही चावला कहती हैं कि 5G सुरक्षित नहीं लेकिन एक्सपर्ट्स का क्या कहना है? कैसे काम करती है ये तकनीक

5G क्या है, ये कैसे काम करती है और इससे स्वास्थ्य संबंधी क्या चिंताएं हैं, यदि हैं. दिप्रिंट देता है इन सामान्य प्रश्नों के जवाब.

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बेंगलुरू: 5जी वायरलेस तकनीक विवादास्पद कारणों से ख़बरों में बनी हुई है. इस बार अभिनेत्री जूही चावला ने, रेडिएशन के ख़तरों का हवाला देते हुए इस तकनीक के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है.

अपेक्षा की जा रही है कि इस टेक्नोलॉजी की गति बेहद तेज़ होगी, तथा इसकी क्षमता भी बहुत अधिक होगी और बहुत से कैरियर्स ने दुनिया भर में फैली कुछ चुनिंद जगहों पर, इसे चालू भी कर दिया है. इस नेटवर्क में गीगाबाइट्स प्रति सेकंड की रफ्तार हासिल की जा सकती है, क्योंकि कम्यूनिकेशन के लिए इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसीज़ का एक ऊंचा बैण्ड अतिरिक्त तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसे मिलीमीटर वेव्ज़ कहते हैं.

हालांकि 5जी टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल किए जाने वाले स्पेक्ट्रम के अपेक्षाकृत नए हिस्से का गहन अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन वैज्ञानिकों और रेडिएशन पर नज़र रखने वालों ने स्वास्थ्य सुरक्षा डेटा का हवाला देते हुए, सेलफोन टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल के लिए स्पेक्ट्रम को हरी झंडी दिखा दी है.

मिलीमीटर वेव कम्यूनिकेशन की एक बहुत बड़ी समस्या उनकी क्षीणता की है, जिससे टेक्नोलॉजी के लागू करने में चुनौतियां आती हैं. हाईबैण्ड 5जी की पहुंच बेहद कम होती है, जो सिर्फ कुछ फीट या मीटर तक जाती है, और इसके सिग्नल पेड़ों, इमारतों, या ट्रेन जैसी अड़चनों से, बहुत आसानी से बाधित हो जाते हैं.

5जी वायरलेस नेटवर्क्स की पांचवीं पीढ़ी है, जिसकी गति और क्षमता बहुत अधिक होती हैं. पांचवीं पीढ़ी की वायरलेस टेक्नोलॉजी विकसित करने का काम, पहली बार 2008 में नासा में शुरू किया गया था, लेकिन साथ ही साथ ये दुनिया भर की, कई दूसरी जगहों पर भी स्वतंत्र रूप से शुरू हुआ था. सैमसंग, निपॉन, हूवे, और एलजी जैसी टेक कंपनियों ने, इस टेक्नोलॉजी पर काम किया है, और इसे विकसित कर रही हैं.

अप्रैल 2019 में, साउथ कोरिया और अमेरिका ने इस टेक्नोलॉजी को, एक ही दिन कुछ चुनिंदा जगहों पर लोगों के सामने पेश किया.

5जी में जिस बैण्ड का इस्तेमाल होता है, उसे तीन हिस्सों में बांटा गया है: लो बैण्ड, मिड बैण्ड, और हाईबैण्ड माइक्रोवेव्ज़. 600 से 850 मेगाहर्ट्स पर, लो बैण्ड 5जी में वही फ्रीक्वेंसीज़ इस्तेमाल होती हैं, जो 4जी और हमारे सामान्य सेल फोन्स में होती हैं. मिड बैण्ड 5जी में 2.5 से 3.7 गीगाहर्ट्स की माइक्रोवेव्ज़ इस्तेमाल होती हैं, और ये तक़रीबन 9,000 मेगाबाइट्स प्रति सेकंड की गति दे सकता है. हाईबैण्ड माइक्रोवेव कहे जाने वाले, स्पेक्ट्रम के जिस नए हिस्से का इस्तेमाल हो रहा है, उसमें 25 से 39 गीगाहर्ट्स की फ्रीक्वेंसीज़ इस्तेमाल होती हैं, जो मिलीमीटर वेव बैण्ड में होती हैं. इससे गीगाबाइट्स प्रति सेकंड की सामान्य रफ्तार मिल सकती है.

हाईस्पीड 5जी उपकरण और नोड्स, जिन फ्रीक्वेंसीज़ पर काम करते हैं, उसकी वजह से वास्तव में वो ऐसी रेडियो फ्रीक्वेंसीज़ छोड़ेंगे, जो उन फ्रीक्वेंसीज़ से 10 से 100 गुना अधिक होंगी, जिनपर हम अपने सेलफोन्स चलाते हैं, लेकिन, चावला के दावों के विपरीत, ऐसा रेडिएशन हमारे हर तरफ मौजूद है, जो प्राकृतिक और कृत्रिम स्रोतों से आता है, और तेज़ी से फैल जाता है.

5जी नेटवर्क सेटअप

5जी नेटवर्क सिर्फ 5जी उपकरणों के साथ चलते हैं, जो अनुकूल रेडियो ट्रांसीवर्स से लैस होते हैं. इस नेटवर्क में अलग अलग प्रकार के हब्स और नोड्स होते हैं, जिन्हें सेल्स कहा जाता है.

5जी नोड्स का कवरेज क्षेत्र बहुत सीमित होता है, इसलिए इन्हें हर 10 से 100 मीटर पर, ‘छोटे सेल्स’ की ज़रूरत होती है. इन छोटे सेल्स से हाई स्पीड, शॉर्ट रेंज नेटवर्क तैयार होगा. ये फेमटोसेल्स, पीकोसेल्स, या माइक्रोसेल्स हो सकते हैं, जिनकी रेंज साफ मौसम में सीधा देखने पर, क्रमश: 10 मीटर, 200 मीटर और 2 किलोमीटर हो सकती है.

ये छोटे सेल्स फिर बड़े सेल्स से जुड़ते हैं, या उनसे संपर्क करते हैं, जो माइक्रोवेव्ज़ के मिड और लो बैण्ड्स इस्तेमाल करते हैं, और लंबी दूरी का संचारण करते हैं.

5जी एंटिना में एक वांछित दिशा की ओर, सीधे ट्रांसमिट करने की क्षमता भी होती है. ऐसे एंटिना को दिशासूचक फेज़-अरे एंटिना कहा जाता है.

नेटवर्क को सक्षम बनाने के लिए, हर ओर बड़ी संख्या में सेल्स स्थापित करने की आवश्यकता ने, निजता तथा छोटे सेल्स और 5जी सेलफोन दोनों से, दिशासूचक वेव्ज़ के नज़दीकी संपर्क से, इंसानी कानों को होने वाले, स्वास्थ्य ख़तरों से जुड़े सवाल खड़े कर दिए हैं.

क्या हैं स्वास्थ्य चिंताएं

इलेक्ट्रोमेग्नेटिक स्पेक्ट्रम हमारे आसपास की सभी ऊर्जा की नुमाइंदगी करता है. रेडिएशन में, जिसकी फ्रीक्वेंसी प्रकाश से ऊंची होती है- जैसे अल्ट्रावायलेट, एक्सरेज़ और गामा रेज़- इतनी ऊर्जा होती है कि वो जिन एटम्स से टकराता है, उनसे इलेक्ट्रॉन्स को अलग कर देता है. इसलिए उन्हें आयनकारी विकिरण कहा जाता है.

इस तरह के विकिरण में, हमारे शरीर के संपर्क में आने पर, उसे सेलुलर और डीएनए क्षति पहुंचाने की संभावित क्षमता होती है, जिससे कैंसर का ख़तरा बढ़ जाता है.

लेकिन, प्रकाश से नीचे की फ्रीक्वेंसीज़- जो इनफ्रारेड से माइक्रोवेव्ज़ और लॉन्ग रेंज रेडियो वेव्ज़ तक होती हैं- ग़ैर-आयनकारी होती हैं. संचार के लिए दशकों से रेडियो और माइक्रोवेव्ज़ का इस्तेमाल किया जाता रहा है. ऊंची फ्रीक्वेंसी वाली मिलीमीटर वेव्ज़, बहुत तेज़ी से इनर्जी खो देती हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल पहले ही, पॉइंट-टु-पॉइंट संचार, तथा टेलीविज़न प्रसारण, रडार्स, खगोल विज्ञान, और सेलफोन्स आदि में किया जाता है.


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5जी में इस्तेमाल होने वाली मिलीमीटर तरंगों की लंबाई 1एमएम से छोटी होती है, और इन्हें इससे पहले मोबाइल संचार में इस्तेमाल नहीं किया गया है. ये हमारे शरीर को कोई मॉलिकुलर, या सेलुलर लेवल का नुक़सान पहुंचाने में सक्षम नहीं होतीं.

गर्मी से टिशू को नुक़सान होने की चिंताएं अभी भी बरक़रार हैं, चूंकि अधिक ऊर्जा वाली तरंगें, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम पर इनफ्रारेड के क़रीब चली जाती हैं. इनफ्रारेड रेडिएशन में गर्मी होती है, और सूरज की आधी ऊर्जा इसी रूप में धरती तक पहुंचती है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि 5जी, 25 से 39 गीजाहर्ट्स के जिस मिलीमीटर वेव बैण्ड का इस्तेमाल करता है, वो दरअसल रेडियो फ्रीक्वेंसीज़ के क़रीब होता है, और इनफ्रारेड से दूर होता है, जो 5-20 टेराहर्ट्स की फ्रीक्वेंसीज़ पर शुरू होता है, और उसकी तरंगों की लंबाई माइक्रोमीटर्स में होती है.

इसके अलावा, आज हम जितना समझते हैं, कम्यूनिकेशंस टेक्नोलॉजी नोड्स और निजी उपकरण दोनों में, इतना कम पावर आउटपुट इस्तेमाल करती है, कि उससे शरीरको कोई गंभीर नुक़सान नहीं पहुंच सकता.

रेडिएशन एक्सपर्ट्स ने 5जी को बताया सुरक्षित

ये टेक्नोलॉजी कितनी नई है उसे देखते हुए सेलफोन कम्यूनिकेशन के लिए, मिलीमीटर तरंगों के दीर्घ-कालिक इस्तेमाल का, बहुत गहराई से अध्ययन नहीं किया गया है. डब्लूएचओ का कहना है, ‘स्वास्थ्य से जुड़े निष्कर्ष पूरे रेडियो स्पेक्ट्रम में की गई स्टडीज़ से निकाले जाते हैं, लेकिन अभी तक, उन फ्रीक्वेंसीज़ की बहुत कम स्टडीज़ की गई हैं, जिनका 5जी में इस्तेमाल किया जाएगा. रेडियो फ्रीक्वेंसी फील्ड्स और इंसानी शरीर के बीच, संपर्क का एक मुख्य तंत्र टिशू का गर्म होना है’.

लेकिन, 5जी को सुरक्षित घोषित किया गया है, और रेडिएशन प्रहरियों तथा अंतर्राष्ट्रीय इकाइयों ने, स्वास्थ्य के हिसाब से नई फ्रीक्वेंसीज़ के इस्तेमाल को हरी झंडी दे दी है.

दो अंतर्राष्ट्रीय इकाइयां जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स के संपर्क पर गाइडलाइन्स जारी करती हैं- इंटरनेशनल कमीशन ऑन नॉन-आयनाइज़िंग रेडिएशन प्रोटेक्शन, तथा इंटरनेश्नल कमेटी ऑन इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सेफ्टी- स्वास्थ पर असर की अपनी स्टडीज़ में, 300 गीगाहर्ट्स तक की रेडियो फ्रीक्वेंसीज़ कवर करती हैं, जिनमें 5जी के इस्तेमाल में आने वाली फ्रीक्वेंसीज़ भी शामिल हैं.

डब्लूएचओ फिलहाल सभी रेडियो फ्रीक्वेंसीज़ के संपर्क से, स्वास्थ्य को होने वाले ख़तरे का आंकलन कर रहा है, जिनमें वो फ्रीक्वेंसीज़ भी शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल 5जी के लिए किया जाएगा, और वो भी, जो पहले से ही इस्तेमाल हो रही हैं. इसकी रिपोर्ट 2022 में प्रकाशित होने की अपेक्षा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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