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Saturday, 16 November, 2024
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लोग तो नेताओं के बारे में लिखते रहते हैं, ऐसे तो आधा हिंदुस्तान जेल में होगा: प्रशांत कनौजिया

कोर्ट से तीन शर्तों पर रिहा हुए पत्रकार प्रशांत कनौजिया ने दिप्रिंट से की एक्सक्लूसिव बातचीत.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विवादित टिप्पणी देने के मामले में गिरफ्तार हुए पत्रकार प्रशांत कनौजिया रिहा हो गए हैं. शुक्रवार को दिप्रिंट हिंदी से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा है कि ऐसे तो लोग सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखते रहते हैं. इस तरह से अगर गिरफ्तारी होने लगे तो आधा हिन्दुस्तान जेल के अंदर होगा.

6 जून को पत्रकार प्रशांत कनौजिया ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक मीडिया संस्थान का वीडियो शेयर किया था. इसमें एक लड़की खुद को उप्र के सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रेमिका बता रही थी. प्रशांत ने वीडियो के साथ कैप्शन दिया था, ‘इश्क छुपता नहीं छुपाने से योगी जी.’ इस वीडियों के वायरल होने के बाद 8 जून को प्रशांत कनौजिया को उनके दिल्ली के मंडावली स्थित निवास से दोपहर 12:30 बजे गिरफ्तार किया गया. इस मामले में प्रशांत पर लखनऊ के हजरतगंज थाने में केस दर्ज किया गया था.

दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘मैं अपने घर से कुछ सामान लाने के लिए बाहर निकला था तभी मुझे एक फोन आया कि प्रशांत जी मैं सलीम ड्राइवर बोल रहा हूं. मैं आपसे पहले कही मिला हूं. मुझे आपसे एक मामले पर चर्चा करनी है. मैं उस व्यक्ति से मिलने नीचे गया. सीविल ड्रेस में चार से पांच लोग नीचे खड़े थे तभी उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा ओर कहा कि हम यूपी पुलिस से हैं. सीएम योगी के खिलाफ ​ट्वीट करने को लेकर कुछ मामला है. मुझे गाड़ी में बैठाकर लेकर चले गए. मुझे वारंट नहीं दिखाया गया. बैठाकर ले जाया गया.’

पुलिस की इस कार्रवाई का आपने कोई विरोध नहीं किया?

प्रशांत इस सवाल पर कहते हैं, ‘पहली बात तो मुझे समझ नहीं आया कि मेरे साथ क्या हो रहा है. कोई अपरहणकर्ता आया है या कोई पुलिस वाले. चार-पांच आदमी के सामने मैं कैसे विरोध कर सकता हूं. देश से अंग्रेज चले गए, लेकिन पुलिस को छोड़ गए. देश में जिस तरह से एनकाउंटर की श्रृखंला चल रही है. मैंने विरोध करना उचित नहीं समझा.

प्रशांत को 8 जून की रात न्यायिक हिरासत में ले लिया गया गया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका दायर की गई. कोर्ट ने 11 जून को सुनवाई करते हुए गिरफ्तारी को गलत बताया. फिर उन्हें रिहा कर दिया गया. वे तीन दिनों तक जेल में रहे और इस बीच खबरें आईं कि प्रशांत के साथ मार-पीट हुई है.


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जेल में बदसलूकी के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘जेल में आपके साथ हाथापाई नहीं होती है. वहां आपको केवल मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है. आपके साथ काम कराया जाएगा. मुझसे पहले दिन पेड़ों में पानी देने का काम कराया गया. चूंकि ये पहले से पता नहीं होता है इसलिए थोड़ी मानसिक प्रताड़ना हुई. हालांकि, दूसरे दिन से स्थितियां सुधर गई थीं. काम नहीं कराया गया लेकिन वहां जो अन्य कैदी हैं सिस्टम उनके साथ अमानवीय व्यवहार करता है. आप कितना भी उसे सुधारगृह कह लें लेकिन वहां अभियुक्तों को (जो सजायाफ्ता नहीं है) प्रताड़ित किया जाता है.’

वहीं प्रशांत की हुई गिरफ्तारी के बाद कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यूपी पुलिस की कार्रवाई को तो कठघरे में खड़ा करते हैं, लेकिन, इसे अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ने की कोशिश को गलत करार देते हैं. वे प्रशांत के पुराने पोस्ट और ट्वीट को उठाकर शेयर कर रहे हैं और उनको सवालों के घेरे में खड़ा कर रहै हैं.

इस पर प्रशांत कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट का तो मैं बहुत आभार व्यक्त करना चाहूंगा कि उसने लैंडमार्क (ऐतिहासिक) निर्णय दिया है. ऐसे वक्त पर जब इस तरह की गिरफ्तारियां कई राज्यों में हो रही हैं. बंगाल में हुआ, छत्तीसगढ़ में हुआ, और उत्तर प्रदेश में भारी संख्या में इस तरह की चीजें हुईं. और इससे पहले भी होता आया है. यहां तक कि महाराष्ट्र में बालसाहब ठाकरे के वक्त भी इस तरह की चीजें हुई थीं लेकिन जिस तरह से लोग कह रहे हैं, बहुत सारे लोग बहुत कुछ कहते हैं. मुझे लगता है हर आदमी के खिलाफ रोज लोग कुछ न कुछ लिखते हैं, राहुल गांधी, सोनिया गांधी के खिलाफ लोग लिखते हैं. मायावती के खिलाफ लिखने वालों को तो मंत्री बना दिया जाता है. उनके परिवार वालों को पार्टी में ले लिया जाता है. ऐसे में तो आप आधे हिंदुस्तान को जेल के अंदर ले लेंगे.’

प्रशांत कनौजिया ने पत्रकारिता के देश के प्रतिष्ठित संस्थान आईआईएमसी से पढ़ाई की है. 2015-16 बैच के छात्र रहे प्रशांत जब आईआईएमसी में थे तब भी वे एक बार विवादों के घेरे में पड़ गए थे. उस समय उनके साथ पढ़ने वाले एक छात्र के साथ उनकी फेसबुक पर बहस हो गई थी, जिसमें वे उसको जेल भेजने की बात कर रहे थे. जबकि उक्त छात्र ने अभिव्यक्ति की आजादी की बात कही थी. तो यह अलग-अलग मापदंड क्यो?

इस पर प्रशांत कहते हैं, ‘आप जिस घटना का जिक्र कर रहे हैं उसमें उक्त छात्र ने दलितों के लिए जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल किया था. आपको अगर संविधान की हल्की सी भी समझ हो तो दलित को जातिसूचक गाली देने पर सजा का प्रावधान है. जबकि मैंने केवल ह्यूमर (व्यंग) का इस्तेमाल किया है. क्या आप किसी को केवल व्यंग करने के आधार पर जेल भेज देंगे. क्या इस देश में व्यंग करना भी अब गुनाह है?’


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प्रशांत कनौजिया अब आगे क्या करेंगे?

इस पर वे कहते हैं, ‘पत्रकारों के खिलाफ हो रही घटनाओं के विरुद्ध में हमारा संघर्ष जारी रहेगा. बाकी गणेश शंकर विद्यार्थी मेरे आदर्श हैं और उनसे प्रेरणा लेते हुए हम अपनी पत्रकारिता जारी रखेंगे.’

वह पूरे घटनाक्रम के बारे में कहते हैं, ‘पार्टी कोई भी हो जब वो सत्ता में आती है तो उसकी विचारधारा केवल फांसीवाद ही होती है.’

बता दें, प्रशांत को तीन शर्तों पर जेल से रिहा किया गया है. पहला वे गवाहों के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं करेंगे, दूसरा कोर्ट में जब भी बुलाया जाएगा वे पेश होंगे और तीसरा कि वे ऐसी किसी भी गतिविधियों में संलिप्त नहीं होंगे.

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