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Wednesday, 12 November, 2025
होमदेशआरोपी को पकड़ने वाले थे J&K पुलिसकर्मी, साथी की गिरफ्तारी से ‘डरा’ उमर नबी; भागकर बचाई जान

आरोपी को पकड़ने वाले थे J&K पुलिसकर्मी, साथी की गिरफ्तारी से ‘डरा’ उमर नबी; भागकर बचाई जान

जांचकर्ताओं ने बताया कि 30 अक्टूबर को पुलवामा के मुज़म्मिल शकील की गिरफ्तारी और छापेमारी से घबराए डॉ. उमर नबी ने फरीदाबाद के अल-फलाह संस्थान से भागकर गिरफ्तारी से खुद को बचाया.

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नई दिल्ली: लाल किला के पास हुए ब्लास्ट केस का मुख्य आरोपी डॉ. उमर यू. नबी दिल्ली में विस्फोट करने से करीब एक हफ्ते पहले ही फरीदाबाद के अल-फलाह स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज़ एंड रिसर्च सेंटर से फरार हो गया था. दिप्रिंट को सूत्रों से यह जानकारी मिली है.

उमर अपने पुराने दोस्त और साथी पुलवामा के डॉ. मुज़म्मिल शकील की गिरफ्तारी और संस्थान में हुई छापेमारी से ‘घबरा’ गया था और जम्मू-कश्मीर पुलिस के उसे पकड़ने से पहले ही भाग निकला.

सुरक्षा एजेंसी के एक अधिकारी ने बताया, “यह केस बहुत पेशेवर तरीके से जांचा जा रहा है, बिना किसी बेवजह की गिरफ्तारी या हिरासत के. जब फरीदाबाद में मुज़म्मिल के ठिकानों पर छापेमारी हुई, तो उमर को लग गया होगा कि अब उसके दिन गिने-चुने हैं. मुज़म्मिल के कुछ भी बताने से पहले ही वह भाग गया.”

घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए एक दूसरे अधिकारी ने बताया कि श्रीनगर पुलिस ने 30 अक्टूबर को मुज़म्मिल को फरीदाबाद से गिरफ्तार किया था.

उन्होंने कहा, “शुरुआत में मुज़म्मिल से जानकारी निकालना मुश्किल था, लेकिन तीसरे दिन उसने दो और डॉक्टरों के नाम बताए—अनंतनाग के डॉ. आदिल अहमद राठर और पुलवामा के डॉ. उमर नबी.” अधिकारी के मुताबिक, 2 नवंबर तक जांचकर्ता उमर की भूमिका से अनजान थे.

पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) से जुड़े इस मॉड्यूल का पर्दाफाश तब शुरू हुआ जब श्रीनगर पुलिस को शोपियां जिले के एक मौलवी (धार्मिक उपदेशक) की संलिप्तता के बारे में सुराग मिला. माना जा रहा है कि इस मॉड्यूल में करीब 12 लोग शामिल हैं, जिनमें चार डॉक्टर भी हैं, जिन पर दिल्ली ब्लास्ट में शामिल होने का शक है.

जम्मू-कश्मीर पुलिस की जांच 19 अक्टूबर को श्रीनगर के बाहरी इलाके में लगे कुछ पोस्टरों से शुरू हुई थी, जिनमें जैश-ए-मोहम्मद की तारीफ की गई थी और “बदले की कार्रवाई” की धमकी दी गई थी. इस पोस्टर मामले में गैर-कानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (यूएपीए), भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और आर्म्स एक्ट की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है.

मंगलवार तक पुलिस ने आठ संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया था, जिनमें डॉक्टर आदिल, मुज़म्मिल और लखनऊ के रहने वाले शाहीन सईद शामिल हैं. शाहीन पर आरोप है कि उसने मॉड्यूल के अन्य सदस्यों, खासतौर पर मुज़म्मिल, की मदद की थी.

‘मौलवी ने किए अहम खुलासे’

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सबसे पहले आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिरुल अशरफ और मकसूद अहमद डार उर्फ शाहिद नाम के तीन लोगों को गिरफ्तार किया था. ये तीनों कथित तौर पर ओवरग्राउंड वर्कर (OGWs) थे और उन पर श्रीनगर में पोस्टर चिपकाने का शक था.

केस से जुड़े एक सूत्र ने बताया, “तीनों से पोस्टर के सोर्स और इसके पीछे कौन है, इस बारे में पूछताछ की गई. उनकी गवाही से हमें शोपियां के मौलवी इरफान अहमद वगाय का पता मिला. वगाय शोपियां की एक मस्जिद में प्रचारक रहा है और जांच में पता चला कि वह मस्जिद में आने वाले कई युवाओं को उकसाने (ब्रेनवॉश करने) में शामिल था.”

अधिकारियों ने माना कि इस मॉड्यूल का असली आकार वगाय की गिरफ्तारी के बाद ही सामने आया. उसी ने बताया कि वह कश्मीर के कई डॉक्टरों से संपर्क में था जो केंद्र शासित प्रदेश के बाहर नौकरी कर रहे थे.

सूत्र के मुताबिक, “वगाय एक OGW था और अक्सर श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में आतंकियों के लिए दवाइयां लेने आता-जाता था. इन्हीं दौरों के दौरान उसने कुछ डॉक्टरों को चिन्हित किया जिन्हें वह अपने विचारों से प्रभावित कर सकता था.”

जब वगाय ने मॉड्यूल के विस्तार के बारे में बताना शुरू किया, तब जम्मू-कश्मीर पुलिस के जांचकर्ताओं को असली चुनौती समझ में आई. उसने उन्हें गांदरबल के रहने वाले जमीर अहमद अहांगर तक पहुंचाया, जिसने आगे जाकर इस मॉड्यूल में शामिल डॉक्टरों की पहचान बताई.

दोनों के खुलासों के आधार पर पुलिस ने एक टीम फरीदाबाद भेजी और स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर अल-फलाह मेडिकल कॉलेज में छापेमारी की, जहां से 30 अक्टूबर को मुज़म्मिल को गिरफ्तार किया गया. उसे तीन दिन के ट्रांज़िट रिमांड पर श्रीनगर ले जाया गया.

1 नवंबर को उसे 15 दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया और 2 नवंबर को ही उसने मॉड्यूल में शामिल अन्य डॉक्टरों के नाम बताए.

एक पुलिस अधिकारी ने बताया, “जब तक टीम उमर को पकड़ने फरीदाबाद में छापेमारी करने पहुंची, तब तक वह भाग चुका था.”

अधिकारी ने कहा कि देर से मिली जानकारी की वजह से छापेमारी और बरामदगी की कार्रवाई धीमी पड़ी.

मुज़म्मिल की पूछताछ के दौरान जांचकर्ताओं को अल-फलाह संस्थान की एक और फैकल्टी सदस्य शाहीन सईद की कार से एक अत्याधुनिक असॉल्ट राइफल भी मिली. वह सोमवार को पूछताछ के लिए आई तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

केस से जुड़े चौथे सूत्र ने बताया, “मुज़म्मिल और उमर की कई मुलाकातें शाहीन की मौजूदगी में हुईं, लेकिन उसने कभी इसकी सूचना नहीं दी. उसने राइफल अपनी कार में रखने से भी इनकार नहीं किया और मामला खुलने के बाद ही उसे फेंका. वह मुज़म्मिल को तीन-चार साल से जानती थी और उसने यह भी कबूल किया कि उसने उसे आर्थिक मदद दी थी.”

सूत्र ने कहा, “अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि यह आर्थिक मदद सामान्य कामों के लिए थी या आतंकी गतिविधियों के लिए.”

मुज़म्मिल के और खुलासों ने जांचकर्ताओं को सहारनपुर के एक मेडिकल कॉलेज तक पहुंचाया, जहां से आदिल को गिरफ्तार किया गया. आदिल की जानकारी के आधार पर जांचकर्ताओं ने जीएमसी अनंतनाग में उसके नाम से दर्ज एक लॉकर से एके-47 राइफल बरामद की.

दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट की थी कि तीनों—आदिल, मुज़म्मिल और उमर ने जीएमसी श्रीनगर से एमबीबीएस किया था, फिर जीएमसी अनंतनाग में रेजिडेंट डॉक्टर बने और बाद में फैकल्टी के तौर पर शामिल हुए.

मुज़म्मिल और आदिल की पूछताछ के आधार पर जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त टीम ने सोमवार को फरिदाबाद के धौज थाना क्षेत्र के फतेहपुर टागा गांव में मुज़म्मिल द्वारा किराए पर ली गई जगह से 2,500 किलो से ज्यादा आईइडी बनाने का सामान बरामद किया. इनमें से करीब 360 किलो अमोनियम नाइट्रेट भी था, जो अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ है और माना जा रहा है कि लाल किले के पास हुए ब्लास्ट में इसी का इस्तेमाल हुआ.

सोमवार को जब यह छापेमारी चल रही थी, उसी दौरान उमर को बदरपुर बॉर्डर से दिल्ली में एक ह्यूंदै i20 कार में घुसते देखा गया. बाद में यही कार लाल किले के पास हुए धमाके का स्रोत बनी, जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई और करीब दो दर्जन लोग घायल हुए.

गृह मंत्रालय ने इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी, जिसने मंगलवार दोपहर औपचारिक जांच शुरू की.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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