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Friday, 22 November, 2024
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गुमनाम रहने वाला जेहादी फाइनांसर अब भारत में भर्ती के लिए सोशल मीडिया का कर रहा इस्तेमाल

भगोड़ा जेहादी 59 साल का फरहातुल्ला गोरी इस कदर छुपा रहता है कि इंटरपोल भी उसकी कभी कोई साफ तस्वीर नहीं पा सका. अब उसने अल कायदा और लश्कर-ए-तैयबा की भर्ती के लिए सोशल मीडिया नेटवर्क बनाया है.

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नई दिल्ली: खुफिया सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि 59 साल के जेहादी फरहातुल्लाह गोरी ने भारत में अल-कायदा और लश्कर-ए-तैयबा के संभावित रंगरूटों की भर्ती के लिए सोशल मीडिया का नेटवर्क बना लिया है. जबकि फरहातुल्लाह अपने करीब तीन दशकों के आतंकी करियर में इस कदर छुपा रहा है कि इंटरपोल भी कभी उसकी साफ तस्वीर नहीं पा सका.

गोरी ने ऑनलाइन प्रसारित एक भाषण में कहा, ‘भारत में मुसलमानों की जिंदगी और मान-सम्मान खतरे में है लेकिन मुजाहिद्दीन अत्याचारियों के गले की फांस बनने की तैयारी कर रहे हैं. मुसलमान जल्दी ही अत्याचार की जंजीरों को तोड़ देंगे.’

हाल के ही एक दूसरे भाषण में गोरी ने जज ए.आर. पटेल की हत्या का फरमान जारी किया, जिन्होंने अहमदाबाद और सूरत के बम धमाकों में इंडियन मुजाहिद्दीन के खिलाफ मुकदमों पर फैसला सुनाया था.

सूत्रों के मुताबिक, लगता है कि गोरी की सोशल मीडिया पर नई पेशकश का मकसद भारत में जारी सांप्रदायिक हिंसा में इजाफे का फायदा उठाकर नई पीढ़ी के जेहादी वॉलेंटियरों पर डोरे डालना और जेहादी नेटवर्क को बड़ा बनाना है.

गोरी के मामले से वाकिफ तेलंगाना पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘भारतीय जेहादी मुहिम भर्ती के लिए मौलवियों और दूसरे लोगों के बेहद करीबी घेरे पर ही भरोसा करता रहा है. इससे उसका काम आसान हुआ है क्योंकि खुफिया तंत्र की पहुंच इन करीबी समूहों तक नहीं हो पाती है. गोरी जैसा सोशल मीडिया पर आ जाए तो समझिए की वक्त कितना बदल गया है.’

हैदराबाद में जन्मा गोरी पुलिसिया पड़ताल में 2001 से ही है लेकिन उसने कभी कोई भाषण या इंटरव्यू नहीं दिया. संबंधित सरकारों को गोरी की गिरफ्तारी के लिए जारी इंटरपोल के लुकआउट नोटिस में भी यही जिक्र है कि वह दाढ़ी रखता है, तोंद निकली हुई है और लगातार धूम्रपान करता है.


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गुमनामी की जिंदगी

गोरी की जिंदगी के बेहद मामूली ब्यौरे ही उपलब्ध हैं. कहा जाता है कि वह 1994 तक हैदराबाद के कुर्मागुडा इलाके में रहा था. 1992-93 में भारी सांप्रदायिक दंगों के बाद वह दरसगाह जेहाद-ओ-शहादत या जेहाद और शहीदी के केंद्र से जुड़ गया. इस दक्षिणपंथी गुट को प्रमुख मौलवी नसीरुद्दीन मोहम्मद हनीफुद्दीन ने बनाया था.

बाद में 1995 के आखिर में गोरी सऊदी अरब चला गया. भारतीय खुफिया सूत्रों के मुताबिक, वह भारतीय जेहादियों के लिए खास फाइनांसर बनकर उभरा, जो भारत में आतंकी सेल बनाना और उन्हें जैश-ए-मोहम्मद या लश्कर-ए-तैयबा की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजना चाहते थे.

गोरी कभी किसी एक जेहादी गुट के साथ नहीं जुड़ा. इसके बदले वह जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे तमाम गुटों के वॉलेंटियरों से अपने व्यक्तिगत संबंधों और नेटवर्क का इस्तेमाल करता रहा है.
पुलिस जांचकर्ताओं के मुताबिक गोरी ने हैदराबाद में कई आतंकी हमलों के लिए वित्तीय मदद की. उसमें शहर के मंदिर में 2002 में बम धमाके, 2005 में एक पुलिस दफ्तर पर फिदायीन हमला और भारतीय जनता पार्टी के नेता नल्लू इंद्रसेना रेड्डी की हत्या की कोशिश शामिल है.

आरोप यह भी है कि उसने कई लोगों को पाकिस्तान के ट्रेनिंग कैंप में भेजने के लिए भी पैसा मुहैया कराया. पुलिस जांचकर्ताओं का दावा है कि गोरी के भर्ती किए रंगरूटों में मौलाना नसीरुद्दीन का बेटा राजीउद्दीन नसीर भी है, जो अहमदाबाद बम धमाके में शिरकत के मामले में इसी साल बरी हो गया है.

गोरी के दामाद सैयद जकीर रहीम को 2017 में सऊदी अरब से वापस भेज दिया गया था. उस पर हैदराबाद में एक हिंदू राष्ट्रवादी नेता की हत्या का साजिश रचने का आरोप था.

कहा जाता है कि फंडिंग के सिलसिले में सबील अहमद भी मददगार था, जिस डॉक्टर को सऊदी अरब से 2020 में वापस भेजा गया था. वह ग्लासगो एयरपोर्ट पर फिदायीन हमले में शामिल कफील अहमद का बड़ा भाई है.

गोरी ने मुश्किल में जिंदगी बिता रहे भारतीय जेहादियों के लिए सामाजिक सुरक्षा जैसा भी कुछ मुहैया कराया था.

हैदराबाद में मोबाइल फोन का सेल्समैन रह चुका शेख अब्दुल ख्वाजा ने पुलिस को बताया था कि वह 2009 में रियाद के पुराने शहर में बताह मोहल्ले के गोरी के घर में रहा था. ख्वाजा ने यह भी बताया कि लश्कर ने आतंक से जुड़े काम न कर पाने पर उसकी 30,000 रुपए महीने का भगुतान रोक दिया तो उसने गोरी से मदद ली थी.


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लश्कर और अल-कायदा से जुड़ाव

सऊदी अरब ने 2010 के आखिर में भारतीय जेहादियों पर दबिश तेज की तो बताया जाता है कि गोरी पाकिस्तान चला गया. जेहादियों की भर्ती की साजिश के लिए मुकदमा झेल रहे मौलवी अब्दुल रहमान अली खान ने पुलिस को बताया कि 2015 में रावलपिंडी में वह गोरी के साथ ठहरा था. हालांकि उसकी यह गवाही भारतीय कानून के तहत मुकदमे में मान्य नहीं है.

खान के मुताबिक, गोरी पांच कमरे के अपार्टमेंट में अपनी बीवी और दो वयस्क बेटों के साथ रहता था.

खान ने पुलिस को बताया कि गोरी से मुलाकात सैयद मुहम्मद अर्शियां हैदर ने करवाई थी. अर्शियां रांची में जन्मा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ा इंजीनियार है, जो फिलहाल तुर्की की जेल में है. उस वक्त वह सऊदी अरब में रह रहा था और कहा जाता है कि उसने इस्लामिक स्टेट को फिदायीन ड्रोन और छोटी दूरी मार करने वाले रॉकेट बनाने में मदद की थी.

कथित तौर पर गोरी ने खान की मुलाकात लश्कर-ए-तैयबा के एक आला कमांडर साजिद मीर से करवाने में मदद की थी, जिसने 26/11 के मुंबई हमले में प्रमुख भूमिका निभाई थी. कथित तौर पर खान ने बताया कि मीर ने उसे लश्कर के सबसे बड़े सरगना जकीउर रहमान लखवी से अदैला जेल में मिलवाया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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