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Monday, 23 December, 2024
होमदेशऑपरेशन वेस्ट एंड- 2001 का तहलका का स्टिंग जो जया जेटली को दोषी ठहराने का आधार बना

ऑपरेशन वेस्ट एंड- 2001 का तहलका का स्टिंग जो जया जेटली को दोषी ठहराने का आधार बना

ऑपरेशन में पत्रकारों को एक काल्पनिक विदेशी हथियार कंपनी के प्रतिनिधियों के तौर पर पेश किया गया. राजनेताओं और सैन्य अधिकारियों के साथ सौदे पर बातचीत और उनके द्वारा रिश्वत लिए जाने को छिपे हुए कैमरों के जरिये रिकॉर्ड किया गया.

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नई दिल्ली: सीबीआई की एक विशेष अदालत ने पिछले हफ्ते समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली और दो अन्य को 2001 में रक्षा सौदे से जुड़े भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराया है.

न्यायाधीश वीरेंद्र भट ने जेटली के साथ पार्टी में उनके सहयोगी गोपाल पचेरवाल और सेवानिवृत्त मेजर जनरल एस.पी. मुरगई को भी दोषी ठहराया.

यह मामला 2001 में रक्षा सौदों में कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए समाचार पोर्टल तहलका डॉट कॉम की तरफ से किए गए एक स्टिंग ‘ऑपरेशन वेस्ट एंड’ के आधार पर शुरू किया गया था.

दिप्रिंट बता रहा है कि स्टिंग ने क्या खुलासा किया था और इसके बाद मामले में क्या कानूनी कार्यवाही हुई.

क्या था स्टिंग

ऑपरेशन वेस्ट एंड’ की गाज भारत के तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस, भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण समेत सत्तारूढ़ गठबंधन के वरिष्ठ सदस्यों, और सशस्त्र बलों के कम से कम पांच बड़े अधिकारियों पर गिरी थी. स्टिंग में पत्रकारों को एक काल्पनिक विदेशी हथियार कंपनी के प्रतिनिधियों के तौर पर पेश किया गया. उन्होंने भारतीय सेना को थर्मल कैमरे और अन्य उपकरण बेचने की पेशकश की. राजनेताओं और सैन्य अधिकारियों के साथ सौदे पर बातचीत और उनके द्वारा रिश्वत लिए जाने को छिपे हुए कैमरों के जरिये रिकॉर्ड किया गया.

स्टिंग ऑपरेशन के बाद सीबीआई की तरफ से कई आरोप पत्र दायर किए गए थे. जेटली, मुरगई और पचेरवाल के अलावा अन्य आरोपियों में लक्ष्मण, रक्षा मंत्रालय के सहायक वित्तीय सलाहकार नरेंद्र सिंह और समता पार्टी के कोषाध्यक्ष आर.के. जैन शामिल थे.

सीबीआई की विशेष अदालत ने 27 अप्रैल 2012 को लक्ष्मण को चार साल जेल की सजा सुनाई. उसी वर्ष अक्टूबर में दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य कारणों से लक्ष्मण को जमानत दे दी. 2014 में उनका निधन हो गया.

इस बीच, फर्नांडीस को इस घोटाले की जांच के लिए नियुक्त एक सदस्यीय आयोग की तरफ से कथित तौर पर क्लीन चिट दे दी गई. जस्टिस (सेवानिवृत्त) एस.एन. फुकन की अध्यक्षता वाले आयोग ने अपने निष्कर्ष में कहा कि इस सौदे में फर्नांडीस की तरफ से कोई ‘अनियमितता नहीं’ पाई गई है.

लेकिन बाद में यूपीए सरकार की तरफ से आयोग की इस रिपोर्ट का बहिष्कार किया गया और जस्टिस फुकन ने दावा किया कि उन्होंने ‘कभी भी जॉर्ज फर्नांडीस को निर्दोष नहीं कहा.’


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मुकदमे की कार्यवाही

सीबीआई ने 2006 में जेटली, पचेरवाल और मुरगई के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप पत्र दायर किया था.

इसमें चौथा आरोपी बनाया गया कानपुर के एक उद्योगपति सुरेंद्र कुमार सुरेखा को, जो बाद में इस मामले में गवाह बन गए. इन चारों के खिलाफ मामला 6 दिसंबर 2004 को दर्ज किया गया था.

जांच एजेंसी ने कथित तौर पर कहा कि तहलका के पत्रकारों ने रक्षा मंत्रालय से उपकरणों की खरीद का ऑर्डर हासिल करने के लिए मुरगई और सुरेखा के माध्यम से जेटली की सहायता मांगी थी.

सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में यह भी दावा किया था कि इस उद्देश्य के लिए जेटली के कहने पर पचेरवाल को 2 लाख रुपये दिए गए थे. यह लेन-देन फर्नांडीस के घर हुई एक बैठक के दौरान हुआ, जिसमें मुरगई और सुरेखा भी मौजूद थे.
जेटली की एक वीडियो रिकॉर्डिंग में उन्हें कथित तौर पर यह कहते दिखाया गया था कि अगर उनकी फर्म पर विचार नहीं किया गया तो वह ‘साहिब के दफ्तर’ में बोल देंगी. सुरेखा को कथित तौर पर उनकी सेवाओं के लिए 1 लाख रुपये का भुगतान किया गया, जबकि मुरगई को नियमित रूप से भुगतान किया गया.

सीबीआई अदालत ने अब तीनों को आपराधिक साजिश रचने और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अन्य प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया है. सजा की अवधि पर बहस की सुनवाई 29 जुलाई को होगी.

तहलका की विश्वसनीयता पर सवाल उठा

हालांकि, तहलका अपने स्टिंग को लेकर खुद भी घिर गया जब सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों के जवाब में तहलका द्वारा अपनाए गए तरीकों पर सवाल उठाए.

दावा किया गया कि आरोप भ्रामक संदर्भों और छेड़छाड़ कर तैयार की गई तस्वीरों पर आधारित थे. ऐसी खबरें भी आई थीं कि स्टिंग दौरान तहलका के पत्रकारों ने कथित तौर पर महिलाओं का गलत तरह से इस्तेमाल किया. इस रहस्योद्घाटन पर अगस्त 2001 में लोकसभा में तमाम सदस्यों, खासकर वह जो सत्तारूढ़ गठबंधन में थे, ने इन टेप के फिल्मांकन में शामिल टीम की गिरफ्तारी की मांग करते हुए खासा हंगामा किया.

हालांकि, तहलका ने यौनकर्मियों के इस्तेमाल और सेक्स को टेप किए जाने को यह कहते उचित ठहराया कि रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किए जाने के मकसद को देखते हुए यह सब जायज था.

उस समय तहलका प्रमुख तरुण तेजपाल ने कहा था कि उन्होंने इन टेप को पब्लिक डोमेन में न डालने का एक नैतिक निर्णय लिया था क्योंकि उन्हें लगा कि यह लोगों का ध्यान असली मुद्दों से भटका देगा.

उन्हें यह कहते उद्धृत किया गया, ‘इस पर्दाफाश का उद्देश्य सेक्स और अनैतिकता नहीं था. बल्कि यह सरकार में बैठे भ्रष्ट लोगों को सामने लाने के लिए था. अगर हम सेक्स टेप का एक फ्रेम भी चला दें तो यह लोगों का ध्यान भ्रष्टाचार के बड़े मुद्दे की तरफ से हटा देगा.’

हालांकि, जब यह पूछा गया कि सेक्स को टेप क्यों किया गया, तो तेजपाल का कहना था कि यह ‘फंक्शनल रीजन’ से किया गया. जांच के दौरान यह पूछे जाने पर कि रिपोर्टर ने अधिकारियों में से एक के सामने अपनी सेक्रेटरी की पेशकश क्यों की थी, उन्होंने आगे कहा था, ‘हथियार सौदों में पैसा, शराब और महिलाओं का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा, यह मांग उनकी तरफ से आई थी. उन्होंने ही इस पर जोर दिया था.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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