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Friday, 15 November, 2024
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पुलिस हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले में आईपीएस संजीव भट्ट को उम्र कैद

2011 में जब संजीव ने तत्काली सीएम मोदी के खिलाफ 2002 के दंगे से जुड़े मामले में शामिल होने का आरोप लगाया और सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर किया उसके बाद से ही संजीव भट्ट के मुसीबतें शुरू हो गईं.

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नई दिल्ली: गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को जामनगर की सत्र न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई है. भट्ट को 1990 में पुलिस हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले में यह सजा सुनाई गई है. कुछ हफ्ते पहले सर्वोच्च अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था. भट्ट ने अपनी याचिका में अपने खिलाफ हिरासत में हुई मौत के मामले में गवाहों की नए सिरे से जांच की मांग की थी. हिरासत में मौत के 30 साल पुराने मामले में 11 अतिरिक्त गवाहों की भी जांच करने पर विचार करने की दरख्वास्त लगाई थी. संजीव ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था.

गुजरात उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ मुकदमे के दौरान कुछ अतिरिक्त गवाहों को गवाही के लिए समन देने के उनके आग्रह से इनकार कर दिया था. गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि निचली अदालत ने 30 साल पुराने हिरासत में हुई मौत के मामले में पहले ही फैसले को 20 जून के लिए सुरक्षित रखा था.

न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी व न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की सर्वोच्च न्यायालय की अवकाश पीठ ने गुजरात सरकार व अभियोजन पक्ष की दलील को माना था कि सभी गवाहों को पेश किया गया था, जिसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था. अब दोबारा मुकदमे पर सुनवाई करना और कुछ नहीं है, बल्कि देर करने की रणनीति है.

क्या था पूरा मामला

भट्ट 1989 के हिरासत में हुई मौत के मामले के आरोपी हैं. यह घटना उनके गुजरात के जामनगर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के कार्यकाल के दौरान हुई थी. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि यह मामला एक सांप्रदायिक दंगे से जुड़ा था जब भट्ट ने सौ से अधिक लोगों को हिरासत में लिया था और इनमें से एक हिरासत में लिए गए व्यक्ति की मौत उसकी रिहाई के बाद अस्पताल में हुई थी.

जामनगर में भारत बंद के दौरा हुई हिंसा में पुलिस ने करीब 133 लोगों को गिरफ्तार किया था जिसमें करीब 25 लोग घायल हुए थे, जिसमें आठ गंभीर रूप से घायल हुए थे जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. न्यायिक हिरासत में रहने के बाद एक आरोपी प्रभुदास माधवजी वैश्नानी की मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद से संजीव और उनके कई सहयोगियों पर हत्या का आरोप लगा था. इस मामले में संजीव सहित उनके कई साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था, लेकिन उस दौरान चूंकि राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे जिन्होंने उनपर मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी थी. लेकिन 2011 में जब संजीव ने तत्कालीन सीएम मोदी के खिलाफ 2002 के दंगे से जुड़े मामले में शामिल होने का आरोप लगाया और सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर किया उसके बाद से ही संजीव भट्ट के मुसीबतें शुरू हो गई.

भट्ट पर लगे हैं और भी कई आरोप

संजीव भट्ट को बिना किसी स्वीकृत मंजूरी के गैरहाजिर रहने,आवंटित सरकारी वाहन के दुरुपयोग को लेकर 2011 में निलंबित कर दिया गया था. फिर उन्हें 2015 में बर्खास्त कर दिया गया.

संजीव को हिरासत में

गुजरात पुलिस ने 5 सितंबर 2018 को पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को हिरासत में लिया था. भट्ट को 1998 में एक आपराधिक मामले में झूठे तरीके से एक वकील को फंसाने से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था.

संजीव भट्ट जब उत्तर गुजरात के बनासकांठा में पुलिस अधीक्षक के रूप में सेवाएं दे रहे थे तो उन पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंट (एनडीपीएस) तहत एक फर्जी मामले में एक वकील को फंसाने का आरोप भी लगा है.

संजीव भट्ट ने 2011 में पीएम मोदी पर 2002 के दंगों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया था.

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