जम्मू : एक अभूतपूर्व फ़ैसले में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा विधानसभा अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म किए जाने के साथ ही लगभग 17 दिनों से चले संवैधानिक संकट का अंत हो गया है और विधानसभा अध्यक्ष को लेकर स्थिति स्पष्ट हो गई है.
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने विधानसभा अध्यक्ष को लेकर फैले भ्रम को दूर करते हुए बकायदा एक अधिसूचना जारी कर दी है. इस अधिसूचना में साफ कहा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष के रूप में निर्मल सिंह का कार्यकाल 31 अक्टूबर 2019 को समाप्त हो चुका है. प्रशासन द्वारा जारी अधिसूचना के बाद खत्म हुई असमंजस की स्थिति के बाद वह विधानसभा अध्यक्ष के पद से पदमुक्त हो गए हैं.
देश में यह अपनी तरह का पहला मामला है. यहां पर एक विधानसभा अध्यक्ष को प्रशासनिक आदेश के बाद इस तरह से अपना पद छोड़ना पड़ा है.
मामला बेहद दिलचस्प है और कई तरह की क़ानूनी उलझनों में उलझा हुआ है.
यही नहीं एक बड़ा सवाल अभी भी क़ायम है कि आखिर बिना किसी संवैधानिक अधिकार के लगभग 17 दिनों तक निर्मल सिंह विधानसभा अध्यक्ष के पद पर कैसे बने रहे और तमाम सुविधाओं का लाभ किस तरह से उठाते रहे. नियमों की जानकारी के अभाव और भ्रम में 17 दिनों तक उनका विधानसभा अध्यक्ष बने रहना अपनी तरह का देश में पहला और अनोखा मामला है.
हालांकि सिंह प्रशासन के फ़ैसले को लेकर ख़ुश नही हैं और अभी भी इसे संविधान का उल्लंघन मान रहे हैं. उनका कहना है कि यह मामला विधायिका की स्वतंत्रता और संविधान की गरिमा का है और इस विषय पर विशेषज्ञों में चर्चा होनी चाहिए. अपने आप में यह बहस का मुद्दा है.
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बन चुकी थी विकट स्थिति
उल्लेखनीय है कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद भी जम्मू-कश्मीर में 17 दिनों तक भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता निर्मल सिंह द्वारा विधानसभा अध्यक्ष का कार्यभार संभाले रखने से विकट स्थिति पैदा दो गई थी.
दरअसल गत 31 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया था और राज्य दो हिस्सों में बंट गया था. इसी तरह से एक नवंबर 2019 से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आ गए थे. मगर जम्मू कश्मीर विधानसभा को लेकर स्थिति साफ नही हुई और एक भ्रम की स्थिति बनी रही.
निर्मल सिंह 31 अक्टूबर 2019 के पहले की स्थिति अनुसार जम्मू कश्मीर राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष पद पर बने रहे और कार्य भी करते रहे. इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष के रूप में निर्मल सिंह कार्यालय भी जाते रहे और विधानसभा कर्मचारियों व अधिकारियों की बैठकें भी लेते रहे. सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी विधानसभा अध्यक्ष के रूप में सिंह भाग लेते रहे.
यही नहीं इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर मिली तमाम सुविधाओं का भी वह लाभ उठाते रहे. लगभग 17 दिनों की ना-नुकुर के बाद आखिर जम्मू-कश्मीर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता निर्मल सिंह को विधानसभा अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा है.
क्या कहते हैं कानूनी विशेषज्ञ
कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि जब 31 अक्टूबर 2019 को पूर्ण राज्य के रूप में जम्मू-कश्मीर का दर्जा ही खत्म हुआ तो उसके साथ ही विधानसभा का कानूनी और तकनीकी रूप से अस्तित्व भी अपने आप ही समाप्त हो गया. जम्मू कश्मीर के मामले में यह स्थिति और भी अलग हैं क्योंकि यहां न सिर्फ पूर्ण राज्य का दर्जा ही खत्म हुआ बल्कि राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया.
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील शेख शकील का कहना है कि निर्मल सिंह 31 अक्टूबर 2019 से पहले तक पूर्ण जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष थे मगर अब न सिर्फ राज्य का दर्जा बदल गया है बल्कि लद्दाख अब न तो जम्मू-कश्मीर का हिस्सा रह गया है और न ही जम्मू कश्मीर विधानसभा से लद्दाख का कोई संबंध शेष बचा है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वरिष्ठ वकील रविन्द्र शर्मा स्थिति स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि संविधान में यह प्रावधान है कि जब तक नई विधानसभा का गठन नही होता, भंग विधानसभा के अध्यक्ष अपने पद पर बने रह सकते हैं. मगर जम्मू-कश्मीर का जब नए सिरे से पुनर्गठन हुआ है तो पुरानी व्यवस्था बदल गई है. पुरानी विधानसभा का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है और उसके साथ ही विधानसभा अध्यक्ष को मिले सभी अधिकार और प्रावधान भी. शर्मा का कहना है कि इसी बारीक तकनीकी फ़र्क़ को निर्मल सिंह समझ नहीं पाए और अपने पद पर बने रहे. शर्मा का कहना है कि 31 अक्टूबर 2019 के बाद कानूनी और तकनीकी रूप से जम्मू-कश्मीर का स्वरूप ही बदल गया है ऐसे में उनका विधानसभा का अध्यक्ष बने रहना गलत था.
रविन्द्र शर्मा का कहना है कि जब तक केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर की नई विधानसभा का गठन नहीं हो जाता तब तक संविधान के तमाम प्रावधानों की तरह भंग विधानसभा को लेकर रखे गए प्रावधान भी किसी भी तरह से प्रभावी नहीं होते.
विवादों से पुराना नाता
निर्मल सिंह का विवादों से पुराना नाता रहा है. जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री रहते जम्मू के करीब एक सैन्य आयुद्ध डिपो के पास घर बनाने को लेकर उनका सेना के साथ गहरा विवाद हो गया था.
इसी तरह से जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने कश्मीर में मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादी बुरहान वानी को लेकर भी एक विवादास्पद बयान दे डाला था. उन्हीं दिनों जम्मू के करीब नगरोटा में हुए आतंकवादी हमले को लेकर भी उनकी ज़ुबान फिसल गई थी.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अध्यक्ष रहते सिंह के नाम एक ओर विवाद उस समय जुड़ा जब 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर धारा-370 को हटाया गया. उन्होंने मीडिया में सुर्ख़ियां बटोरने के लिए बिना किसी आधिकारिक आदेश का इंतज़ार किए ही अपने सरकारी वाहन से राज्य का ध्वज हटा दिया जबकि राज्य विधानसभा और सचिवालय सहित अन्य कई इमारतों पर आधिकारिक आदेश आने तक राष्ट्रीय ध्वज के साथ-साथ राज्य का ध्वज भी पहले की तरह लहराता रहा. इस मामले पर भी निर्मल सिंह की काफी किरकिरी हुई थी.
अपनों और विपक्ष के निशाने पर रहे
विधानसभा अध्यक्ष के पद पर बने रहने और तमाम सुविधाओं का लाभ उठाते रहने की वजह से निर्मल सिंह लगातार विपक्ष के निशाने पर भी थे. जम्मू कश्मीर पैंथर्स पार्टी ने कई दिन से बकायदा इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया हुआ था. उनको भारतीय जनता पार्टी के भीतर से भी इस मुद्दे पर विरोध झेलना पड़ रहा था. पार्टी का एक गुट लगातार उन पर विधानसभा अध्यक्ष का पद छोड़ने का दबाव बना रहा था मगर वह और उनके समर्थक संविधान का हवाला देते चले जा रहे थे.
सूत्रों के अनुसार पार्टी की ओर से भी उन्हें विधानसभा अध्यक्ष के पद को छोड़ देने की सलाह दी गई थी मगर निर्मल सिंह कानूनी किताबों का हवाला देते रहे.
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मन्होत्रा मानते हैं कि यह राजनीतिक शुचिता का भी प्रश्न है. वह मानते हैं कि निर्मल सिंह को राजनीतिक परिपक्वता दिखानी चाहिए थी और बदली परिस्थितियों में खुद ही पद त्याग देना चाहिए था. मगर जिस ढंग से क़ानूनी उधेड़-बुन में उलझ गए उससे राजनीतिक रूप से उन्हें ही नुकसान पहुंचा है.
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यहां यह उल्लेखनीय है कि 2014 में बनी भारतीय जनता पार्टी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सरकार बनने पर निर्मल सिंह उपमुख्यमंत्री बने थे मगर भाजपा आलाकमान उनके प्रदर्शन से संतुष्ट नही रहा. इसी वजह से उनको उपमुख्यमंत्री पद से हटा कर विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया था.
जम्मू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे निर्मल सिंह 10 मई 2018 को जम्मू कश्मीर विधानसभा के अध्यक्ष बने. लेकिन कुछ ही दिनों बाद 19 जून 2018 को भारतीय जनता पार्टी ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से समर्थन वापस ले लिया और भाजपा-पीडीपी की सरकार गिर गई. विधानसभा अध्यक्ष रूप में उनको विधानसभा के एक भी सत्र की अध्यक्षता करने का मौका नही मिला.
21 नवंबर 2018 को तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जम्मू कश्मीर विधानसभा को भंग कर दिया. राज्यपाल द्वारा विधानसभा को भंग किए जाने के बावजूद उस समय जम्मू-कश्मीर में लागू राज्य के अपने संविधान के खंड 58 के अनुसार निर्मल सिंह विधानसभा के अध्यक्ष बने रहे.
(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)