scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशजम्मू कश्मीर के पंचायत सदस्यों में आक्रोश, दोबारा पंचायत चुनाव की मांग

जम्मू कश्मीर के पंचायत सदस्यों में आक्रोश, दोबारा पंचायत चुनाव की मांग

प्रशासन ने उल्लेखित किया है कि राज्य के 390 पंचायतों को चलाने के लिए पर्याप्त सदस्यों का अभाव है. इसमें से 368 कश्मीर क्षेत्र में आते हैं.

Text Size:

श्रीनगर: जम्मू और कश्मीर में हुए पंचायत चुनाव के अभी 9 महीने ही बीते हैं. लेकिन, घाटी में चुने हुए लोग दोबारा चुनाव की मांग कर रहे हैं. राज्य सरकार एक नियम जारी करने जा रही है कि पंचायत के काम पर नजर रखने के लिए राज्य द्वारा एक सरकारी कर्मचारी नियुक्त होगा. इसी नियम को लेकर वहां विवाद मचा हुआ है. जीते हुए उम्मीदवारों ने इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है.

बता दें, इनमें से ज्यादातर सदस्य भारतीय जनता पार्टी से आते हैं. वे इस फैसले के खिलाफ जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी में हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज ने 20 जून को एक आदेश जारी किया था, जिसमें सामाजिक विकास मंत्रालय, कृषि, रेवन्यू, शिक्षा, हथकरघा, जंगल और हार्टिकल्चर विभाग के अधिकारियों को सरपंचों और पंचों की निगरानी करने को बोला गया था. यह आदेश चुने गए सदस्यों के गुस्से का कारण बना है.

प्रशासन ने उल्लेखित किया है कि राज्य के 390 पंचायतों को चलाने के लिए पर्याप्त सदस्यों का अभाव है. इसमें से 368 कश्मीर क्षेत्र में आते हैं. घाटी की प्रत्येक पंचायत में एक सरपंच होता है और इसमें अधिकतम 10 पंच हो सकते हैं. एक पंचायत के कार्य करने का कोरम सिर्फ दो सदस्य हैं – सरपंच और एक पंच.

हालांकि, पंचायत सदस्यों की कमी रही है, क्योंकि घाटी के लोग अक्टूबर 2018 के चुनावों को या तो उग्रवादी धमकियों या मुख्य राजनीतिक दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा चुनाव का बहिष्कार करने के आह्वान के कारण लड़ने के लिए तैयार नहीं थे. परिणामस्वरूप, 368 पंचायतों के पास कार्य करने के लिए पर्याप्त मात्रा में सदस्य नहीं है और इसे प्रशासन द्वारा अधिसूचित नहीं किया गया है.


यह भी पढ़े: अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के अलावा, शाह ने जम्मू कश्मीर में भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने में भी दिलचस्पी दिखाई


‘हमें अपने तहसील में पीटा जाएगा’

प्रशासन द्वारा सरकारी कर्मचारियों को पंचायत के काम को सौंपने के फैसले पर कुछ सदस्य जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की धमकी दे रहे हैं. कई नाराज सदस्यों का कहना है कि सरकारी कर्मचारी निर्वाचित प्रतिनिधियों की जगह नहीं ले सकते. दक्षिण कश्मीर के चाकुरा डिवीजन के एक सरपंच महेश धर बताते हैं, ‘मेरे पास जम्मू में एक जनरल स्टोर है, लेकिन मैं अपने जीवन को खतरे में डालने और अपने परिवार को पीछे छोड़ चुनाव लड़ने के लिए कश्मीर आया था. यह वही है जो हमें प्रतिक्रिया में मिलता है,’

‘क्या हमें अपने लोगों के लिए काम करने का अधिकार है या क्या हमें सरकारी कर्मचारियों के अधीन रहना होगा?’

दक्षिण कश्मीर केलिद्दर हलका में सरपंच गुलाम मोहम्मद मीर ने कहा कि पार्टी (भाजपा) के पास समारोह में खर्चा करने के लिए लाखों रुपये हैं. लेकिन कश्मीर के लोगों के लिए एक ढेला भी नहीं है.

मैं आपको बताना चाहता हूं, मुझे जल्द ही मेरी तहसील में लोगों द्वारा पीटा जाएगा और वहां के लोगों को भी दोष नहीं दिया जाना चाहिए. सरकार हमसे परामर्श किए बिना भी निर्णय ले रही है.

मीर और धर दोनों भाजपा से जुड़े हैं और गुरुवार को श्रीनगर भाजपा कार्यालय में आयोजित सरपंच सम्मेलन में उपस्थित थे. मनोज पंडित सरपंचों को अधिसूचित करने के लिए हैं. लेकिन उन्होंने उन निर्वाचित सदस्यों के साथ खड़े होने का फैसला किया है जिनके चुनाव प्रशासन द्वारा अधिसूचित नहीं किए गए हैं.


यह भी पढ़ें: इस्लामिक स्टेट और ज़ाकिर मूसा के संगठन के बीच वर्चस्व की लड़ाई टेलीग्राम पर


भाजपा से जुड़े पंडित ने कहा, ‘अधिसूचना को भूल जाओ, हमें एक आईडी कार्ड जारी नहीं किया गया है. कई लोग अभी भी श्रीनगर के होटलों में रह रहे हैं और उग्रवादियों के डर से घर वापस नहीं गए हैं. हमें सुरक्षा का वादा किया गया था और यहां तक कि दिया नहीं गया था. अभी वेतन आना बाकी है. मैं पूछना चाहता हूं कि प्रशासन क्या कर रहा है?

साजिद रैना ने कहा, ‘अदालत के पास पहुंचने के अलावा हमारे पास क्या विकल्प है? हम घाटी में फिर से चुनाव कराने की मांग करते हैं या कम से कम सरकारी कर्मचारियों को प्रशासक के रूप में नियुक्त करने का जनादेश स्पष्ट करते हैं. दोबारा चुनाव होने तक उन्हें हमें रिपोर्ट करना चाहिए.’

पार्टी के पंचायत मामलों को देखने वाले राज्य भाजपा के महासचिव अशोक कौल ने कहा कि वह इस मामले पर नजर रखे हैं. कौल ने दिप्रिंट को बताया ‘बहिष्कार के आह्वान और आतंकवादियों के डर के कारण बहुत सारे कोरम अधूरे रह गए. अब संसदीय चुनावों के बाद, आतंकवादियों का डर कम हो गया है. हम फिर से चुनाव के विकल्प को भी देख रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments