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Monday, 20 May, 2024
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मोदी से मस्जिद की नींव रखने के आग्रह के बाद जमीयत प्रमुख बोले: PM को इन सब से दूरी बनाकर रखनी चाहिए

JUH (महमूद गुट) प्रमुख का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूजा स्थलों से जुड़े कार्यक्रमों से दूर रहना चाहिए. साथ ही उन्होंने स्थानीय नेताओं को ऐसे किसी भी प्रस्ताव का समर्थन करने के खिलाफ चेतावनी दी है.

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लखनऊ: मुस्लिम नेताओं और मौलवियों के एक वर्ग ने सुझाव दिया था कि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्माणाधीन राम मंदिर के ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह में भाग लिया उसी तरह अयोध्या के धन्नीपुर में प्रस्तावित मस्जिद की नींव भी रखे. लेकिन जमीयत उलमा-ए-हिंद (JUH) के महमूद गुट के प्रमुख महमूद असद मदनी ने इसपर कड़ी आपत्ति जताई है.

शुक्रवार देर शाम जारी एक वीडियो बयान में मदनी ने कहा कि मोदी को ‘किसी भी पूजा स्थल’ की आधारशिला रखने से बचना चाहिए.

उनकी टिप्पणी से पहले JUH की अयोध्या इकाई के प्रमुख सहित मुस्लिम नेताओं के एक समूह ने सुझाव दिया था कि मोदी अगले मंदिर में राम लला की मूर्ति की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ के लिए अपनी अयोध्या यात्रा के दौरान प्रस्तावित मस्जिद की आधारशिला रखें. 

राम मंदिर के निर्माण की देखरेख करने वाले श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 22 जनवरी 2024 को होने वाले समारोह के लिए मोदी को आधिकारिक निमंत्रण दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि शीर्षक मुकदमे में अपने 2019 के फैसले में मस्जिद के निर्माण के लिए धन्नीपुर में सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड सौंपा था.

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‘हिंदू और मुस्लिम दोनों के वजीर-ए-आजम’

मोदी द्वारा ट्रस्ट के निमंत्रण को स्वीकार करने के कुछ ही समय बाद, JUH की अयोध्या इकाई के अध्यक्ष सहित कई मुस्लिम नेताओं के एक वर्ग ने सुझाव दिया था कि प्रधानमंत्री द्वारा धन्नीपुर में प्रस्तावित मस्जिद की नींव रखना देश के लिए एक संदेश के रूप में काम करेगा.

शनिवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, JUH की अयोध्या इकाई के अध्यक्ष और अब सुलझ चुके राम जन्मभूमि मुकदमे के पूर्व वादी बादशाह खान ने कहा कि मोदी हिंदू और मुस्लिम दोनों के “वजीर-ए-आजम” (PM) हैं.

उन्होंने कहा, “वह पूरे देश के हिंदू और मुसलमानों दोनों के वज़ीर-ए-आज़म हैं. जब वह राम मंदिर के अभिषेक के लिए अयोध्या आ रहे हैं, मस्जिद भी उससे संबंधित है, तो उन्हें ही इसकी भी नींव भी रखनी चाहिए.”

खान ने कहा कि हिंदू अपने पूजा स्थल के निर्माण के साथ आगे बढ़ रहे हैं, मस्जिद के निर्माण में भी तेजी आनी चाहिए.

उन्होंने कहा, “जब वह (मोदी) अयोध्या आ रहे हैं और एक पक्ष का समर्थन कर रहे हैं, तो उन्हें दूसरे पक्ष का भी समर्थन करना चाहिए. इससे यह संदेश जाएगा कि मोदी सभी के प्रधानमंत्री हैं.”

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष नजमुल हसन गनी ने भी सुझाव दिया कि मोदी दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम इमाम अहमद बुखारी के साथ मस्जिद की नींव रखें.

उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है, उसी के आलोक में धन्नीपुर में एक मस्जिद का निर्माण किया जाएगा और एक राम मंदिर का भी निर्माण किया जा रहा है. मेरा मानना ​​है कि जब वह (PM) मंदिर का उद्घाटन करेंगे, तो उन्हें इमाम बुखारी के साथ मिलकर धन्नीपुर मस्जिद की भी नींव रखनी चाहिए. इससे देश में अच्छा संदेश जाएगा और गंगा-जमुनी तहजीब मजबूत होगी.”


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‘यह जनता का मामला है’: मदनी

हालांकि, खान और अन्य लोगों द्वारा गुरुवार को पहली बार यह सुझाव दिए जाने के बाद, JUH प्रमुख महमूद असद मदनी ने इस विचार के खिलाफ अपनी आपत्तियां जताई और स्थानीय JUH नेताओं को चेतावनी दी कि अगर वे मोदी द्वारा प्रस्तावित मस्जिद की नींव रखने के विचार का समर्थन करते हैं तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

मदनी ने शुक्रवार को एक वीडियो बयान में कहा, “अयोध्या के बारे में एक बात कही जा रही है कि वहां एक मस्जिद का निर्माण किया जा रहा है और पीएम को इसका उद्घाटन करना चाहिए. तो मैं इस बारे में दो बातें बिल्कुल स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं. एक तो ये कि हमें नहीं लगता कि अयोध्या मामले को लेकर जो फैसला आया है वो सही है. हमारा मानना ​​है कि फैसला गलत माहौल में, गलत तरीके और गलत आधार पर दिया गया.” 

उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री को किसी भी मस्जिद या पूजा स्थल के शिलान्यास या उद्घाटन के लिए नहीं जाना चाहिए और ऐसी किसी भी गतिविधि से दूरी बनाए रखनी चाहिए.”

मदनी ने आगे कहा, “क्योंकि ये जनता का मामला है. जनता और धार्मिक नेताओं को इसमें शामिल होना चाहिए. और मैं वहां (अयोध्या) और अन्य जगहों के JUH प्रतिनिधियों को बताना चाहता हूं कि यदि वे इस तरह की चर्चा में भाग लेते हैं, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.”

हालांकि, मदनी की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर, खान ने कहा कि वे (JUH का स्थानीय नेतृत्व) “स्थानीय स्तर पर चल रही चर्चाओं को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं”.

उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर “इस विचार का कोई विरोध नहीं है”.

खान ने दिप्रिंट से कहा, “जब वह (प्रधानमंत्री) अयोध्या आ रहे हैं, तो उन्हें दोनों समुदायों को खुश करना चाहिए.”

निर्माण की धीमी गति, ‘कम योगदान’

अब सुलझ चुके राम जन्मभूमि स्वामित्व विवाद के कुछ पूर्व वादियों ने भी प्रस्तावित मस्जिद के निर्माण की गति पर चिंता जताई है.

राम जन्मभूमि के वादी रह चुके इकबाल अंसारी ने कहा, “जब लोग पूछते हैं कि कितना काम पूरा हुआ, तो शर्मिंदगी की भावना पैदा होती है क्योंकि लोग ट्रस्ट में शामिल लोगों के साथ जुड़ना नहीं चाहते हैं. इसलिए जबकि मंदिर लगभग तैयार है, मस्जिद का कोई काम शुरू भी नहीं हो पाया है.” 

उन्होंने अयोध्या में मीडियाकर्मियों से यह भी कहा कि सरकार को “(मस्जिद ट्रस्ट के) ट्रस्टियों को समर्थन देने और बदलने की जरूरत है क्योंकि अगर सही लोगों को ट्रस्टी नियुक्त किया गया होता, तो कुछ काम जरूर हुआ होता”.

अपनी ओर से, खान ने कहा कि सरकार ने मस्जिद के निर्माण की देखरेख के लिए गठित ट्रस्ट में किसी भी पूर्व वादी को जगह नहीं दी है. उन्होंने कहा, “सरकार ने उन्हें (ट्रस्ट में) नियुक्त किया है जिन्हें वे चाहते थे.”

इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन, जिन्हें धन्नीपुर मस्जिद सहित कई संरचनाओं के एक परिसर के निर्माण का काम सौंपा गया था, ने दिप्रिंट को बताया कि ट्रस्ट अभी भी पैसे इकट्ठे करने की प्रक्रिया में है और नींव रखने का कार्यक्रम अभी तय नहीं हुआ है. 

उन्होंने कहा, “अभी हम कोई कार्यक्रम या शिलान्यास समारोह आयोजित नहीं कर रहे हैं. मैंने केवल इतना कहा था कि वह देश के प्रधानमंत्री हैं, अगर वह अयोध्या का दौरा कर रहे हैं, तो हम निश्चित रूप से उनका स्वागत करेंगे लेकिन हम अभी भी मस्जिद के लिए पैसे जुटाने का प्रयास कर रहे हैं.” 

हुसैन ने यह भी कहा कि किसी को निर्माणाधीन राम मंदिर और प्रस्तावित मस्जिद की तुलना नहीं करनी चाहिए.

उन्होंने कहा, “9 नवंबर, 2019 को फैसला आया और हमने दस महीने बाद निर्माण कार्य अपने हाथ में ले लिया. हमने जनता को संदेश देने के लिए 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक मौलवी अहमदुल्ला शाह फैजाबादी को समर्पित एक अस्पताल, सामुदायिक रसोई और संग्रहालय के साथ एक मस्जिद का निर्माण होना है. मौखिक रूप से बहुत सारे लोगों ने आश्वासन दिया लेकिन पैसे से योगदान काफी कम मिला है.” 

ट्रस्ट की संरचना पर आरोपों के बारे में पूछे जाने पर हुसैन ने किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

उन्होंने कहा, “अगर कोई इच्छुक व्यक्ति अस्पताल के लिए एक भी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में मदद कर सकता है, तो मैं ट्रस्ट की अपनी सदस्यता छोड़ने के लिए तैयार हूं.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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