बेंगलुरु, 25 अप्रैल (भाषा) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन के साथ लंबे समय तक काम करने वाले उनके सहयोगियों का कहना है कि वह न केवल अपने कनिष्ठों को प्रेरित करते थे, बल्कि उनकी बातों को भी ध्यान से सुना करते थे और यह ‘‘उनका करिश्मा’’ ही था, जिसने अंतरिक्ष एजेंसी को कई सफलताएं दिलाईं।
कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को बेंगलुरु में निधन हो गया। उनके परिवार के सूत्रों ने बताया कि वह 84 वर्ष के थे और पिछले कई महीनों से वृद्धावस्था संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे। उनके परिवार में दो बेटे हैं।
कस्तूरीरंगन के साथ 38 साल तक काम करने वाले जवाहरलाल नेहरू प्लेनेटेरियम (जेएनपी) के निदेशक बी आर गुरुप्रसाद ने कहा, ‘‘इसरो में यह कस्तूरीरंगन का करिश्मा ही था कि चाहे प्रक्षेपण यान हो या उपग्रहों का प्रक्षेपण, सफलताएं उनके कदम चूमती थीं।’’
गुरुप्रसाद ने कहा, ‘‘(इसरो) अध्यक्ष के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान ही पीएसएलवी ने अपनी पहली सफल उड़ान भरी थी और सभी पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) रॉकेट उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने में सफल रहे। उनके कार्यकाल के दौरान ही जीएसएलवी (भू तुल्यकालिक प्रक्षेपण यान) ने अपनी पहली सफल उड़ान भरी थी। उन्होंने चंद्रयान पर अध्ययन भी शुरू किया और इसे सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और इंजीनियरिंग क्षेत्र के दिग्गजों से मंजूरी दिलवाई।’’
गुरुप्रसाद ने यह भी याद किया कि 28 मार्च 2001 को जीएसएलवी के प्रक्षेपण के दौरान, कुछ सुरक्षा चूक के कारण इसे शुरू में ही रोकना पड़ा था।
उन्होंने कहा , ‘‘मुझे याद है कि वह वहां खड़े थे और हमसे इस मुद्दे का विश्लेषण करने के लिए कह रहे थे। हम अंततः 18 अप्रैल 2001 को इसे लॉन्च करने में सफल रहे। उन्होंने फिर से पूरे समय अपना धैर्य बनाए रखा। प्रक्षेपण के बाद ही उन्होंने स्वीकार किया कि ‘यह उनके जीवन के सबसे लंबे 60 मिनट’ थे।
इसरो के एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए के. आर श्रीधर मूर्ति ने कहा कि वह एक असाधारण नेतृत्वकर्ता थे, जो हमेशा सभी के प्रति निष्पक्ष रहते थे।
मूर्ति ने कहा, ‘‘मुझे याद है कि फ्रांस से लौटने के बाद मैंने उनसे संपर्क किया था, क्योंकि मुझे इसरो के कार्यक्रमों के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और उद्योग विकास का ध्यान रखने के लिए कहा गया था। मैंने उनसे एक बड़े परिप्रेक्ष्य के साथ एक चुनौतीपूर्ण कार्य का आग्रह किया, क्योंकि मैं यूरोप में अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ काम कर रहा था।’’
उन्होंने कहा कि इसके बाद कस्तूरीरंगन ने उन्हें वैज्ञानिक सचिव पद की पेशकश की।
मूर्ति ने कहा, ‘‘मैंने इसरो की रणनीतियों और संपर्क कार्यक्रमों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर उनके साथ मिलकर काम किया।’’
मूर्ति ने कहा, ‘‘उनके साथ हमारी सभी बातचीत में जो बात सबसे अलग थी, वह था उनका नेतृत्व। वह चाहते थे कि संगठन आगे बढ़े और वह कोई भी निर्णय लेने में सभी संबंधित लोगों की भागीदारी पर विश्वास करते थे।’’
गुरुप्रसाद ने कहा कि लोग अपने विचारों के साथ उनके पास जाना पसंद करते थे।
मूर्ति, खासकर युवा पीढ़ी के बीच इसरो की मौजूदा लोकप्रियता का श्रेय उनकी रणनीतिक सोच को देते हैं।
मूर्ति ने कहा, ‘‘अगर भारतीय अंतरिक्ष गतिविधियां अखबारों के पहले पन्ने पर नहीं छपती थीं, तो वह हमेशा हमें आत्मावलोकन करने के लिए प्रेरित करते थे।’’
उन्होंने उस पल को याद किया, जब इसरो के सफल प्रक्षेपण अभियानों में से एक के बारे में अंदर के पन्ने में खबर छपी थी।
मूर्ति ने कहा, ‘‘उन्होंने तुरंत हमें इस बात पर चर्चा के लिए बुलाया कि हमें ऐसा क्या करना चाहिए कि हमारा कार्यक्रम हमेशा अग्रणी बना रहे।’’
भाषा सुभाष पवनेश
पवनेश
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