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शनिवार, 28 जून, 2025
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‘सरपंच पति’ प्रथा को समाप्त करना पंचायत प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी: केंद्रीय पंचायती राज सचिव

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नयी दिल्ली, 14 अगस्त (भाषा) केंद्रीय पंचायती राज सचिव विवेक भारद्वाज ने बुधवार को कहा कि ‘‘सरपंच पति’’ प्रथा को समाप्त करना पंचायत प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है।

निर्वाचित महिला सरपंच के पति द्वारा संबंधित शक्ति का प्रयोग किए जाने को ‘सरपंच पति’ प्रथा कहा जाता है।

उन्होंने यहां एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि पंचायती राज मंत्रालय जल्द ही महिला प्रतिनिधियों को सशक्त बनाने के लिए एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम की योजना बनाएगा।

कार्यक्रम में महिलाओं सहित लगभग 400 पंचायती प्रतिनिधियों ने भाग लिया। वे बृहस्पतिवार को यहां लालकिले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित विशेष अतिथियों में भी शामिल हैं।

‘सरपंच पति’ प्रथा पर प्रकाश डालने वाली वेब-सीरीज़ ‘पंचायत’ का जिक्र करते हुए भारद्वाज ने कहा कि उन्हें कुछ लोगों ने शो देखने के लिए कहा था क्योंकि यह जमीनी हकीकत को चित्रित करती है।

भारद्वाज ने कहा, ‘‘कुछ दिन पहले, एक कंपनी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक मुझसे मिलने आए थे। मुझसे पूछा गया कि क्या मैंने ‘पंचायत’ वेब सीरीज देखी है… एक कंसल्टेंसी के प्रमुख, एक अन्य ने मुझे बताया कि उसने पूरी सीरीज देखने के लिए एक दिन का अवकाश लिया।’’

पंचायती राज सचिव कहा, ‘‘उन्होंने सोचा होगा कि मुझे खुशी होगी लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा। क्योंकि वेब सीरीज में दिखाया गया है कि एक महिला निर्वाचित प्रतिनिधि है लेकिन उसकी जगह उसका पति ही (गांव में) सभी काम (सरपंच के रूप में) करता है।’’

उन्होंने पंचायती राज प्रतिनिधियों का आह्वान करते हुए कहा, ‘‘सरपंच पति की इस प्रथा को खत्म करना आपकी जिम्मेदारी है। हम इस प्रयास में आपके साथ हैं।’’

भारद्वाज ने कहा कि 32 लाख पंचायती राज प्रतिनिधियों में से 46 प्रतिशत महिलाएं हैं, लेकिन आश्चर्य है कि उनमें से कितनी अपनी जिम्मेदारियां खुद निभाने में सक्षम हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि महिला पंचायत प्रतिनिधियों के लिए अलग से प्रशिक्षण की भी जरूरत है और मंत्रालय इस पर गौर करेगा।

भारद्वाज ने कहा, ‘‘हम जीपीडीपी (ग्राम पंचायत विकास योजना) प्रशिक्षण आयोजित करते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए कोई अलग प्रशिक्षण नहीं है और एक महिला (प्रतिनिधि) को एक कुशल सरपंच बनने के लिए क्या चाहिए… इस बारे में कोई प्रशिक्षण नहीं है। यह हमारी कमी है, हम जल्द ही इसका समाधान करेंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘चीन और भारत के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि वहां महिलाओं की भागीदारी बहुत अधिक है। अगर 20-30 फीसदी महिलाएं बिलकुल भी काम नहीं करेंगी तो समाज का विकास नहीं हो सकता।’’

भाषा नेत्रपाल रंजन

रंजन

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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