नयी दिल्ली, 24 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को भ्रामक विज्ञापनों पर शिकायत दर्ज कराने के लिए नागरिकों की खातिर एक तंत्र बनाने के महत्व को रेखांकित किया।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पीठ ने कहा कि ‘‘यह अधिनियम अत्यंत महत्वपूर्ण है’’ तथा इसके प्रावधानों का अनुपालन करना आवश्यक है।
पीठ ने कहा कि भ्रामक विज्ञापनों पर शिकायत दर्ज कराने के इच्छुक नागरिकों की खातिर एक तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि वह सात मार्च को इस पहलू पर विचार करेगी।
पीठ ने झारखंड, कर्नाटक, केरल, पंजाब, मध्य प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी द्वारा औषधि और प्रसाधन सामग्री नियमावली, 1945 के नियम 170 के अनुपालन से संबंधित मुद्दे पर भी विचार किया।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 27 अगस्त को आयुष मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना पर रोक लगा दी थी, जिसमें औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 को हटा दिया गया था, जो आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाता है। सोमवार को सुनवाई के दौरान पीठ को बताया गया कि कर्नाटक में कथित भ्रामक विज्ञापनों के 25 मामलों में कोई अभियोजन शुरू नहीं किया गया क्योंकि पर्याप्त जानकारी नहीं थी।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारे अनुसार, ये कर्नाटक राज्य द्वारा दिए गए बहाने मात्र हैं। उनके पास अपनी पुलिस मशीनरी, साइबर सेल है। उनके लिए इन विज्ञापनों के स्रोतों का पता लगाना बहुत आसान है, बशर्ते राज्य की ओर से ऐसा करने की इच्छा हो।’’
उसने कर्नाटक सरकार से कहा कि वह गलत काम करने वालों का पता लगाए और एक महीने के भीतर अदालत के समक्ष अनुपालन रिपोर्ट पेश करे।
अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने कहा कि जहां तक केरल का सवाल है, राज्य में नियम का उचित क्रियान्वयन हो रहा है। गत 10 फरवरी को मामले की सुनवाई करते हुए, शीर्ष अदालत ने दिल्ली, आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों से नाखुशी जताई और आयुर्वेदिक, सिद्ध तथा यूनानी दवाओं के अवैध विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई करने में ‘विफलता’ पर उनके मुख्य सचिवों को तलब किया।
पीठ ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों को वीडियो-कॉन्फ्रेंस के जरिए पेश होकर यह बताने का निर्देश दिया था कि ये राज्य अनुपालन क्यों नहीं कर रहे हैं। भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाते हुए, शीर्ष अदालत ने 7 मई, 2024 को निर्देश दिया कि विज्ञापन जारी करने की अनुमति देने से पहले, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 की तर्ज पर विज्ञापनदाताओं से स्व-घोषणा प्राप्त की जाए।
भ्रामक विज्ञापनों का मुद्दा तब उठा था जब शीर्ष अदालत 2022 में भारतीय चिकित्सा संघ द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पतंजलि और योग गुरु रामदेव पर कोविड टीकाकरण अभियान एवं आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के खिलाफ अभियान चलाने का आरोप लगाया गया था।
भाषा वैभव अविनाश
अविनाश
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