मुंबई, पांच अप्रैल (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि यह अदालत के अधिकार के दायरे में नहीं है कि वह उबर और ओला जैसी कैब कंपनियों को उसके मोबाइल ऐप की विशेषताओं के बारे में निर्देश दे।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की पीठ ने कहा कि यह विधायिका पर है जिसके पास किराये पर कार संचालित करने वाली कंपनियों को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने का अधिकार है।
पीठ इन कंपनियों के खिलाफ वकील सविना क्रैस्टो द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उबर के खिलाफ शिकायतों को हल करने के लिए उपभोक्ता शिकायत निवारण तंत्र की कमी का आरोप लगाया गया।
महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को अदालत को बताया था कि उसने उबर और ओला समेत किराये पर कार मुहैया कराने वाली 12 कंपनियों को अस्थायी लाइसेंस दिया है। क्रैस्टो ने मंगलवार को अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने अभी भी अपनी रिपोर्ट में यह निर्दिष्ट या उल्लेख नहीं किया है कि लाइसेंस देने की शर्त में शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना शामिल है या नहीं।
क्रैस्टो ने यह सुनिश्चित करने के लिए अदालत के हस्तक्षेप का अनुरोध किया कि उचित तंत्र स्थापित किया जाए। इस पर उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘विधायिका के पास दिशा-निर्देश जारी करने की शक्तियां हैं। अदालतें ऐसा कैसे कर सकती हैं? आप चाहते हैं कि ऐप में कुछ विशेषताएं हों, लेकिन क्या हम ऐसा कर सकते हैं? दिशानिर्देश तैयार करने के लिए राज्य है।’’
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार ओला, उबर और 10 अन्य कंपनियों को मोटर वाहन (संशोधन) कानून और 2020 के मोटर वाहन एग्रीगेटर्स दिशानिर्देशों के तहत अस्थायी लाइसेंस दिए गए हैं।
उबर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जनक द्वारकादास ने कहा कि शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध है। इस पर अदालत ने कहा कि वह राज्य सरकार को यह देखने के लिए दो महीने का समय देगी कि क्या ये कंपनियां दिशानिर्देशों के तहत निर्धारित शर्तों का पालन कर रही हैं।
भाषा आशीष नरेश
नरेश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.