चंडीगढ़, 21 दिसंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि यह ‘‘समझ से परे’’ है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को कुछ राज्यों में अब तक लागू नहीं किया गया है।
उन्होंने एनईपी लागू करने के लिए उन राज्यों पर शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और मीडिया द्वारा पर्याप्त ‘‘दबाव’’ नहीं बनाए जाने पर अफसोस जताया।
धनखड़ ने कहा कि अब समय आ गया है कि लोग पक्षपातपूर्ण सोच को पीछे छोड़ दें और देश के हितों को प्राथमिकता दें।
उन्होंने कुछ राज्य सरकारों द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का विरोध किए जाने का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘राष्ट्रवाद और राष्ट्र प्रथम का सिद्धांत हमेशा हमारा मार्गदर्शन करे।’’
उपराष्ट्रपति ने यहां पंजाब विश्वविद्यालय में “उत्कृष्टता और स्थिरता के लिए सहयोग को बढ़ावा देना” विषय पर आयोजित पांचवें वैश्विक पूर्व छात्र सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं दो बातों से दुखी और परेशान हूं — एक, कुछ राज्यों ने इसे नहीं अपनाया है। मुझे यकीन है कि यह किसी भी तर्कसंगत आधार पर समझ से परे है। ऐसा कैसे हो सकता है? और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शिक्षाविद, बुद्धिजीवी, पत्रकारिता के लोग दबाव नहीं बनाते।”
उपराष्ट्रपति ने कहा,“हम राष्ट्रवाद या विकास की कीमत पर राजनीति करने का जोखिम नहीं उठा सकते।”
शैक्षिक ‘इकोसिस्टम’ को मजबूत करने में पूर्व छात्र नेटवर्क की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, “यदि यह राष्ट्रीय संस्कृति बन जाती है, तो यह हमारी शिक्षा को परिभाषित करेगी और वास्तव में हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अत्याधुनिक बनाएगी।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि देशों की पहचान वहां स्थापित संस्थाओं से होती है।
उन्होंने कहा कि जो देश अनुसंधान में आगे हैं और अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं, वे देश विश्व में अग्रणी बनकर उभरते हैं।
धनखड़ ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री, कैबिनेट सचिव, सशस्त्र बलों में प्रतिष्ठित पदों, पत्रकारिता, कला, संस्कृति, खेल में प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हुए हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा, “जरा कल्पना कीजिए कि अगर पूर्व छात्र संगठित तरीके से काम करें तो वे अपने विश्वविद्यालय को कितना बढ़ावा दे सकते हैं।’’
धनखड़ ने कहा, ‘‘पाठ्यक्रम विकास के लिए पूर्व छात्रों की सहभागिता महत्वपूर्ण है। क्या आप ऐसे किसी बड़े मानव संसाधन की कल्पना कर सकते हैं जो आपको यह बता सके कि पाठ्यक्रम में क्या शामिल किया जाना चाहिए?”
उन्होंने कहा, “आपके प्रयासों से ही विश्वविद्यालय आलोचनात्मक सोच, नवाचार, तैयारी को अपनाने, हमारे युवाओं को उद्यमिता के लिए प्रेरित करने और ऊर्जा देने में सक्षम होंगे।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आईआईटी, आईआईएम, पंजाब विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के पूर्व छात्र संघों का एक ‘कन्फेडरेशन’ होना चाहिए। उन्होंने कहा, “यह दुनिया में बेजोड़ थिंक टैंक होगा और यह हमारी नीति-निर्माण में योगदान दे सकता है।”
उपराष्ट्रपति ने उन लोगों के प्रति भी आगाह किया जो देश की प्रगति के प्रति शत्रुतापूर्ण इरादे और बुरी मंशा रखते हैं।
धनखड़ ने कहा, “भारत में वैश्विक नेता होने की क्षमता है। यह आगे बढ़ रहा है और इसे रोका नहीं जा सकता। विकसित भारत हमारा सपना नहीं है, यह हमारा लक्ष्य है। हमें इसे हासिल करना ही होगा, चाहे कुछ भी हो जाए। इस पूरे मामले में, मेरा मानना है कि शैक्षणिक संस्थानों की बड़ी भूमिका है।”
भाषा नोमान धीरज
धीरज
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