नैनीताल, 13 अप्रैल (भाषा) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने देहरादून के विकास नगर क्षेत्र में झुग्गीवासियों के घरों को ढहाने पर रोक लगाते हुए कहा है कि तोड़फोड़ करने के नोटिस नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर शनिवार को सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने कहा कि निवासियों को सुनवाई का अवसर दिये बिना ही तोड़फोड़ करने के नोटिस जारी कर दिये गए।
पीठ ने आदेश दिया कि अदालत के अगले आदेश तक तोड़फोड़ पर रोक रहेगी।
जनहित याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता देहरादून जिला स्थित विकास नगर के विभिन्न गांवों के निवासी हैं और देश के वैध नागरिक हैं।
उन्हें पांच अप्रैल को नोटिस प्राप्त हुए, जिनमें कहा गया है कि उनकी संपत्तियों को ध्वस्त किया जाना है क्योंकि वे जल निकायों, मौसमी जल धाराओं और नालों पर बने हैं।
याचिका में दावा किया गया है कि प्रशासन ने संपत्ति के विवरण की पुष्टि किये बिना ही नोटिस जारी कर दिए।
इसमें दावा किया गया है कि नोटिस पाने वाले ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं और समाज के निचले तबके से हैं, जिन्हें परिणामों के बारे में उपयुक्त जानकारी नहीं है।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि जिन लोगों को नोटिस जारी किये गए, उनके पास अपना मालिकाना हक साबित करने के लिए संपत्ति के वैध दस्तावेज हैं और उनमें से ज्यादातर का जल निकायों और जल धाराओं से कोई लेना-देना नहीं है।
उपग्रह से प्राप्त इलाके की तस्वीरों से पता चलता है कि जिन लोगों को तोड़फोड़ के नोटिस मिले हैं, वे मौसमी जल धाराओं, नालों और जल निकायों से बहुत दूर रहते हैं।
यह भी कहा गया है कि याचिकाकर्ता अपने स्वामित्व को सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार साबित करने वाले संपत्ति दस्तावेज 15 अप्रैल तक उच्च न्यायालय में दाखिल करेंगे।
भाषा सुभाष संतोष
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