नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) संवेदशील गवाह बयान केंद्रों (वीडब्ल्यूडीसी) के एक समान राष्ट्रीय मॉडल को तैयार करने से संबंधित एक मामले में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एक पक्षकार बनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार कहा कि संवेदनशील गवाहों से संबंधित मुद्दा सीधे तौर पर उन महिलाओं और बच्चों की दुर्दशा से संबंधित है जो “संवेदनशील गवाहों की स्थिति” में हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मंत्रालय को अदालत द्वारा नियुक्त समिति के अध्यक्ष के परामर्श से सभी गतिविधियों का समन्वय करना चाहिये।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को नोडल मंत्रालय होना चाहिए और वह चाहता है कि मंत्रालय इसकी निगरानी करे।
पीठ ने कहा, “इस अदालत के फैसले ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय पर न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति की अध्यक्ष न्यायमूर्ति गीता मित्तल के साथ समन्वय करने की जिम्मेदारी डाली है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए समन्वय मंत्रालय के रूप में नामित किया गया है कि संवेदनशील गवाहों से संबंधित मुद्दा सीधे तौर पर उन महिलाओं और बच्चों की दुर्दशा से संबंधित है, जो संवेदनशील गवाहों की स्थिति में हैं।”
पीठ ने कहा, “भारत सरकार का महिला एवं बाल विकास मंत्रालय पक्षकार होगा।”
उच्चतम न्यायालय ने आठ अप्रैल को सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल के नेतृत्व वाली समिति द्वारा तैयार किए गए आदर्श दिशानिर्देशों पर छह सप्ताह के भीतर जवाब देने का अनुरोध किया था ताकि उनके सुझावों को संवेदनशील गवाह बयान केंद्र (वीडब्ल्यूडीसी) के लिए एक समान राष्ट्रीय मॉडल तैयार करने में शामिल किया जा सके।
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प्रशांत दिलीप
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