(फाइल फोटो के साथ)
मुंबई, चार जून (भाषा) महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर राज्य शिक्षा बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में कक्षा एक से केवल दो भाषाएं-मराठी और अंग्रेजी-पढ़ाए जाने की मांग की है।
स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे को दो जून को लिखे पत्र में ठाकरे ने कहा कि सरकार इस संबंध में आदेश जारी करे, वरना मनसे राज्यभर में विरोध-प्रदर्शन करेगी।
इस पत्र को ठाकरे ने बुधवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर साझा किया।
मनसे प्रमुख ने पत्र में यह जानना चाहा कि क्या राज्य सरकार पर उस समय कोई दबाव था, जब उसने कक्षा एक से पांच तक के छात्रों के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य करने की घोषणा की थी।
महाराष्ट्र सरकार ने इस साल अप्रैल में राज्यभर के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक के छात्रों के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला लिया था।
हालांकि, मनसे ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा था कि पार्टी फैसले का पुरजोर विरोध करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि इसे लागू न किया जाए।
फैसले के कड़े विरोध के बीच सरकार ने इसके क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। मंत्री भुसे ने घोषणा की थी कि मामले में एक नया शासकीय निर्णय (जीआर) जारी किया जाएगा।
ठाकरे ने भुसे को लिखे अपने पत्र में कहा, “महाराष्ट्र के स्कूलों में कक्षा एक से हिंदी पढ़ाने को लेकर पिछले दो महीने से भ्रम की स्थिति बनी हुई है। शुरुआत में घोषणा की गई थी कि छात्रों को कक्षा एक से तीन भाषाएं पढ़ाई जाएंगी और हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाया जाएगा। मनसे ने फैसले का विरोध किया। लोगों ने भी इस कदम को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी।”
उन्होंने कहा कि बाद में सरकार ने घोषणा की कि हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा नहीं बनाया जाएगा।
मनसे प्रमुख ने सवाल किया, “हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है। यह अन्य राज्यों में बोली जाने वाली कई भारतीय भाषाओं में से एक है। इसे क्यों थोपा जा रहा है? क्या सरकार किसी तरह के दबाव में थी?”
उन्होंने त्रिभाषा फॉर्मूले के पीछे के औचित्य पर सवाल उठाया और पूछा कि छोटे बच्चों को तीन भाषाएं क्यों पढ़ाई जानी चाहिए।
ठाकरे ने कहा, “सरकार ने घोषणा की है कि राज्य बोर्ड के स्कूलों में कक्षा एक से केवल दो भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। लेकिन यह फैसला अभी तक लिखित आदेश के रूप में क्यों जारी नहीं किया गया है?”
उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले आदेश के आधार पर हिंदी पाठ्यपुस्तकों की छपाई शुरू हो चुकी होगी।
ठाकरे ने चेतावनी देते हुए कहा, “क्या सरकार सिर्फ इसलिए अपने संशोधित फैसले को वापस लेने की योजना बना रही है, क्योंकि किताबें छप चुकी हैं? अगर ऐसा है, तो उसे मनसे की ओर से शुरू किए जाने वाले आंदोलन का अंजाम भुगतना होगा।”
मनसे प्रमुख ने सरकार से हिंदी थोपने के प्रयासों को खारिज करने वाले अन्य राज्यों से सीख लेने और इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा, “देश के कई राज्यों ने अपनी भाषाई पहचान को बनाए रखने के लिए हिंदी को अनिवार्य करने के प्रयास को खारिज करते हुए कक्षा एक से केवल दो भाषाओं को पढ़ाने का विकल्प चुना है। मैं उम्मीद करता हूं कि हमारी सरकार भी इसी तरह का गौरव दिखाएगी और हमारी भाषाई पहचान की रक्षा करेगी।”
ठाकरे ने शिक्षा विभाग से आग्रह किया कि वह जल्द से जल्द लिखित सरकारी आदेश जारी करे, जिसमें पुष्टि की जाए कि राज्य बोर्ड के स्कूलों में कक्षा एक से केवल मराठी और अंग्रेजी पढ़ाई जाएगी।
भाषा पारुल रंजन
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