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Saturday, 23 November, 2024
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इस्लामिक स्टेट ने ली अक्टूबर में मोज़ाम्बिक में भारतीय मिल्कियत वाली रूबी खदान पर हमले की जिम्मेदारी

मोंटेपुएज रूबी खदान पर हुए हमले से भारतीय कंपनी जेमरॉक माइनिंग कामकाज बंद करने पर मजबूर हुई, हमला मोजांबिक में प्राकृतिक संसाधनों के विशाल भंडार से राजस्व हासिल करने के आईएस के अभियान का हिस्सा था.

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नई दिल्ली: इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने मोज़ाम्बिक में भारतीय स्वामित्व वाली रूबी खदान पर हमले की जिम्मेदारी ली है. उसने अपनी पत्रिका अल-नाबा के नवंबर अंक में दावा किया है कि कंपनी ‘मुसलमानों की जायदाद चुराती है.’

पिछले महीने मोंटेपुएज रूबी खदान को निशाना बनाया गया, जो दुनिया की सबसे बड़ी खदानों में से एक है. उसका संचालन जेमरॉक माइनिंग कंपनी करती है, जो भारतीय स्वामित्व वाली रत्न कंपनी डाइकलर इंटरनेशनल की सहायक है.

अक्टूबर महीने की 20 तारीख को हुए हमले के बाद सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ीं तो जेमरॉक और दक्षिण अफ्रीकी जेमफील्ड्स को मोंटेपूएज खदान में कामकाज रोकने को मजबूर होना पड़ा. अल-नाबा के अनुसार, कंपनी के वाहनों और खनन उपकरणों के जल जाने से ‘भारी वित्तीय नुकसान’ हुआ.

ये हमले इस्लामिक स्टेट की स्थानीय शाखा अल-शबाब के बर्बर हिंसक कार्रवाइयों का हिस्सा हैं, जिससे हाल के वर्षों में हजारों लोग मारे गए हैं. इस जिहादी गुट ने पिछले साल पाल्मा शहर पर कुछ समय के लिए कब्जा कर लिया था, और आखिरकार उसे भागना पड़ा तो सड़कों पर दर्जनों क्षत-विक्षत लाशें बिखरी पड़ी थीं.

ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक, इस्लामिक स्टेट के आतंकी ईसाई बहुल गांवों में कत्लेआम को भी अंजाम दे रहे हैं, ताकि बाकी लोगों का सफाया किया जा सके.

मोज़ाम्बिक में रूबी खदानों पर हमला इस्लामिक स्टेट के उस व्यापक अभियान का हिस्सा है कि वहां के प्राकृतिक संसाधनों के विशाल भंडार से कमाई हासिल की जा सके. इन संसाधनों में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार भी शामिल है. बड़ी फ्रांसीसी एनर्जी कंपनी टोटल एसई की अगुआई में एक वैश्विक कंसोर्टियम पाल्मा के करीब अफंगी प्रायद्वीप में तरलीकृत प्राकृतिक गैस की 24.1 अरब डॉलर की परियोजना पर काम कर रही है, जिसमें ओएनजीसी विदेश और ऑयल इंडिया शामिल हैं.

लंदन स्थित एक जानकार ने दिप्रिंट को बताया, ‘भले इस्लामिक स्टेट इलाके पर कब्जा करने में सफल नहीं हो, लेकिन ठेकेदारों से जबरन वसूली और आपूर्ति लाइनों पर वसूली करके जायदाद बना रहा है.’

मोज़ाम्बिक के सशस्त्र बल इस्लामिक स्टेट के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं, लेकिन उन्हें थोड़ी ही सफलता मिली है. सशस्त्र बलों को भी कथित रूप से दक्षिण अफ्रीकी भाड़े के हत्यारों की फर्म पैरामाउंट और डाइक एडवाइजरी ग्रुप से मदद हासिल होती है.

उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया के जिहादी गुटों से बड़ी संख्या में ट्रेनरोंं के आने से यहां इस्लामिक स्टेट के काडर में मतबूती आई है.

अफ्रीकी आईएसआईएस का उदय

विशेषज्ञ मारियो मचाकिरो ने लिखा है कि यह टकराव तब से जारी है जब फ्रीलिमो राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन पर काबू पाने के लिए पुर्तगालियों की औपनिवेशिक सत्ता ने सूफी भाईचारे की नींव रखनी शुरू की थी. उत्तरी मोज़ाम्बिक में ईसाई माकोंडे अल्पसंख्यक समुदाय ने वाम-झुकाव वाले फ्रीलिमो आंदोलनकारियों का समर्थन किया था, जबकि मवानी मुस्लिम बहुमत ने पश्चिम-समर्थित, कम्युनिस्ट-विरोधी रेसिस्टेंसिया नेशनल मोकांबिकाना या रेनामो का समर्थन किया था.
आजादी के बाद, मकोंडे विजेताओं का लकड़ी और खनन जैसे संसाधनों पर पूरी तरह कब्जा हो गया, जिसके कारण 2005 से सांप्रदायिक संघर्ष बढ़ गया.

उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया में अध्ययन करने के लिए मिशनरी संगठनों द्वारा भर्ती किए गए सलफावादी मौलवियों की नई पीढ़ी के साथ टकराव बढ़ गया. इन नव-कट्टरपंथी मौलवियों ने अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए आर्थिक गरीबी और राजनीतिक हिस्सेदारी के अभाव के खिलाफ युवाओं की नाराजगी का खूब लाभ उठाया.

2000 के दशक के मध्य से, ये नए सलफावादी गुटों ने आंदोलन चलाया कि पारंपारिक लोक प्रथाओं को खत्म किया जाए और सरकारी स्कूलों से बच्चों को हटाया जाए. उनके अनुयायियों की रैंक में अगले दशक की शुरुआत से इजाफा होने लगा, जब मारे गए धुर-दक्षिणपंथी केन्याई उपदेशक अबूद रोगो मोहम्मद के अनुयायी, मुख्य रूप से मवानी जातीय समूह के लोग उस इलाके में जाकर बसे. वे काबो डेलगाडो के अपने मुसलमान कहलाए.

तेल और खनन से हासिल हुई धन-संपत्ति ने तनाव बढ़ा दिया, स्थानीय युवा पढ़ाई से वंचित थे और नए अवसरों को भुनाने के लिए पूंजी की आवश्यकता थी.

इस समस्या से निपटने में 2015 में सख्त पुलिस कार्रवाई नाकाम साबित हुई, जो मोकिम्बो दा प्राइया जिले से काबो डेलगाडो के छह अन्य जिलों में फैल गई. पड़ोसी तंजानिया से खदेड़े गए लड़ाकों ने जिहादियों की जमात में इजाफा किया.

(अनुवाद: हरिमोहन मिश्रा)

(संपादन: इन्द्रजीत)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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