नई दिल्ली: पिछले सप्ताह मध्य प्रदेश में एक पैसेंजर ट्रेन की चपेट में आकर भारतीय रेलवे यातायात सेवा (इंडियन रेलवे ट्रॅफिक सर्विस- आईआरटीएस) के एक अधिकारी की मौत हो गई थी. उनकी मौत रेलवे की ओर से बरती गई ‘लापरवाही’ की वजह से मौत हुई थी और अब उनके परिवार वालों ने आरोप लगाया है कि उन्हें उनके वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा ‘काम के दौरान मानसिक रूप से प्रताड़ित’ भी किया जाता था.
2018-बैच के आईआरटीएस अधिकारी यादवेंद्र सिंह भाटी के परिवार का कहना है कि उन्हें अभी भी राजकीय रेलवे पुलिस (गवर्नमेंट रेलवे पुलिस – जीआरपी) के पास प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. यह पुलिस राज्य सरकार के अंतर्गत आती है.
इस 32 वर्षीय अधिकारी की एक महीने पहले अपनी ही एक सहयोगी आईआरटीएस अधिकारी के साथ शादी हुई थी, इनकी 23 जून की देर शाम रेलवे ट्रैक पर लगी निगरानी ड्यूटी के दौरान मौत हो गई थी.
भाटी की मां रंजना द्वारा दायर शिकायत के अनुसार, एक से अधिक स्तरों पर की गई कई चूकों के कारण उनके इकलौते बेटे की मौत हो गई. वह भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या और लापरवाही की वजह से मौत) के तहत प्राथमिकी दर्ज करवाने की कोशिश कर रहीं हैं.
उनकी पहली शिकायत 24 जून को शहडोल के जीआरपी स्टेशन में दर्ज कराई गई थी. जब उनकी प्राथमिकी दर्ज करने से उन्हें कथित तौर पर इनकार कर दिया गया, तो उन्होंने 27 जून को उसी पुलिस स्टेशन और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में दूसरी शिकायत दर्ज कराई. दिप्रिंट के पास दोनों शिकायतों की प्रतियां मौजूद हैं.
राजस्थान के उदयपुर के मूल निवासी भाटी दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे जोन के बिलासपुर मंडल के बैकुंठपुर में एरिया मैनेजर के पद पर तैनात थे.
दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, भाटी की पत्नी और उनकी साथ ही आईआरटीएस अधिकारी के रूप में काम करने वाली वर्षा छलोत्रे ने कहा कि परिवार को अभी तक रेलवे की तरफ से संवेदना व्यक्त करने वाला कोई भी आधिकारिक संवाद प्राप्त नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, ‘हम एक तटस्थ एजेंसी से इसकी जांच चाहते हैं और मैं अपने पति के लिए न्याय चाहती हूं.’
भाटी के परिवार ने आरोप लगाया है कि जिस ट्रेन ने उन्हें टक्कर मारी, उसे सुरक्षा प्रोटोकॉल के कथित उल्लंघन के लिए भी बरी कर दिया गया है. उन्होंने दावा किया कि जिस इलाके में काम चल रहा था, वहां से इसे 30 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गुजरना था, मगर यह 80 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही थी .
परिवार के अनुसार, आ रही ट्रेन के बारे में लोगों को सूचित करने वाली पूर्व चेतावनी प्रणाली काम नहीं कर रही थी, और ट्रेन चालक को स्टेशन प्रबंधक से ‘धीमी गति से चलें’ वाला मेमो भी नहीं मिला था.
भाटी के बैचमेट और सहयोगी भी रहे एक रेलवे अधिकारी ने क्षेत्रीय अधिकारियों द्वारा दी गयी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के हवाले से कहा, ‘दो पटरियों के बीच खड़े भाटी के चेहरे पर चोट लगी थी और उनका काफी खून बह गया था. उनके अस्पताल पहुंचने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.’
इस बारे में रेल मंत्रालय में कार्यकारी निदेशक (सूचना और प्रचार) अमिताभ शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें शोक संतप्त परिवार के प्रति पूरी सहानुभूति है. मंडल रेल प्रबंधक (डिविजनल रेलवे मैनेजर- डीआरएम) ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है.’
दिप्रिंट ने इस बारे में टिप्पणी के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यालय से भी संपर्क किया. वहां के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘हम शिकायतों का समाधान करेंगे और निश्चित रूप से प्राथमिकी के मामले को देखेंगे.’
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लापरवाही व प्रताड़ना की शिकायत
भाटी के परिवार के सदस्यों और 2018 बैच के आईआरटीएस, आईआरएस, आईपीएस और आईएएस अधिकारियों सहित उनके बैचमेट्स ने 27 जून को रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में भाग लिया और इस मामले में प्राथमिकी दर्ज किए जाने तथा रेलवे की तरफ से की गई लापरवाही के आरोपों की जांच का अनुरोध किया.
परिवार द्वारा दायर की गई शिकायत में कहा गया है: ’23 जून को 14.30 बजे से 19.40 बजे के बीच, अमलाई रेलवे स्टेशन, जहां अक्सर ट्रेनों की आवाजाही होती रहती थी, पर एक नई लाइन के लिए निर्माण कार्य चल रहा था और कुछ सौ मजदूर वहां के यार्ड में काम कर रहे थे.
काम कर रहे मजदूरों और अन्य रेलवे कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए, ‘प्री-नॉन-इंटरलॉकिंग प्लानिंग’ नामक निर्माण कार्य की योजना में आने वाली ट्रेनों के बारे में सभी कर्मचारियों और मजदूरों को सतर्क करने के लिए विशेष रूप से हूटर या सायरन या सीटी बजाने के लिए तीन व्यक्तियों को प्रतिनियुक्त किए जाने का प्रावधान था. इन तीनों व्यक्तियों ने कोई भी हूटर / सायरन / सीटी नहीं बजाई और अपने कर्तव्य में बरती गई लापरवाही की वजह से यादवेंद्र सिंह भाटी (मृतक) को सचेत करने में विफल रहे. इसी कारण से एक आने वाली ट्रेन ने मृतक को टक्कर मार दी और इसकी वजह से उनकी मौत हो गई.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘ट्रेनों को अमलाई रेलवे स्टेशन पर 30 किमी प्रति घंटे की गति से आना था, लेकिन यह (ट्रेन) 80 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से स्टेशन पर पहुंची क्योंकि गति सीमा पर प्रतिबंध लगाए जाने से संबंधित बोर्ड गायब था. स्पीड इंडिकेटर बोर्ड (गति सीमा का इशारा करने वाला बोर्ड) लगाना अनूपपुर रेलवे स्टेशन में तैनात जूनियर इंजीनियर (कंस्ट्रक्शन) की ज़िम्मेदारी थी, लेकिन वह लापरवाह और गैर जिम्मेदार रहे और उन्होंने स्पीड इंडिकेटर बोर्ड नहीं लगाया. इसलिए, जिस ट्रेन को 30 किमी प्रति घंटे की गति से आना था, वह 80 किमी प्रति घंटे की गति से आई और उसने मृतक यादवेंद्र सिंह भाटी को टक्कर मार दी.’
भाटी की मां ने यह भी निवेदित किया है कि उनके बेटे को वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा लगातार ‘परेशान’ किया जाता था. उन्हें कोई भी आवास आवंटित नहीं किया गया था, आईसीयू में भर्ती अपने पिता को देखने के लिए उन्हें छुट्टी लेने की अनुमति नहीं दी गई थी, और यह भी कि जिस स्थान पर उनके बेटे की पत्नी को तैनात किया गया था वहां स्थानांतरित किए जाने के लिए उसने एक आवेदन किया था जिसे सरसरी तौर पर खारिज कर दिया गया था.
उनकी मां ने अपनी शिकायत में लिखवाया है, ‘लापरवाही भरा यह आचरण उस लगातार किए जा रहे उत्पीड़न के सिलसिले का एक हिस्सा है जो मृतक, यादवेंद्र सिंह भाटी, के साथ किया जा रहा था. यह घटना से पहले के कुछ दिनों में मृतक के उपर जबरदस्त मानसिक दबाव पैदा कर रहा था. उनका यह आचरण बेहद संदेहास्पद है और (भाटी की) अप्राकृतिक मौत का कारण बनने में उनकी संलिप्तता की जांच की जानी चाहिए. प्राथमिकी दर्ज करने में हो रहे देरी से मुकदमा चलाने के लिए यह मामला कमजोर हो जाएगा, आरोपी को कानून की प्रक्रिया से बच निकालने की अनुमति मिलेगी और वह सतर्क हो जाएगा.’
रंजना भाटी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उसकी लगातार मानसिक प्रताड़ना होती रही थी, लेकिन उसने कभी भी अपने कर्तव्य या क्षेत्र प्रबंधक होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया. उसने 24 मई को वर्षा से शादी की और हमने उसे 23 जून को खो दिया.’
उपर उद्धृत किए गये भाटी के सहयोगी ने कहा कि ‘पिछले साल प्रशिक्षण पूरा करने के बाद यह उनकी पहली पोस्टिंग (नियुक्ति) थी. इसके बाद उन्हें (भाटी को) शहडोल में अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई. यह पूरा इलाका इस मंडल में कोल लोडिंग ट्रैक के नाम से जाना जाता है.’
उनके एक अन्य बैचमेट ने कहा, ‘इस मुद्दे को बहुत ही असंवेदनशील तरीके से लिया गया है’.
उन्होंने कहा, ‘परिवार को रेलवे की तरफ से आधिकारिक रुप से कोई संवाद या शोक संदेश भी नहीं मिला है. मुआवजे के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया है. वह अपना कर्तव्य निभाते हुए मारे गये.’
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