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Thursday, 25 April, 2024
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चमोली आपदा संबंधी जांच रिपोर्ट में NDMA ने कहा—लंबे समय तक हाइड्रोपॉवर पर निर्भर नहीं रह सकते

फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली में बाढ़ ने 80 लोगों की जान ले ली थी. इस पर एक साल बाद आई एनडीएमए की रिपोर्ट कहती है कि हिमालयी क्षेत्र में कई जलविद्युत परियोजनाएं ‘पर्यावरण के लिहाज से नाजुक’ इलाकों में स्थापित की गई हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने 2021 की चमोली आपदा के संबंध में अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि सरकार को लंबे समय तक उत्तराखंड की जलविद्युत परियोजनाओं पर निर्भर रहने के बजाये ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी चाहिए.

फरवरी 2021 में आई विनाशकारी बाढ़ के दौरान एक चट्टान दरकने और हिमस्खलन के कारण कम से कम 80 लोग मारे गए थे और 124 अन्य लापता हो गए थे. इस आपदा में 520 मेगावाट की क्षमता वाला तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत संयंत्र पूरी तरह नष्ट हो गया था.

अपनी इस रिपोर्ट—जिस पर अप्रैल की तिथि है और इस साल मई में अपलोड की गई है—में एनडीएमए ने आपदा के एक साल बाद तक गहन अध्ययन करके कुछ सिफारिशें की हैं. इसमें सिफारिश की गई है कि ऊर्जा मंत्रालय को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को तलाशने वाला एक अध्ययन कराना चाहिए. खासकर यह देखते हुए कि हिमालयी क्षेत्र में स्थापित कई जलविद्युत संयंत्र ‘पर्यावरण के लिहाज से नाजुक’ इलाकों में स्थित हैं.

पर्यावरणविद नाजुक पारिस्थितिकी के मद्देनजर ही इस क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं को स्थापित करने का विरोध करते रहे हैं.

एनडीएमए का कहना है कि, अन्य कारणों के अलावा, जिला प्रशासन और परियोजना समर्थकों में दूरदृष्टि की कमी और पूर्व चेतावनी प्रणालियों के अभाव ने इस आपदा को और ज्यादा विनाशकारी बना दिया.

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इसमें यह भी कहा गया है कि तात्कालिक उपाय के तौर पर ऐसे इलाकों में साइट के विशेष अध्ययन के बिना किसी घर, भवन या बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं करना चाहिए जो बाढ़ के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों की श्रेणी में आते हैं यानी पूर्व में जहां बाढ़ अपने उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि खतरे अभी भी कम नहीं हुए हैं. आपदा से मलबे के साथ रौंती गढ़ेरा घाटी में एक कृत्रिम झील और बांध बन रहा है. रिपोर्ट में चेताया गया है कि अगर जल स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है तो इसमें दरार आ सकती है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चूंकि गर्मियों के दौरान बर्फ पिघलना बढ़ेगा, ऐसे में बांध के मलबे के कारण प्रवाह में रुकावट से और ज्यादा पानी जमा हो जाएगा. मलबे का बांध अस्थिर है और ढलान के कारण इसमें दरारें दिखाई दे रही हैं.’


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संस्थाओं को एक साथ जोड़ने की जरूरत

एनडीएमए ने कई अन्य निकायों की मदद से अपनी रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, जल शक्ति और खान मंत्रालय और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान शामिल हैं.

रिपोर्ट में एनडीएमए का कहना है कि जिला आपदा प्रबंधन योजना में ‘जलवायु-परिवर्तन से जुड़े जोखिमों और विकास संबंधी गतिविधियों, बुनियादी ढांचे के विकास, पर्यावरण बदलाव, घर/भवन निर्माण और वनों की कटाई आदि के प्रभावों को शामिल नहीं किया गया है.’

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम के मुताबिक, जिलों से अपेक्षा की जाती है कि वे नियमित आधार पर आपदा प्रबंधन योजना तैयार करेंगे और उन्हें समय-समय पर अपडेट भी करेंगे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जलविद्युत परियोजनाओं की प्रभारी बुनियादी ढांचा कंपनियों ने पूर्व चेतावनी प्रणाली के प्रावधानों को भी शामिल नहीं किया है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एचईपी (हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट) में पलायन और निकासी मार्गों की पहचान की कमी को दूर करने के लिए समय-समय पर निर्माण श्रमिकों के बीच मॉक ड्रिल की जानी चाहिए.’

एनडीएमए ने यह भी पाया कि ग्लेशियोलॉजी और ग्लेशियर अध्ययन के क्षेत्र में विभिन्न संस्थान अलग-अलग काम करते हैं और इन ‘शैक्षणिक, रिसर्च और फील्ड इंस्टीट्यूशन के बीच डेटा भी बहुत कम ही साझा होता है.’ इन प्रयासों के ‘दोहराव’ से बचने के लिए एनडीएमए ने राष्ट्रीय स्तर पर ‘ग्लेशियल रिसर्च स्टडीज एंड मैनेजमेंट सेंटर’ के निर्माण का प्रस्ताव किया है.

साथ ही यह भी कहा है कि उत्तराखंड में एक ‘राज्य आपदा प्रबंधन संस्थान’ की ‘बेहद जरूरत’ है, जो ‘तकनीकी और वैज्ञानिक तरीके से राज्य में संभावित जोखिमों और खतरों की पहचान और अध्ययन कर सके.’

पूर्व चेतावनी प्रणाली और पीड़ितों के लिए परामर्श केंद्र

खासकर ‘क्षेत्र में आम तौर पर अक्सर ही आपदाएं आने को देखते हुए’ एनडीएमए की सिफारिशों में चमोली आपदा के पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए एक परामर्श केंद्र स्थापित करना भी शामिल है.

इस आपदा से तेरह गांव प्रभावित हुए थे और एनडीएमए ने पाया कि परिवार अभी भी आपदा से पीड़ित हैं—खासकर वे जिन्हें अपने रिश्तेदारों के शव तक नहीं मिले हैं—और उन्हें इसकी पुनरावृत्ति की आशंका सताती रहती है.

एनडीएमए ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा इस क्षेत्र में उपग्रहों के जरिये ‘निगरानी’ बढ़ाने की भी सिफारिश की है ताकि इस तरह की घटना को वास्तविक समय में कैद किया जा सके.

इसमें यह भी कहा गया है कि ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हाइड्रो-मीटिरियोलॉजिक स्टेशन की भी ‘बहुत ज्यादा आवश्यकता’ हैं, और इन स्टेशनों के डेटा को ‘वैज्ञानिक और विकास संबंधी उद्देश्यों के लिए संगठनों के बीच साझा किया जाना चाहिए.’

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