चंडीगढ़: पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने संबंधी पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक जज के हालिया आदेश में शामिल एक रेफरेंस ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसमें इससे पहले जमानत याचिका पर सुनवाई से दो न्यायाधीशों के इनकार को लेकर टिप्पणी की गई है.
जस्टिस फतेहदीप सिंह द्वारा पिछले सप्ताह पारित 15 पन्नों के आदेश में दो न्यायाधीशों के कदम को पूर्व डीजीपी की तरफ से ‘न्यायिक प्रक्रिया पर दबाव डालने’ के संभावित प्रयास का नतीजा माना गया है.
पूर्व न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं ने इस संदर्भ को ‘टालने योग्य’ करार देते हुए कहा कि दो न्यायाधीशों ने संभवतः निजी कारणों से मामले से खुद को अलग किया न कि याचिकाकर्ता के किसी दबाव में आकर.
सैनी मोहाली के एक युवक के लापता होने के 29 साल पुराने मामले में फरार चल रहे हैं जिसके बारे में आरोप लगाया जा रहा है कि पंजाब में उग्रवाद के दिनों में पूर्व डीजीपी के निर्देश पर उसकी हत्या की जा चुकी है. पूर्व में मोहाली की सत्र अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया था.
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जस्टिस फतेहदीप सिंह ने 8 सितंबर को जारी अपने आदेश में कहा, ‘जैसे राज्य की ओर से दलील दी गई याचिकाकर्ता (सैनी) शासन की आंखों का तारा रहा है और राजनीतिक संरक्षण ने उसका प्रभाव बहुत ज्यादा बढ़ा दिया और उसने कानून तक को अपने हाथ में ले लिया. और यहां तक कि न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की हद तक चला गया जो विनोद कुमार मामले में इसी कोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश के ऑब्जर्वेशन और इसके बाद दो न्यायाधीशों के इस मामले में सुनवाई से इनकार से स्पष्ट है.’
सैनी की जमानत याचिका पहले जस्टिस अनमोल रतन सिंह के समक्ष सूचीबद्ध की गई थी, जिन्होंने इस मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया था. फिर इसे जस्टिस सुवीर सहगल की कोर्ट में भेजा गया, और उन्होंने भी सुनवाई से इनकार कर दिया. इसके बाद मामला जस्टिस फतेहदीप सिंह के समक्ष सूचीबद्ध किया गया.
‘न्यायाधीशों ने निजी कारणों से नहीं की सुनवाई’
हाई कोर्ट के सूत्रों ने कहा कि जस्टिस सुवीर सहगल और जस्टिस अनमोल रतन सिंह दोनों पूर्व में कुछ सालों के लिए पंजाब के महाधिवक्ता कार्यालय में काम कर चुके हैं. हो सकता है कि वे या तो राज्य की तरफ से सैनी के लिए पेश हुए हों या पुलिस से जुड़े अन्य मामलों को लेकर पूर्व डीजीपी के संपर्क में रहे हों.
हाई कोर्ट के एक वरिष्ठ जज ने नाम न देने की शर्त पर कहा, ‘जस्टिस अनमोल रतन सिंह के पिता पंजाब पुलिस में शीर्ष पद पर रहे थे और हो सकता है कि उनका परिवार सैनी को जानता हो. इसमें थोड़ा संदेह है कि यह कदम निजी कारणों से उठाया गया हो.’
हाई कोर्ट के एक अन्य रिटायर्ड जज जस्टिस एस.डी. आनंद ने कहा, ‘किसी भी जज का सुनवाई से हटना उस मामले की सुनवाई कर रही पीठ के लिए मामले में अनुकूल या प्रतिकूल फैसला सुनाने का आधार नहीं बन सकता. मामले में बेंच का दृष्टिकोण उसके समक्ष पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर निर्धारित होना चाहिए.’
अधिवक्ता हरचंद सिंह बाठ ने कहा कि पहले किसी भी न्यायाधीश ने अन्य न्यायाधीशों के इनकार का इस तरह संदर्भ के तौर पर हवाला नहीं दिया है. उन्होंने कहा, ‘यह जरूरी नहीं है कि दो न्यायाधीशों ने सुनवाई से इसलिए इनकार किया हो क्योंकि वे याचिकाकर्ता के दबाव में थे. यह निजी कारणों से भी हो सकता है.’ बाथ ने कहा, ‘न्यायधीशों के इनकार का कारण न बताना भी हमें एक बहस की शुरुआत को प्रेरित करता है. हालांकि वे इसके लिए बाध्य नहीं हैं, लेकिन दोनों न्यायाधीशों को इसका कुछ कारण तो बताना चाहिए था, तो इस तरह का रेफरेंस नहीं आता. जब कोई कारण नहीं दिया जाता है, तो यह गलत व्याख्या को जन्म देता है.’
जज ने एक अन्य केस का भी उल्लेख किया
सैनी को अग्रिम जमानत से इनकार करते हुए जस्टिस सिंह ने एक अन्य असंबद्ध मामले का भी जिक्र किया जिसका पूर्व डीजीपी सामना कर रहे हैं. इसकी जांच सीबीआई कर रही है और केस दिल्ली में चल रहा है. जज ने कहा, ‘इसके अलावा, जैसा कि अदालत के संज्ञान में लाया गया है कि याचिकाकर्ता ने नई दिल्ली में इस मामले के ट्रायल के दौरान सीबीआई के जांच अधिकारी पर भी दबाव डाला था और यहां तक कि उसे मुकरने को बाध्य किया. चूंकि याचिकाकर्ता की पूर्व जमानत याचिका पर फैसले के बाद कई पुलिस अधिकारियों और अन्य गवाहों के सबूत सामने आए हैं, इसलिए उन्हें याचिकाकर्ता का कोपभाजन बनने से तत्काल बचाने की जरूरत है.’
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव एडवोकेट रोहित सूद ने कहा कि न्यायाधीशों का इनकार उच्च न्यायिक मानदंडों और दृढ़ता का परिचायक है. उन्होंने कहा, ‘इसे किसी अन्य रूप में लेना दुर्भाग्यपूर्ण है.’
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव एडवोकेट बलतेज सिंह सिद्धू ने कहा कि यह मानना गलत होगा कि न्यायाधीश दबाव में हैं या फिर उनसे संपर्क किया गया था जब तक कि न्यायाधीश खुद को सुनवाई से अलग करते समय अदालत में लिखित या मौखिक रूप से यह बात न कहें. उन्होंने कहा, ‘आदेश में जो रिफ्ररेंस दिया गया उसे टाला जा सकता था.’
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