नई दिल्ली: तीसरे चरण के लॉकडाउन तक घर से काम कर रहे लोगों को ज़ूम मीटिंग की आदत पड़ चुकी है. ‘वर्क फ्रॉम होम’ की वजह से लैपटॉप, फ़ोन और इंटरनेट पर निर्भरता भी काफ़ी बढ़ गई है. मुंबई स्थित आई सर्जन डॉक्टर नटराजन का कहना है कि इसकी वजह से उनके मरीज़ों की संख्या भी बढ़ी है.
मोबाइल और इंटरनेट पर बढ़ी निर्भरता की वजह से ऐसे मरीज़ आंखों में जलन, आंखें सूख जाने और आंखों में दर्द की शिकायत लेकर आते हैं. संवाद के लिए लोग काफ़ी हद तक व्हाट्सएप पर निर्भर हुए हैं और इसपर बढ़ी निर्भरता से आंखों पर पड़ने वाले असर को डॉक्टर नटराजन ने ‘व्हाट्सएप विजन सिंड्रोम’ का नाम दिया है.
नेटफ्लिक्स, ज़ूम और गूगल हैंगआउट बने जीवन का अहम अंग
ऑनलाइन गतिविधियों के बढ़ने का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान नेटफ्लिक्स से 1.5 करोड़ से ज़्यादा लोग जुड़े. ये यूज़र बेस मार्च में तब बढ़ना शुरू हुआ जब कोविड-19 की चपेट में आ रहे देश धीरे-धीरे करके ‘शटडाउन मोड’ में जाने लगे.
इसी दौरान सरकारी और प्राइवेट कंपनियों की मीटिंग ज़ूम और गूगल हैंगआउट पर होने लगीं. शिक्षा मंत्रालय ने भी बच्चों के लिए वैकल्पिक स्लेबस तैयार करने के लिए इनका सहारा लिया. हर विषय पर वेबीनार की ऐसी बाढ़ आई है कि इस पर चुटकी लेते हुए अखिल भारतीय नेत्र विज्ञान सोसाइटी की सचिव डॉक्टर नम्रता शर्मा इसे महामारी करार देती हैं.
डॉक्टर नम्रता का कहना है कि सिर्फ इंटरनेट या मोबाइल का इस्तेमाल ही नहीं बल्कि गर्मी के मौमस से भी आंखें सूख जाती हैं. उन्होंने कहा, ‘लंबी-लंबी ज़ूम मिटिंग और वेबीनार का पैंडेमिक आ गया है. इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल से ना सिर्फ आंखों को नुकसान होता है बल्कि इससे कंधे, गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों में भी दर्द हो सकता है.’
दिल्ली स्थित द डायलॉग नाम के एक थिंक टैंक के प्रमुख काज़िम रिजवी ने बताया, ‘जिन देशों में कठोर लॉकडाउन है वहां इंटरनेट के इस्तेमाल में इज़ाफ़ा हुआ है.’ भारत के मामले में टेलिकॉम मंत्रालय के डेटा का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद भारत में इंटरनेट की खपत में मोटा-मोटी 13 प्रतिशत का उछाल आया है.
हैमरकॉफ़ कंज़्यूमर सर्वे के एक ताज़ा सर्वे का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि भारत में सोशल मीडिया के इस्तेमाल में 87 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है. उच्च और स्कूली शिक्षा को लेकर की गई शिक्षा मंत्रालय की घोषणाओं में भी सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया गया है.
पहली से 12वीं कक्षा तक के बच्चों के लिए एनसीईआरटी ने वैकल्पिक अकादमिक कैलेंडर की व्यवस्था की है. इस कैलेंडर के सहारे सीबीएसई के लाख़ों बच्चे इंटरनेट या टीवी के सहारे पढ़ेंगे.
दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलनी स्थित सीबीएसई मीडियम केंब्रिज स्कूली में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली सारा के पिता शहनवाज़ कादिर इसे लेकर चिंतित हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरी बच्ची रोज़ काफ़ी देर तक सिस्टम के आगे बैठी रहती है. ऑनलाइन पढ़ाई का आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है.’ उन्होंने ये भी कहा कि कितबों से ज़्यादा बच्चे मोबाइल और लैपटॉप प्रेमी हो गए हैं. ऐसी ही शिकायत कई और परिजनों की है जिनके बच्चों को इंटरनेट और लैपटॉप के जरिए पढ़ाई करनी पड़ रही है.
ये हाल सिर्फ छात्रों का नहीं बल्कि पढ़ाने वालों का भी है. अमेरिका के शिकागो स्थित जीन सिस्कल फिल्म सेंटर ऑफ़ स्कूल ऑफ़ आर्ट में ग्रैजुएट टीचिंग असिस्टेंट ज़ैनब अहमद ने कहा कि उनके फ़ोन और लैपटॉप के इस्तेमाल में भारी इज़ाफ़ा हुआ है जिससे उनकी आंखों में तकलीफ़ होती है. यही हाल पत्रकारों का भी है.
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इसी बारे में गांव कनेक्शन में काम करने वाले पत्रकार दया सागर ने दिप्रिंट से कहा, ‘दिन भर मोबाइल और लैपटॉप पर लगे रहने से आंखों और सिर में दर्द रहता है.’ इस पर डॉक्टर नटराजन का कहना है, ‘जब हमारी निगाहें लगातार स्क्रीन पर टिकी रहती हैं तो हम पल्कें झपकाना भूल जाते हैं जिससे आंखें सूख जाती हैं और इन्हें नुकसान पहुंचता है.’
मेडिकल एक्सपर्ट के मुताबिक लगातार डिजिटल स्क्रीन पर बने रहने से ‘डिजिटल विजन सिंड्रोम’ का ख़तरा बना रहता हैै. इस सिंड्रोम में आंखें सूख जाती हैं. आंख़ों के सूखने की वजह लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली डिवाइसों से निकलने वाली ब्लू लाइट को माना जाता है.
2017 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली द्वारा आंखों के इलाज से जुड़ी ओपीडी में 5,000 मरीज़ों पर एक सर्वे किया गया. सर्वे में ये बात निकलकर सामने आई कि इनमें से 50 प्रतिशत लोगों को आंखें सूख जान की दिक्कत है. ये सर्वे डॉक्टर जीवन सिंह तितयाल के नेतृत्व में किया गया था.
दिप्रिंट से बातचीत में डॉक्टर तितियाल ने कहा कि अभी मामला 50-50 का है. उन्होंने कहा कि भारत में आंखों पर होने वाले बुरे असर में प्रदूषण एक बड़ा कारक होता है और लॉकडाउन की वजह से ये काफ़ी कम हुआ है. कोविड की वजह से अन्य मरीज़ों को नहीं मिल पा रही देखभाल की वजह से आंखों के मरीज़ों को लेकर ताज़ा आंकड़ा स्पष्ट नहीं है.
हालांकि, उनका मानना है कि भले ही ताज़ा आंकड़े मत हों लेकिन इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल से होने वाले दुष्प्रभाव को नकार नहीं सकते. ऐसे में आंखों की देखभाल के लिए सलाह देते हुए उन्होंने कहा, ‘लगातार स्क्रीन का इस्तेमाल कर रहे लोगों को हर 20-30 मिनट में 20 सेकेंड का ब्रेक लेना चाहिए और बाहर हरी चीज़ों को देखना चाहिए.’
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उन्होंने कहा कि आंखें सूख जाने की स्थिति मेें आई ड्रॉप्स डालें और आंखें मलने के बजाए इन्हें पानी से धोएं. उन्होंने सख़्ती के साथ हिदायत दी कि बाहर से आने के बाद हाथ धोकर ही आंखों को छुएं और जो भी डिवाइस आप इस्तेमाल करते हैं उसे सैनिटाइज़ करते रहें.
अगर हालत गंभीर हो जाती है तो ऐसी स्थिति में टेलिकंसल्टेशन लेने की सलाह दी गई है. गंभीर हालत को आंखों में लगातार बनी लालिमा, धुंधलापन छा जाने और लगातार दर्द होने जैसी स्थिति से समझ सकते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि कोविड पीड़ित काफ़ी एसिंप्टोमैटिक लोगों को आंखों में इंफेक्शन की जानकारी सामने आई है.
ऐसे में उन्होंने आंखों में ज़्यादा तकलीफ़ की स्थिति में कोविड-19 का टेस्ट कराने की भी सलाह दी है.