वाराणसी: आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है.आप भी इस मौके पर अपने आस-पास के कई महिला दोस्तों को आप बधाई दे रहे होंगे. मैसेज कर रहे होंगे, कार्ड दिया होगा, फोन पर भी संदेश भेज रहे होंगे. लेकिन क्या आपने कभी अपने आस-पास की कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में जानने की कोशिश की है जो लगातार समाज के लिए काम कर रही हैं? क्या आपने जानने की कोशिश की है इसके पीछे उनकी कितनी मेहनत है? आइए महिला दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी जिले की कुछ महिलाओं से मिलते हैं जो चुपचाप क्रांति ला रही हैं.
मुसहर समाज में एक मिसाल हैं बदामी देवी
‘नाम-बदामी देवी, जाति-मुसहर, काम- समाज में दबे कुचले मुसहर परिवारों को हिम्मत हौसला देना, उनके हक के लिए जागरूक करना, समाज में उनकी दबती हुई आवाज़ को उठाना.’ बदामी वाराणसी जिले के उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा हैं जिन्हें समाज में आज भी हासिए पर रखा गया है. पूरे मुसहर समाज में अपने बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ उन्हें सही रास्ते पर लाने के काम में जुटी हैं बादामी.
बादामी 45 वर्ष की हैं लेकिन उनकी समाज के प्रति सच्चाई का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि, ‘इनके बेटे शैलेंद्र पर एक महिला के साथ बलात्कार का आरोप लगा और अगस्त 2019 में उसपर केस हुआ. वह अभी जेल में बंद है, लेकिन उसे छुड़ाने नहीं गई हैं.’ बदामी कहती हैं, ‘जब तक उसे ज्ञान ना आ जाए और वह सुधर जाए तब तक वहीं रहे.’
वो कहती हैं कि ‘हम पति पत्नी दृढ़ संकल्पित हैं उन्हें सुधारने के लिए.’
बादामी के बारे में मानवाधिकार कार्यकर्ता शबाना खान कहती हैं कि, ‘बादामी सबसे पहले एक सामाजिक संगठन के साथ जुड़ी, जिसमें वो समाज में दबे कुचले मुसहर परिवारों को साथ जोड़कर गांव गांव में मीटिंग कर जागरूकता अभियान चलाकर उनके हक अधिकारों की मांग की. अब बदामी की गांव से लेकर दूर-दूर तक चर्चा होने लगी और गांव के आसपास लगभग 20 गांव के लोग उन्हें जानते हैं.
अपने बारे में बताते हुए बदामी कहती हैं कि, ‘मैं बहुत छोटी थी जब मेरी शादी हुई थी, मुझे याद भी नहीं है, शादी के 9 साल बाद मेरा गौना हुआ था. ससुराल आने के बाद मैं ईंट-भट्ठे में काम करने लगी, लेकिन वहां पर काम करते हुए भी खाने-पीने की दिक्कतें रहती थी और काम ज्यादा रहता था इसलिए हमने उस काम को छोड़कर बटाई पर खेती करने की सोची. बादामी बताती हैं कि, ‘मेरे पति श्वामीनाथन आज भी ईंट पथाई (बनाने) का काम करते है.
बदामी के 9 बच्चे हैं, वो कहती हैं कि मेरी शादी कम उम्र में हो गई थी लेकिन मैंने फैसला किया कि मैं अपने सभी बच्चों को पढ़ाउंगी और जब तक उनकी शादी की सही उम्र नहीं हो जाएगी तब तक किसी की शादी नहीं करूंगी. बाल विवाह से चुनौती भरे मुसहर समाज में बदामी सामाज को लगातार शिक्षित होने के लिए जागरूक करती हैं, इतना ही नहीं, पढ़ाई कर रहे सभी बच्चों की जरूरत को पूरा करती है.
एक नाम, एक रौशनी
सामाजिक कार्यकर्ता जागृति राही वाराणसी ही नहीं बल्कि प्रदेश और देश के स्तर पर बच्चों, महिलाओ के लिए लगातार आवाज उठाती रही हैं. वैचारिक रूप से स्वतंत्रता सेनानी गांधीवादी परिवार से ताल्लुक रखने वाली हैं. जागृति रही सामाजिक सौहार्द, पर्यावरण, शिक्षा, सामाजिक न्याय आदि मुद्दों पर भी लगातार सक्रिय रहती हैं.
जागृति राही ना केवल महिलाओं और बच्चों की आवाजों को सुनती और समाज तक पहुंचाती हैं बल्कि, लीगल कार्यवाही में भी पूरी तरह से मदद करती हैं. जागृति का कहना है कि, ‘हम समाज को तभी बराबरी पर ला सकते हैं, जब सभी को न्याय मिले, ऐसा ना हो कि एक गरीब तबका न्याय से वंचित रह जाय.’
जागृति रही बताती हैं कि, ‘मेरे दादा श्री पंचदेव तिवारी बलिया से स्वतंत्रता सेनानी थे, मेरे पिता श्री रामचंद्र राही केंद्रीय गांधी निधि के अध्यक्ष है, मेरे नाना जी भी गुजरात से स्वतंत्रता सेनानी थे. मैं उनकी ही दी शिक्षा और विचारधारा पर काम करती रही हूं.’
बीएचयू में छात्राओं की आवाज
सितंबर महीने में बीएचयू में महिला शौचालय, कर्फ्यू टाइमिंग और सैनिटरी पैड समेत कई मांगों को लेकर भूख हड़ताल कर महिलाओं की जरूरत सामने लाने वाली आकांक्षा. बीएचयू के इतिहास में दर्ज हो गया, वो नाम है आकांक्षा आज़ाद का. होस्टल में रहने वाली लड़कियों के साथ हर दिन होने वाली छेड़-छाड़ से लेकर सैनिटरी पैड तक की लड़ाई लड़ी है. वह कहती हैं जब तक अत्याचार सहेंगे तब तक होता रहेगा जरूरी है आवाज बुलंद करने की.
बीएचयू में पीजी की छात्रा, देश दुनिया के तमाम मुद्दे पर खुलकर अपनी आवाज़ बुलंद करने वाली आकांक्षा कहती हैं कि, ‘ऐसा नहीं है कि दुनिया में केवल एक ही समस्या है, बहुत सी समस्याए हैं, लोग खुद में ही परेशान हैं हमारे लिए कौन क्या करेगा? इसलिए हमें खुद अपनी आवाज़ उठानी पड़ेगी, आज जब महिलाओं पर हर तरह से अत्याचार हो रहा है तो हमें अपनी आवाज़ खुद ही उठाने की जरूरत है.
आकांक्षा अक्सर छोटी-छोटी मांगों को लेकर अपने आवाज़ बुलंद करती थी लेकिन जब उन्होने भूख हड़ताल किया तो बीएचयू प्रशासन को झुकना ही पड़ा था.
बुनकर लड़की
सानिया अनवर, ये नाम 19 दिसंबर से पहले पर्यावरण और समाज के लिए काम करने वाली एक लड़की का था लेकिन 2 जनवरी तक ये नाम बुनकर समाज के लिए एक रौशनी की किरण लेकर आई. महज 15 दिन में सब कुछ बदल गया.
सानिया अनवर पिछले पांच साल से पर्यावरण को लेकर काम करती आ रही हैं. वह ‘क्लाइमेट एजेंडा’ नाम की संस्था के साथ जुड़कर काम कर रही हैं. क्लाइमेट एजेंडा की एकता शेखर बताती हैं कि वह पिछले पांच साल से उत्तर प्रदेश के 40 जिलों में पर्यावरण और वायु प्रदूषण को लेकर लोगों को जागरूक कर रही हैं. इस दौरान सानिया ने उत्तर प्रदेश में चल रहे तमाम संस्थाओं के साथ मिलकर उन्हें एक पटल पर लाने की कोशिश की. इस तरह से लोगों तक उन्होंने अपनी बात पहुंचाई.
क्लाइमेट एजेंडा मुख्य अभियंता एकता शेखर सानिया के बारे में बात करते हुए बताती हैं, ‘सानिया लगातार जन जागरूकता अभियान का आयोजन करती रहती हैं. वो कभी भी संस्था या अपने नाम के लिए नहीं बल्कि हमेशा भविष्य और पर्यावरण के लिए काम करती हैं.’
(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं)