नयी दिल्ली, 27 अगस्त (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने आत्मनिर्भरता की जोरदार पैरोकारी करते हुए बुधवार को कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, दबाव में नहीं।
आरएसएस की 100 वर्ष की यात्रा पर एक व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि आत्मनिर्भरता सभी समस्याओं का समाधान है और इसके लिए स्वदेशी को प्राथमिकता देनी होगी।
भागवत ने कहा, ‘‘आत्मनिर्भर होने का मतलब आयात बंद करना नहीं है। दुनिया आगे बढ़ती है, क्योंकि यह एक-दूसरे पर निर्भर है। इसलिए आयात-निर्यात जारी रहेगा। हालांकि, इसमें कोई दबाव नहीं होना चाहिए।’’
सरसंघचालक ने राजनयिकों, नौकरशाहों, पूर्व सैन्य कर्मियों, वैज्ञानिकों, विचारकों और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों सहित अन्य को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘बाहर (विदेशों) से वस्तुएं आयात करने से स्थानीय विक्रेताओं को नुकसान होता है।’’
सूत्रों ने बताया कि भागवत ने दो दर्जन से अधिक देशों के 50 से अधिक राजनयिकों के साथ एक अलग बैठक भी की।
भागवत की यह टिप्पणी ऐसे दिन आई है, जब रूसी तेल की खरीद को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाया गया 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ (शुल्क) लागू हो गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘जो कुछ भी आपके देश में बनता है, उसे बाहर से आयात करने की कोई जरूरत नहीं है। जो कुछ भी जीवन के लिए जरूरी है और आपके देश में नहीं बनता, उसे हम बाहर से आयात करेंगे।’’
भागवत ने कहा, ‘‘देश की नीति स्वेच्छा से बनाई जानी चाहिए, किसी के दबाव में नहीं आना चाहिए। यही स्वदेशी है।’’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि मौजूदा विश्व व्यवस्था में कट्टरपंथ बढ़ गया है क्योंकि लोग अपने विचारों के खिलाफ बोलने वालों को नकार देते हैं।
भागवत ने कट्टरपंथ और अनियंत्रित उपभोक्तावाद के प्रति आगाह किया।
उन्होंने कहा, ‘‘समाधान धर्म में निहित है…धर्म विविधता का सम्मान करता है, जिसमें पर्यावरण का सम्मान भी शामिल है। धर्म संतुलन की बात करता है। भारत इस आधुनिक चुनौती का समाधान दे सकता है जिसका विश्व अभी सामना कर रहा है।’’
भागवत ने कहा, ‘‘दुनिया में परिवर्तन लाने से पहले हमें अपने घर से समाज में परिवर्तन की शुरुआत करनी होगी।’’
उन्होंने कहा कि इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन — कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्व की पहचान तथा नागरिक कर्तव्यों का पालन — बताये हैं।
भागवत ने कहा, ‘‘अगर हम किसी को देखकर उसकी जाति के बारे में सोचते हैं तो यह समस्या पैदा करने वाला है। इस मानसिकता को बदलना होगा। हम जहां भी रहते हैं या काम करते हैं, हमें सभी के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए और उन्हें अपना मानना चाहिए। मंदिर, जल, श्मशान सभी के लिए हैं और इन मामलों में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि आरएसएस का प्रयास समाज के हर वर्ग तक पहुंचना होगा और आशा जताई कि अन्य देशों में भी संघ जैसे संगठन की भावना पनपेगी।
उन्होंने कहा, ‘‘समाज का कोई भी व्यक्ति अछूता नहीं रहना चाहिए। हमें अपने कार्य का भौगोलिक विस्तार करना होगा। गांव-गांव, घर-घर, समाज के कोने-कोने तक पहुंचना होगा, गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों से लेकर समृद्ध लोगों तक।’’
दिवंगत आरएसएस नेता लक्ष्मणराव भिडे द्वारा आयोजित प्रशिक्षण सत्रों को याद करते हुए, भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों की पहली पीढ़ी ने विदेशों में हिंदुओं को संगठित किया और दूसरी पीढ़ी ने यह सुनिश्चित किया कि वे व्यसन और घोर उपभोक्तावाद से दूर रहें।
उन्होंने कहा, ‘‘तीसरी पीढ़ी को इस तरह काम करना चाहिए कि जिस देश में वे रह रहे हैं, वहां के लोगों को भी यह महसूस हो कि उनके देश में भी आरएसएस जैसा एक संगठन होना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘भारत के अधिकतर पड़ोसी क्षेत्र कभी भारत का हिस्सा थे – लोग, भूगोल, नदियां और जंगल आज भी वही हैं बस रेखाएं नक्शों पर खींची गई हैं। हमारा कर्तव्य इन लोगों में अपनेपन की भावना को बढ़ावा देना है।’’
आरएसएस ने अपने शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में देश भर में एक लाख से अधिक ‘हिंदू सम्मेलनों’ सहित कई कार्यक्रमों के जरिये व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाने की योजना बनाई है, जिसकी शुरुआत इस साल 2 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में भागवत के संबोधन से होगी।
आरएसएस ने अपने शताब्दी वर्ष के दौरान राष्ट्रव्यापी ‘‘घर-घर’’ जनसंपर्क कार्यक्रम संचालित करने की भी योजना बनाई है।
भाषा सुभाष अविनाश
अविनाश
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