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शुक्रवार, 23 मई, 2025
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अजंता गुफा 17 में ‘व्यापारी’ जहाज की पेंटिंग से प्रेरित है आईएनएसवी कौंडिन्य: विशेषज्ञ

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छत्रपति संभाजीनगर, 23 मई (भाषा) अजंता की गुफा संख्या 17 में पांचवीं शताब्दी के दौरान समुद्री व्यापार को दर्शाने वाले एक ‘व्यापारी जहाज’ के चित्र से प्रेरणा लेकर भारतीय नौसेना ने आईएनएसवी कौंडिन्य नाम का एक पोत प्राचीन सिले हुए जहाज (स्टिच्ड शिप) निर्माण पद्धति से तैयार किया है। एक विशेषज्ञ ने यह जानकारी दी।

भारतीय नौसेना ने पारंपरिक विधि से निर्मित पोत ‘आईएनएसवी कौंडिन्य’ को बुधवार को कर्नाटक में कारवार नौसैनिक प्रतिष्ठान में आयोजित एक समारोह के दौरान बेड़े में शामिल किया।

इस पोत की प्रेरणा पांचवीं शताब्दी के जहाज से ली गई है और इसका नाम ‘कौंडिन्य’ के नाम पर रखा गया है, जो हिंद महासागर को पार करके दक्षिण पूर्व एशिया तक यात्रा करने वाले एक महान भारतीय नाविक थे।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘ गुफा 17 में दर्शाया गया जहाज व्यापारी जहाज जैसा दिखता है और यह पांचवीं शताब्दी के वक्त के समुद्री व्यापार के अस्तित्व को दर्शाता है।’’

ये अधिकारी अजंता गुफाओं के विशेषज्ञ भी हैं।

एक अन्य अधिकारी ने कलाकृति को उस युग के समुद्री मार्ग से व्यापार के सबसे पुराने दृश्य अभिलेखों में से एक बताया।

उन्होंने कहा, ‘‘ हम इस पेंटिंग में नाव और पाल जैसी बारीकियां पहचान सकते हैं। इसीलिए इसे इस परियोजना के लिए चुना गया।’’

कला इतिहासकार सैली पलांडे-दातार ने इस पेंटिंग को बौद्ध साहित्य की एक कथा ‘पूर्णा अवदान’ से जोड़ा है। उन्होंने कहा कि अजंता की कई गुफाओं में जहाजों की पेंटिंग हैं।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ हम इस खास जहाज को ‘पूर्णा अवदान’ कथा से जोड़ सकते हैं। पूर्णा और भाविला बंधु शूरपारका (मुंबई के पास वर्तमान सोपारा) के चंदन के व्यापारी थे। उन्होंने छह समुद्री यात्राएं कीं। पूर्णा ने बौद्ध धर्म अपना लिया और सोपारा में बस गए, वहीं भाविला ने चंदन लाने के लिए सातवीं यात्रा की।’’

कला इतिहासकार ने बताया कि यात्रा के दौरान भाविला को महेश्वर नामक एक ‘यक्ष’ ने रोका और जहाज को डुबोने की कोशिश की।

उन्होंने कहा, ‘‘ भाविला ने पूर्णा से प्रार्थना की जिसके बाद पूर्णा प्रकट हुए और उसे तथा जहाज को बचाया। बाद में उन्होंने सोपारा में चंदन की लकड़ी से एक ‘विहार’ बनाया। कहा जाता है कि उनसे मिलने के लिए बुद्ध श्रावस्ती से सोपारा आए थे। यह एक पौराणिक कथा है जो महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रसार को दर्शाती है।’’

भाषा शोभना प्रशांत

प्रशांत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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