गुवाहाटी, 26 अप्रैल (भाषा) असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने आरोप लगाया कि सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर करना पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ‘‘सबसे बड़ी रणनीतिक भूलों में से एक’’ थी। उन्होंने कहा कि संधि को स्थगित किये जाने से स्पष्ट संदेश दिया गया है कि भारत ‘‘अब आतंकवाद और शत्रुता को तुष्टीकरण से पुरस्कृत नहीं करेगा’’।
उन्होंने संधि को स्थगित रखने के नरेन्द्र मोदी सरकार के निर्णय की सराहना की।
भारत ने दशकों पुरानी संधि को स्थगित करने का निर्णय मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की घटना के बाद लिया था। इस हमले में 26 लोगों की मौत हुई थी।
शर्मा ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किया जाना भारत के इतिहास की सबसे बड़ी रणनीतिक भूलों में से एक है।’’
मुख्यमंत्री ने दावा किया, ‘‘भारत के ऊपरी तटवर्ती क्षेत्र में लाभ के बावजूद, नेहरू ने तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन और विश्व बैंक के भारी दबाव में, सिंधु नदी बेसिन के 80 प्रतिशत से अधिक पानी को पाकिस्तान को सौंप दिया, जिससे विशाल सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों पर पूर्ण नियंत्रण मिल गया, जबकि भारत को छोटी पूर्वी नदियों (रावी, व्यास, सतलुज) तक सीमित कर दिया गया।’’
शर्मा ने कहा कि पाकिस्तान को सालाना 13.5 करोड़ एकड़ फुट (एमएएफ) पानी मिलता है, जबकि भारत के पास सिर्फ 33 एमएएफ पानी बचता है।
उन्होंने दावा किया कि पश्चिमी नदियों पर भारत का अधिकार केवल लघु सिंचाई और बिना किसी सार्थक भंडारण के नदी-प्रवाह पनबिजली परियोजनाओं तक सीमित है, जिससे पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की जल आवश्यकताओं को लेकर स्थायी रूप से समझौता किया गया।
शर्मा ने कहा कि सिंधु जल संधि स्थगित करने संबंधी कदम से ‘‘पाकिस्तान की नाजुक अर्थव्यवस्था’’ पर प्रहार किया गया है, जहां 75 प्रतिशत से अधिक कृषि सिंधु जल पर निर्भर है।
उन्होंने यह भी दावा किया, ‘‘मोदी की कार्रवाई एक नए, मुखर भारत के उदय का प्रतीक है जो बिना किसी माफी के अपने हितों की रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्पित है।’’
भाषा
देवेंद्र पवनेश
पवनेश
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