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Monday, 13 May, 2024
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बेटी की हत्या की आरोपी इंद्राणी मुखर्जी बोलीं, ‘मां की अंतरात्मा कहती है कि शीना अभी भी जिंदा हैं.’

मुखर्जी, जिन्होंने शीना बोरा मामले में 6 साल से अधिक जेल में बिताए और संस्मरण 'अनब्रोकन' में अपनी जीवन की कहानी लिखी है, उन्होंने दावा किया है कि उनकी बेटी की मौत को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है.

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मुंबई: अपनी पहली जन्मी बेटी शीना बोरा की हत्या की आरोपी पूर्व मीडिया कार्यकारी इंद्राणी मुखर्जी का कहना है कि एक मां के रूप में वह सहज रूप से जानती हैं कि उनकी बच्ची अभी भी जीवित है, उनका दावा है कि उसकी मौत को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है.

मुखर्जी, जिन्होंने अपने जीवन की कहानी और उस हत्या के मामले के बारे में अपना संस्करण लिखा है, जिसके लिए उन पर मुकदमा चलाया जा रहा है, अपने संस्मरण अनब्रोकन के बारे में वो सोमवार को दिप्रिंट से बात कर रही थीं.

मुखर्जी ने कहा, “इस समय मुझे ऐसा लगता है कि वह कहीं बाहर है. मैं उससे व्यक्तिगत रूप से नहीं मिली हूं, लेकिन अदालत में यह अच्छी तरह से स्थापित है कि हत्या की कथित तारीख के बाद शीना जीवित थी. ” इंद्राणी को अपनी बेटी की हत्या के आरोप में छह साल और आठ महीने जेल में बिताए थे,तब तक जब तक मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने उसे जमानत की मंजूरी नहीं दे दी.

उन्होंने कहा, “ऐसे कई लोग हैं जो शीना से मिलने का दावा करते हैं, जिन्होंने जाकर अदालत में हलफनामा दायर किया है और प्रेस से भी कहा है कि हां, हम (उससे) मिले हैं.”

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मुखर्जी ने कहा, ” मुझे अंदाजा हो रहा है, और मुझे आभास भी होता है, मुझे लगता है कि वह यहीं कहीं है क्योंकि यह स्थापित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि वह जीवित नहीं है, इसलिए उस तर्क के आधार पर और एक मां के रूप में मैं यह विश्वास नहीं कर पा रही हूं कि शीना जीवित नहीं है.”

पूर्व मानव संसाधन सलाहकार और आईएनएक्स मीडिया के सह-संस्थापक मुखर्जी को मुंबई पुलिस ने 2015 में उनके पूर्व पति संजीव खन्ना, तत्कालीन पति पीटर मुखर्जी और उनके ड्राइवर श्यामवर राय के साथ साजिश कर 24 वर्षीय बोरा की 2012 में हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

मुखर्जी ने अपनी किताब में कहा है कि किशोरावस्था में अपने ही पिता द्वारा बलात्कार किए जाने के बाद उन्होंने बोरा को जन्म दिया.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, बोरा की एक कार में गला घोंटकर हत्या कर दी गई और उसके शव को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के एक जंगल में जला दिया गया.

जनवरी 2020 में, मुखर्जी ने कथित तौर पर अदालत में आरोप लगाया कि रायगढ़ के जंगल से खोद कर निकाली गई खोपड़ी बोरा की थी, यह साबित करने के लिए इस्तेमाल की गई तकनीक “शौकिया” थी और “वैज्ञानिक प्रक्रिया के अनुरूप नहीं थी”.

मुखर्जी के वकील ने दावा किया कि तकनीक – क्रैनियो फेशियल सुपर इम्पोज़िशन – का उपयोग निर्णायक रूप से पहचान साबित करने के बजाय केवल व्यक्तियों को बाहर करने के लिए किया जा सकता है.

मुखर्जी ने हमेशा कहा है कि बोरा की हत्या नहीं हुई थी और वह 2012 में पढ़ाई के लिए विदेश गईं थीं. हालांकि, वह कभी भी इस दावे को साबित नहीं कर सकी.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अनुसार, मुखर्जी ने बोरा की हत्या कर दी क्योंकि वह बोरा, जिसे उसने लोगों के सामने अपनी बहन के रूप में पेश किया था और पीटर मुखर्जी के पहली शादी से पैदा हुए बेटे राहुल मुखर्जी के बीच रिश्ते से परेशान थी.

एजेंसी ने आरोप लगाया कि मुखर्जी ने अपनी दूसरी बेटी विधि के जैविक पिता, पूर्व पति खन्ना से चिंता व्यक्त की थी कि अगर राहुल और शीना की शादी हो गई, तो उन्हें मुखर्जी की सारी संपत्ति मिल जाएगी, जबकि विधि के पास कुछ भी नहीं बचेगा.


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‘पहले कुछ दिन बच्चे की मौत के गम में जेल में बिताए’

मुंबई की बायकुला महिला जेल में बंद मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने जेल में पहले कुछ दिन बोरा के ठिकाने के बारे में सोचते हुए और यह सोचते हुए बिताए कि उन्होंने अपना बच्चा खो दिया है.

मुखर्जी ने दिप्रिंट को बताया, “शुरुआत में मैं दुःख से जूझ रही थी. जब तक आरोप-पत्र नहीं आया और जब तक डीएनए विशेषज्ञ आकर गवाही नहीं दे गए और मैंने इसके विवरण को नहीं देखा, मेरे दिमाग में शीना के साथ वास्तव में कुछ हुआ है. मैंने सोचा, हे भगवान, यह उसका शरीर होगा. यह इस बारे में नहीं है कि यह किसने किया है. लेकिन यह सिर्फ एक बच्चे को खोने से जुड़ा मेरा दर्द है.”

उसने आगे कहा, “मैं पहले उस दुःख से निपट रही थी, फिर अपने परिवार द्वारा त्याग दिए जाने के दुःख से. तीसरी बात ये थी कि वो कौन है, जिसने मेरी बेटी के साथ ऐसा किया है और मुझे इसके लिए किसलिए और क्यों फंसाया है, वो भी तीन साल बाद. मैं वह सब प्रोसेस कर रही थी.”

अनब्रोकन में, जो पिछले महीने प्रकाशित हुई थी, मुखर्जी ने लिखा है कि जब से उनकी दोस्त सवीना ने उन्हें बताया कि उन्होंने बोरा को गुवाहाटी हवाई अड्डे पर देखा था, तब से उन्हें कितनी शांति मिली है और कहा कि यह दूसरी बार है जब उन्हें उनके बारे में बताया गया है कि बेटी जीवित है.

मुखर्जी ने अपनी किताब में कहा है, “यह जानकारी मिलने के बाद कि मेरी बेटी जिंदा है, मेरे अंदर कुछ बदलाव आया. जिस व्यक्ति की हत्या का मुझ पर आरोप है वह बाहर है, जबकि मैं जेल में सड़ रही थी. वह खुलकर सामने क्यों नहीं आईं? मुझें नहीं पता. मुझे यकीन है कि कुछ कारण और दबाव हैं जो उन्हें पीछे खींच रहे हैं.”

दिप्रिंट से बात करते हुए मुखर्जी ने कहा कि वह बोरा के ‘बहुत करीब’ थीं और उनकी बेटी ने कभी भी उनके ‘बुरी मां’ होने के बारे में कोई शिकायत व्यक्त नहीं की थी.

उन्होंने कहा, “कोई अच्छी मां या बुरी मां नहीं होती है. कोई भी मां किसी भी उम्र में अपने बच्चे के लिए गोली खाने को तैयार रहती है. मैं अभी भी ऐसा कर सकती हूं, मैं इसे तब भी करूंगी जब मैं 90 साल की हो जाऊंगी.”

उसने कहा कि वह अपने दूसरे जन्मे बच्चे, बेटे मिखाइल के संपर्क में नहीं हैं, जो उसके पूर्व साथी के साथ था, क्योंकि वह उसके मामले में गवाह है और उसने उसके साथ संपर्क स्थापित करने का प्रयास नहीं किया है.

‘मेरे बचपन में लिए गए निर्णयों के आधार पर जज किया गया’

मुखर्जी की किताब कुछ दर्दनाक अनुभवों पर प्रकाश डालती है जिनके बारे में उनका दावा है कि वह अपने बचपन और प्रारंभिक वयस्कता के दौरान गुजरी थीं.

उसने लिखा कि उसके पिता ने 14 साल की उम्र में और फिर 16 साल की उम्र में उसके साथ बलात्कार किया लेकिन उनकी मां ने पिता के खिलाफ कोई कड़ा कदम नहीं उठाया. मुखर्जी के मुताबिक, इस तरह वह बोरा से गर्भवती हो गईं.

किताब के मुताबिक, 18 साल की उम्र में मुखर्जी ने अपने दो बच्चों बोरा और मिखाइल को छोड़कर हाइअर एजूकेशन के लिए गुवाहाटी, जहां वह रहती हैं, से बाहर जाने का फैसला किया.

मुखर्जी ने दिप्रिंट को बताया कि लोगों ने उनके उन फैसलों के लिए उन्हें गलत तरीके से आंका है जो उन्होंने तब लिए थे जब वह बहुत छोटी थीं.

उन्होंने कहा, “एक समय ऐसा भी आता है जब आपको अपना भी ख्याल रखना होता है. जब मैंने गुवाहाटी छोड़ा, तो लोग भूल गए कि मैं सिर्फ 18 साल की थी. मैंने अपना जीवन शुरू नहीं किया था और यह एक 18 साल के लड़की द्वारा लिया गया निर्णय था. शायद आज मेरा निर्णय अलग हो सकता था, मुझे नहीं पता, शायद मैं अब भी वही करती.”

उन्होंने आगे कहा, “लोगों ने मुझे 18 या 21 या 25 साल की उम्र में लिए गए निर्णयों के आधार पर आंकने का फैसला किया है.” उन्होंने आगे कहा कि महिलाओं को महत्वाकांक्षी होने के लिए अपमानित किया जाता है.

अनब्रोकन में, मुखर्जी ने यह भी विस्तार से बताया है कि कैसे उनके दूसरे पति, स्टार इंडिया के पूर्व मुख्य कार्यकारी पीटर मुखर्जी और उनके परिवार ने उन्हें “त्याग” दिया.

बोरा की हत्या की साजिश का हिस्सा होने के आरोप में इंद्राणी मुखर्जी की गिरफ्तारी के तीन महीने बाद पीटर मुखर्जी को गिरफ्तार किया गया था. सेवानिवृत्त टेलीविजन कार्यकारी को 2020 में जमानत पर रिहा कर दिया गया था.

मुखर्जी दंपति ने 2019 में अपनी 17 साल की शादी को समाप्त कर दिया, जबकि दोनों अभी भी जेल में थे.

मुखर्जी ने दिप्रिंट से कहा, ”मैं सिर्फ दिखावे के लिए किसी रिश्ते में नहीं रह सकती.”

‘किताब से अपनी अभिव्यक्ति, इसे जेल में लिखा’

मुखर्जी ने कहा कि मुंबई के पॉश इलाके वर्ली में अपने भव्य समुद्र के सामने वाले सीढ़ीदार अपार्टमेंट से भायखला जेल जाना “शुरुआत में एक बहुत बड़ा झटका”.

उन्होंने आगे कहा कि उन्हें अंततः फर्श पर सोने की आदत हो गई और जेल में परोसी जाने वाली साधारण “रोटी, सब्जी, दाल और चावल” का स्वाद चख लिया. उनके अनुसार, जेल की दाल “बहुत बढ़िया” थी.

मुखर्जी ने बताया कि उन्होंने जेल में रहते हुए “कागज पर स्याही” डालकर नोटबुक पर अनब्रोकन लिखा था.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “हम जेल की दुकान से नोटबुक खरीद सकते थे. मैंने अपनी किताब पारंपरिक तरीके से लिखी… और मैंने इसे विराम चिह्नों और अल्पविरामों की सटीकता के साथ लिखा और मैं हर पृष्ठ, हर शब्द को गिना. जब मैं जेल से बाहर आई, तब तक मैं 24 चैप्टर और 1,29,000 शब्द लिख चुका था. बाकी मैंने बाहर आने के बाद लिखा.”

अपने बचपन, अपनी शादियों और अपने बच्चों के साथ अपने संबंधों के अलावा, मुखर्जी ने अपनी किताब में आरोप लगाया कि तत्कालीन मुंबई पुलिस प्रमुख राकेश मारिया ने “उनसे कबूल करने का आग्रह किया था” और उन्हें “उन्हें एटीट्यूड न दिखाने” की चेतावनी दी थी.

मुखर्जी ने दिप्रिंट को बताया, ”मैं राकेश मारिया के बारे में ज्यादा नहीं सोचती… कोई कारण होगा कि राकेश मारिया को जांच जारी रखने के लिए उपयुक्त नहीं माना गया.”

मुखर्जी की गिरफ्तारी के कुछ ही दिनों के भीतर सितंबर 2015 में मारिया को मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से ट्रांसफर कर दिया गया और उनकी जगह अहमद जावेद को नियुक्त किया गया. कथित तौर पर मारिया ने अपनी पुस्तक लेट मी से इट नाउ में जावेद को “मुखर्जी-फ्रेंडली” पुलिस आयुक्त के रूप में वर्णित किया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, मुखर्जी ने जोर देकर कहा कि उनकी किताब “न तो उनकी कानूनी यात्रा का हिस्सा थी और न ही इमेज की लड़ाई”.

उन्होंने कहा, “यह किताब मेरे लिए उन सभी बातों का अभिव्यक्ति और समापन है जो मेरे बारे में कही गईं और जो चीजें मेरे जीवन में हुईं हैं.”

(संपादनः पूजा मेहरोत्रा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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