इंदौर: देश का सबसे साफ शहर इंदौर एक दिन में नहीं बना. लगातार दो वर्षों तक नंबर एक रहने वाले इंदौर को साफ-सुथरा बनाने के पीछे मेहनत है इंदौर नगर निगम के कमिश्नर आशीष सिंह की. उन्होंने बायो माइनिंग मॉडल के जरिए शहर के 13 लाख टन कूड़े को महज छह महीने में निपटा दिया. आज जब देश के अधिकतर राज्य कूड़े को निपटाने की परेशानी से जूझ रहे हैं वहीं इंदौर के आईएएस अधिकारी आशीष सिंह कूड़ा निपटान को लेकर मॉडल तैयार किया है जिसे पूरा देश इसे अपनाने में रुचि ले रहा है.
2010 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस आशीष इंदौर नगर निगम के कमिश्नर 2018 में नियुक्त किए गए थे. वह बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा के बाद मैंने देखा कि इंदौर 100 एकड़ का डंप साइट कछुआ के चाल की गति से सफाई का काम कर रहा है. सिंह ने प्रिंट को बताया, ‘दो वर्षों में सिर्फ दो लाख टन कूड़ा ही साफ हो सका.’ जिसके बाद उन्हें नगर निगम कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया गया जहां उन्होंने कूड़ा निपटाने को एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में देखते हुए एक मिशन की तरह काम किया.
वह बताते हैं, ‘अगर पुराने मॉडल को देखें तो सरकार साफ-सफाई के लिए निजी कंपनी को कांट्रैक्ट देती थी. जिसमें निगम को प्रति क्यूबिक मीटर के हिसाब से 475 रुपये खर्च आता था. और यह करीब 60-65 करोड़ रुपये का खर्च था. फिर भी शहर साफ नहीं हो पा रहा था.’ सिंह ने पूरे डंपिंग साइट को महज 10 करोड़ रुपये खर्च कर साफ कराया. सिंह ने बताया कि जब हमें पता चला कि सारी समस्या की जड़ फंडिंग है तो हमने बायो-माइनिंग के लिए अपने काम को ठेके पर देने के बजाए मशीनें खुद किराए पर लीं और सारे काम को अपनी निगरानी में कराया. मजेदार बात यह है कि पूरे महीने के लिए हमें मशीनें 7 लाख रुपये में मिली.
सिंह ने आगे बताया, ‘हमनें कई मशीने लीं, अपने संसाधनों के साथ निगम के कर्मचारी लगातार 14-15 घंटे तक काम करते रहे, और महज छह महीनें में हमने 13 लाख टन कूड़े को शहर से हटा दिया.’
कैसे निपटाया गया कूड़ा
बायो माइनिंग का मतलब है जैविक और गैर जैविक (गीले और सूखे कूड़े) को अलग-अलग करना. सिंह ने बताया कि इंदौर में इस तकनीक का उपयोग विशेष रूप से किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस पूरे मॉडल की मूल समस्या थी फंडिग. लेकिन जैसे ही फंडिंग की समस्या दूर हुई हमने छह महीने में पूरे शहर से कूड़े को साफ कर दिया. जिस जगह कूड़ा फेंका जाता था उसकी कीमत कुछ 400 करोड़ थी जहां अब गोल्फ कोर्स बना दिया गया है.
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फिलहाल इंदौर नगर निगम कूड़े का उपयोग कुछ अलग तरीके से कर रही है. गीले कूड़े को उपयोग मिथेन गैस बनाने में किया जा रहा है जो शहर में चल रही बस में फ्यूल के रूप में उपयोग किया जा रहा है वहीं इससे निकलने वाले खाद को किसानों को दिया जा रहा है जो इसका उपयोग खेती और हॉर्टीकल्चर के रूप में कर रहे हैं. जबकि सूखे कूड़े की रिसाइक्लिंग की जा रही है. सिंह ने कहा,’ हमारा मॉडल को पूरा देश अपनाएगा यह तय है. 100 फीसदी. अब हम पूरे भारत में प्रति एकड़ मॉडल से किराए के मॉडल की ओर बढ़ रहे हैं.
चंडीगढ़ के नगर निगम कमिश्नर कूड़े के रख-रखाव को देखते हुए सिंह से संपर्क में हैं. सिंह बताते हैं कि फिलहाल कूड़ा निपटान के लिए चंडीगढ़ नगर निगम 750 रुपये प्रति क्यूबिक दे रहा है. जो काफी महंगा है. इसलिए वह इंदौर मॉडल में रुचि ले रहे हैं और हमने उनसे अपना टेंडर डॉक्यूमेंट भी शेयर किया है. सिंह ने बताया कि केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय भी इस मॉडल को पूरे देश में लागू किए जाने की ओर बढ़ रहा है.
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