नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) भारत की वर्तमान जलवायु नीतियों से 2020 और 2030 के बीच कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन में लगभग चार अरब टन की कमी आने तथा कोयला आधारित बिजली उत्पादन में 24 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। एक नयी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी।
यह इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि तेजी से विकासशील दक्षिण एशियाई देश, जो अब विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, ने ग्लासगो में आयोजित सीओपी26 में 2030 तक एक अरब टन उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।
दिल्ली स्थित स्वतंत्र विचारक संस्था ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (सीईईडब्ल्यू) द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि भारत के बिजली, आवासीय और परिवहन क्षेत्रों के लिए नीतियों से 2015 और 2020 के बीच पहले ही 44 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड (एमटीसीओ2) की बचत हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार, अकेले बिजली क्षेत्र में, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली नीतियों के कारण 2030 तक कोयला आधारित बिजली उत्पादन में 24 प्रतिशत की गिरावट आने की उम्मीद है, जो कि बिना नीति के परिदृश्य की तुलना में अधिक है।
सीईईडब्ल्यू ने कहा कि यह 80 गीगावाट कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से बचने के बराबर है, जो अन्यथा भारत की बढ़ती बिजली मांग को पूरा करने के लिए स्थापित किए जाते।
वर्तमान में भारत अपनी लगभग 71 प्रतिशत बिजली कोयले से उत्पन्न करता है।
इसके अलावा, रणनीतिक समर्थन और प्रतिस्पर्धी निविदाओं के साथ, भारत के ऊर्जा मिश्रण में संयुक्त सौर और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी 2030 तक 26 प्रतिशत और 2050 तक 43 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है, जो 2015 में केवल तीन प्रतिशत थी।
यह बदलाव कोयले पर निर्भरता को निर्णायक रूप से कम करेगा, जो वर्तमान में देश के कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग आधे का स्रोत है। यह बदलाव भारत के उत्सर्जन वक्र को नीचे की ओर मोड़ने के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन 2070 तक ‘शुद्ध शून्य’ हासिल करने के लिए और भी अधिक महत्वाकांक्षी कार्रवाई की आवश्यकता होगी।
सीईईडब्ल्यू के सीईओ अरुणाभ घोष ने कहा, “भारत ने पिछले दशक में जलवायु के क्षेत्र में जबरदस्त नेतृत्व का प्रदर्शन किया है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार से लेकर नीतियों के माध्यम से ऊर्जा दक्षता और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को आगे बढ़ाना शामिल है। इससे न केवल हमारे ऊर्जा मिश्रण में विविधता आई है और ऊर्जा सुरक्षा दोगुनी हो गई है, बल्कि नए बाजार भी सृजित हुए हैं और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में भी उल्लेखनीय कमी आई है।”
परिवहन क्षेत्र में सीईईडब्ल्यू के अध्ययन के मुताबिक, अनुमानों से पता चलता है कि 2030 तक इलेक्ट्रिक दोपहिया और चार पहिया वाहनों की बिक्री अपने-अपने खंडों में क्रमशः 19 प्रतिशत और 11 प्रतिशत हो सकती हैं। इससे इस दशक में तेल और गैस की मांग में 13 प्रतिशत की कमी आ सकती है।
इसके मुताबिक, 2050 तक, ये आंकड़े दोनों इलेक्ट्रिक वाहनों की श्रेणियों के लिए नाटकीय रूप से बढ़कर 65 प्रतिशत से ऊपर हो जाने की उम्मीद है, जिसके परिणामस्वरूप गैर नीतिगत परिदृश्य की तुलना में इस क्षेत्र की तेल और गैस की मांग में 55 प्रतिशत की कमी आएगी।
भाषा प्रशांत माधव
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