मुंबई, 16 फरवरी (भाषा) भारत के हरित क्षेत्र ने पिछले दशक में सलाना कार्बन उत्सर्जन की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित किया है, लेकिन सूखे जैसी चरम जलवायु घटनाओं के दौरान अवशोषण की दर में गिरावट आई है। एक अध्ययन से यह खुलासा हुआ है।
भोपाल के भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन में वनस्पति की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी बल दिया गया है।
पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और श्वसन के माध्यम से इसे वापस वायुमंडल में छोड़ देते हैं।
‘मैक्स प्लैंक पार्टनर ग्रुप जर्मनी’ की प्रमुख और आईआईएसईआर की पृथ्वी और पर्यावरण विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर धन्यलक्ष्मी पिल्लई ने कहा,‘‘कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण और उत्सर्जन के बीच समग्र संतुलन को शुद्ध पारिस्थितिकी तंत्र विनिमय (एनईई) के रूप में जाना जाता है। जब एनईई सकारात्मक होता है, तो इसका मतलब है कि वनस्पति जितना कार्बन अवशोषित करती है, उससे अधिक उत्सर्जित करती है। और जब यह नकारात्मक होता है, तो यह दर्शाता है कि वनस्पति प्रभावी रूप से कार्बन का भंडारण कर रही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले दशक में भारत के (हरित) पारिस्थितिकी तंत्र ने प्रतिवर्ष उत्सर्जित कार्बन की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित किया है। सलाना एनईई आकलन 38 करोड़ से 53 करोड़ टन कार्बन प्रति वर्ष का है।
अनुसंधानकर्ता और अध्ययन की सह-लेखिका अपर्णा रवि ने कहा कि कार्बन अवशोषण का स्तर प्रभावी रहा है लेकिन जलवायु परिवर्तन की चरम स्थितियों के कारण इसमें गिरावट का रुख सामने आया है।
उन्होंने जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन में वनस्पति की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया।
वैज्ञानिकों ने इस बात का भी अध्ययन किया कि भारत में कैसे विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां सलाना कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में मदद करती हैं।
पिल्लई ने कहा कि भारत में सदाबहार वन प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में अत्यधिक कुशल हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि, मध्य भारत में पर्णपाती वन वायुमंडल में अधिक कार्बन छोड़ते हैं क्योंकि पौधों की श्वसन क्षमता प्राथमिक उत्पादकता से अधिक हो जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘वे (हरी वनस्पतियां) प्रतिवर्ष 21 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जित करती हैं, जो कार्बन स्रोत के रूप में कार्य करती हैं। यद्यपि कृषि भूमि प्रति इकाई क्षेत्र के हिसाब से कार्बन को अवशोषित करने में वनों की तुलना में कम प्रभावी है, लेकिन देश भर में व्यापक कृषि क्षेत्र होने से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने में महत्वपूर्ण लाभ मिलता है।’’
भाषा राजकुमार संतोष
संतोष
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