नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) भारत के कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन में 2025 में 1.4 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, जो पिछले वर्षों की तुलना में धीमी वृद्धि को दर्शाता है। यह बात 130 से अधिक जलवायु वैज्ञानिकों और अनुसंधान संस्थानों के वैश्विक नेटवर्क द्वारा बृहस्पतिवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कही गई।
ब्राजील के बेलेम में आयोजित सीओपी30 में जारी ‘ग्लोबल कार्बन बजट 2025’ रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्सर्जन में कमी का कारण समय से पहले मानसून आना है, जिससे शीतलन सुविधाओं की मांग कम हो गई, तथा नवीकरणीय ऊर्जा में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे कोयले का उपयोग लगभग स्थिर रहा।
इस कमी के बावजूद, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत का उत्सर्जन समग्र रूप से बढ़ता रहेगा।
वैश्विक स्तर पर, जीवाश्म ईंधन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन 2025 में रिकॉर्ड 38.1 अरब टन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2024 के मुकाबले लगभग 1.1 प्रतिशत अधिक है।
चीन के उत्सर्जन में 2025 में लगभग तीन प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, जो मुख्य रूप से निरंतर औद्योगिक गतिविधि और रिकॉर्ड नवीकरणीय ऊर्जा वृद्धि के बावजूद कोयले की खपत में वृद्धि के कारण है।
विश्व के दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक देश अमेरिका में कोयले के उपयोग में कमी और तेल की मांग में कमी के कारण उत्सर्जन में लगभग 2.2 प्रतिशत की गिरावट आने की उम्मीद है।
यूरोपीय संघ के उत्सर्जन में 4.2 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया गया है।
ये चार शीर्ष उत्सर्जक वैश्विक स्तर पर होने वाले जीवाश्म सीओ2 उत्सर्जन के 60 प्रतिशत हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के अनुरूप शेष कार्बन बजट लगभग 170 अरब टन सीओ2 तक गिर गया है, जो वर्तमान स्तर पर उत्सर्जन के मात्र चार वर्ष के बराबर है।
अनुमान है कि अगले वर्ष वायुमंडलीय सीओ2 सांद्रता 425.7 भाग प्रति मिलियन तक बढ़ जाएगी, जो पूर्व-औद्योगिक (1850-1900) स्तर से लगभग 52 प्रतिशत अधिक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती की भूमि और महासागरीय सिंक के माध्यम से सीओ2 को अवशोषित करने की क्षमता कमजोर हो रही है।
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि 1960 के बाद से वायुमंडलीय सीओ2 में लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि जलवायु परिवर्तन के कारण हुई है, जिससे इन प्राकृतिक सिंक की प्रभावशीलता कम हो गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि उपयोग में परिवर्तन, जैसे वनों की कटाई, के कारण होने वाले वैश्विक उत्सर्जन में 2025 में लगभग 4.1 अरब टन सीओ2 की कमी आने का अनुमान है, क्योंकि अल नीनो घटनाक्रम में कमी आएगी।
अध्ययन के प्रमुख लेखक पियरे फ्राइडलिंगस्टीन ने कहा कि सीओ2 उत्सर्जन में अब भी वृद्धि हो रही है, इसलिए वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना ‘‘अब संभव नहीं है’’।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 35 देशों ने 2015 से 2024 के बीच अपनी अर्थव्यवस्थाओं का विस्तार करते हुए उत्सर्जन कम करने में सफलता प्राप्त की है, जो एक दशक पहले की तुलना में दोगुना है।
भाषा नेत्रपाल मनीषा
मनीषा
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.
