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Saturday, 7 December, 2024
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खेल महाकुंभ- ग्रामीण भारत के युवाओं का IPL, जो युवा महिलाओं के सपनों को दे रहा उड़ान

खेलो इंडिया के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें मुख्यधारा के मीडिया द्वारा किनारे किए गए खेलों को शामिल और हाइलाइट किया गया है. इसने अद्वितीय भारतीय खेलों को सामने लाया है, जो सराहनीय है.

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जब भी खेलों की बात होती है तो भारत में प्रतिभा कमी नहीं मिलती लेकिन अपना टैलेंट दिखाने वाले प्लेटफॉर्म्स की कमी दिखती है. जब मैं छोटी थी तो मेरी भी बहुत से सपने थे, लेकिन मैं समझती थी कि बिना किसी प्लेटफॉर्म के वो सिर्फ सपने ही रह जाएंगे. अब मैं देखती हूं कि खेलो इंडिया के तहत आने वाले खेल महाकुंभ जैसी पहले किस तरह ग्राउंड लेवल पर बदलाव ला रही हैं.

साल 2018 में, खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश में जमीनी स्तर पर खेलों को बढ़ावा देने के लिए और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए हिमाचल प्रदेश में खेल महाकुंभ की शुरुआत की. लेकिन तब से इसका विस्तार बिहार, उत्तर प्रदेश, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के गांवों तक हो गया है. इस विषय पर मेरी रिसर्च से पता चला कि कम से कम 200 सांसद अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में इस ‘खेल महाकुंभ’ का आयोजन कर रहे थे.

लो-मिडल क्लास परिवारों से आने वाली छोटी बच्चियों के सपनों को इस तरह के मंचों से उड़ान मिलती हैं. हम जैसे घरों से आने वाले बच्चों के लिए स्कॉलरशिप इतना आसानी से नहीं आती हैं. और हमें उन अवसरों का फायदा उठाने के लिए दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है जिनके हम हकदार हैं. ये संघर्ष और कड़े तब हो जाते हैं जब खेल जैसे पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों की बात आती है. कई लोगों के लिए, दंगल (कुश्ती) प्रेरणादायक हो सकता है, लेकिन लड़कियों के लिए, उनके माता-पिता का संघर्ष- यहां तक ​​कि फिल्म दंगल (2016) में भी- उन्हें उनके सपनों से दूर करने के लिए काफी है.

‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं’ के बाद नरेंद्र मोदी सरकार खेल महाकुंभ और खेलो इंडिया जैसी पहलों के साथ कदम आगे बढ़ा रही है. पिछले महीने, गुजरात और बिहार की अपनी रिपोर्टिंग यात्रा के दौरान, मैंने युवा खिलाड़ियों में इस अवसर का अधिकतम लाभ उठाने की ललक देखी.

15 साल की माला जिसके पास दौड़ने के लिए रनिंग ट्रैक सूट भी नहीं है, मुझसे कहती हैं,

“मुझे दौड़ना पसंद है, लेकिन मेरे माता-पिता सपोर्ट नहीं करते थे. जब स्कूल में किसी ने मुझे ‘खेल महाकुंभ’ के बारे में बताया तो मैंने अपने परिवार से कहा कि मैं भी इसमें भाग लूंगी. कुछ मशक्कत के बाद, मेरे पिता मान गए.”

माला बिहार के रामनगर की रहने वाली हैं. उनका सपना है कि वो एक स्प्रिंटर बनें.लेकिन बिना मार्गदर्शन और समर्थन के अपने सपने को आगे नहीं बढ़ा सकती. माला जैसी युवा लड़कियों को अक्सर स्कूल की प्रतियोगिताओं में पीछे छोड़ दिया जाता है, जहां आमतौर पर प्रशासन महिलाओं को उनकी पसंद का खेल चुनने में मदद नहीं करता है.

फरवरी में, बिहार के दानापुर की ख़ुशी कुमारी ने भारोत्तोलन में खेलो इंडिया का स्वर्ण पदक जीता और उन्हें पुरस्कार राशि के रूप में 10,000 रुपये दिए गए. कुमारी ने जूते खरीदने की अपनी लंबे समय से चली आ रही इच्छा को पूरा करने के लिए इनका इस्तेमाल किया. एक फल बेचने वाले की बेटी, अपने दोस्तों से उधार लिए गए जूतों में दौड़ती थी. लेकिन यह पहली बार नहीं था जब उसने खेलो इंडिया प्रतियोगिता में भाग लिया था – कुमारी ने पिछले साल इंदौर में खेलो इंडिया प्रतियोगिता में भी भाग लिया था, जहां वह चौथे स्थान पर रही थी.

बिहार में- जहां राजनीतिक बहस अक्सर बुनियादी सुविधाओं पर अटकी रहती है-नीतीश कुमार सरकार 33 जिलों में खेलो इंडिया केंद्र खोलने की योजना बना रही है. यहां युवा खिलाड़ियों को बेहतर ट्रेनिंग के लिए उपकरण मिलेंगे. इसके अलावा, प्रत्येक केंद्र को सुविधाएं बनाए रखने के लिए सालाना 5 लाख रुपये दिए जाएंगे.

मेरा बचपन दिल्ली सटे नजफगढ़ में बीता. दिल्ली के पास होने के बावजूद, मैंने देखा कि इलाके की ज्यादातर युवा महिलाओं के लिए राजधानी दिल्ली एक दूर का सपना है. अब कश्मीर और लद्दाख के सुदूर क्षेत्रों की महिला खिलाड़ियों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने और अपनी स्थिति बेहतर करने का अवसर मिल रहा है. कम से कम कहने के लिए, इस विकास को देखना उत्साहजनक है.

7 साल की उम्र में, मैंने अपने परिवार को गुज़ारे के लिए संघर्ष करते देखा. हमारे लिए सपने बस नींद में ही देखे जाते थे – इनके सच होने की कोई संभावना नहीं थी. हम जीवन की कल्पना या उन महत्वाकांक्षाओं के बारे में नहीं जानते थे जिन्हें लोग प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि मेरे लिए इस तरह के रास्ते खुलेंगे. “वो लोग और होते हैं, जिनको वो मौके मिलते हैं,” मैंने अक्सर खुद से कहती थी. और फिर, जैसे-जैसे भारत धीरे-धीरे इंटरनेट युग में आगे बढ़ा, मुझे एक पत्रकार बनने का मौका मिला – और उस पर भी एक अंग्रेजी पत्रकार. अब, मैं “वो लोग जो और होते हैं” क्लब का हिस्सा हूं. और इस तरह मैंने एक प्लेटफॉर्म प्राप्त करने की शक्ति को समझा.

गुजरात, हरियाणा, यूपी, बिहार और झारखंड के भीतरी इलाकों से रिपोर्ट करते समय, मैंने ग्रामीण इलाकों में युवाओं के लिए उपलब्ध प्लेटफॉर्म की तलाश की. और तभी मैंने खेल महाकुंभ के बारे में जाना, भारत के ग्रामीण युवाओं, विशेषकर इसकी युवा महिलाओं के सपनों का यह इंडियन प्रीमियर लीग है.

इस वर्ष महिला दिवस पर शुरू किए गए एक टूर्नामेंट खेलो इंडिया दस का दम में, पूरे भारत में 10 क्षेत्रों में 10 विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया. ये प्रतियोगिताएं 31 मार्च तक आयोजित की जाएंगी और इसमें 15,000 महिलाओं की भागीदारी देखने को मिलेगी.

खेलो इंडिया के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें मुख्यधारा के मीडिया द्वारा किनारे किए गए खेलों को शामिल और हाइलाइट किया गया है. इसने अद्वितीय भारतीय खेलों को सामने लाया है, जो सराहनीय है.

2020 में, जब खेलो इंडिया यूथ गेम्स असम के गुवाहाटी में आयोजित किए गए थे, तो इसमें 20 खेल थे. पांच और खेल – गतका, कलारिपयट्टू, थंग-टा, मल्लखंब और योग आसन – को 2021 में कार्यक्रम में जोड़ा गया, जिससे सूची में खेल 25 हो गए. 2022 में, पानी के खेल – कैनोइंग, कयाकिंग और रोइंग – को सूची में जोड़ा गया इसके बाद संख्या 27 हो गई.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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