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Sunday, 22 December, 2024
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दक्षिण कोरिया में दुनिया की सबसे बड़ी खगोल विज्ञान की बैठक में भारतीय छात्रों ने जीते 4 पुरस्कार

यह पहली बार है जब भारतीय पीएचडी छात्रों ने इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन की जनरल असेंबली में पुरस्कार जीते हैं. ये सभी पुरस्कार सौर अनुसंधान से संबंधित विषयों पर काम करने के लिए जीते गए.

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बेंगलुरु: भारतीय भौतिकविदों और खगोलविदों ने दक्षिण कोरिया में 2018 के बाद पहली बार आयोजित अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन-आईएयू) कार्यक्रम में शानदार प्रदर्शन किया.

आईएयू की महासभा, जो दुनिया की सबसे बड़ी खगोल विज्ञान बैठक है, इस साल 2 से 11 अगस्त के बीच बुसान में आयोजित हुई थी.

इस कार्यक्रम में न केवल भारतीय अंतरिक्ष परियोजनाओं को प्रदर्शित करने वाला एक पवेलियन था, बल्कि पीएचडी थीसिस के लिए दिए जा रहे पुरस्कारों में से ओस्लो के एक विश्वविद्यालय के एक छात्र सहित भारतीय शोधकर्ताओं ने चार पुरस्कार भी जीते.

यह पहली बार है जब भारतीय पीएचडी छात्रों ने हर तीन साल में आयोजित होने वाली आईएयू महासभा में पुरस्कार जीते हैं. जहां तीन भारतीयों ने ‘पीएचडी एट-लार्ज’ पुरस्कार जीता, वहीं चौथे को ‘डिवीजन ई (सन एंड हेलिओस्फीयर)’ में पीएचडी पुरस्कार मिला. कोविड महामारी के कारण इस कार्यक्रम के आयोजन में एक साल की देरी हुई.

2019 के लिए पीएचडी एट-लार्ज पुरस्कार जीतने के बारे में बात करते हुए प्रान्तिका भौमिक ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं हैरान होने के साथ-साथ बेहद प्रसन्न भी थी. यह एक तरह से, वह सर्वोच्च मान्यता जो कोई भी युवा खगोलविद अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद अंतरराष्ट्रीय शोध समुदाय की तरफ से प्राप्त करने की उम्मीद कर सकता है.’

आईएयू पीएचडी पुरस्कार पहली बार 2016 में स्थापित किए गए थे. मौलिक खगोल विज्ञान (फंडामेंटल एस्ट्रोनॉमी), जैव खगोल विज्ञान (बायोएस्ट्रोनॉमी), उच्च ऊर्जा घटना (हाई एनर्जी फिनामिना) से लेकर खगोल भौतिकी शिक्षा (एस्ट्रोफिजिक्स एजुकेशन) तक के लिए इन पुरस्कारों की 10 श्रेणियां हैं.

प्रत्येक पुरस्कार समारोह में, खगोल भौतिकी में पीएचडी एट-लार्ज पुरस्कार, जो इन डिवीजनों से परे हैं, भी दिया जाता है.

विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा प्रत्येक श्रेणी के लिए पुरस्कारों का चयन शोध के लिए आमंत्रित विषयों में से किया जाता है.

पुरस्कार के लिए थीसिस का विषय एक ऑनलाइन आवेदन पत्र का उपयोग करके मंगाए जाते हैं, जो उम्मीदवार अपने काम के बारे में भरते हैं, और उनके संस्थान के प्रतिनिधि उसके लिए रिफरेन्स (संदर्भ) प्रदान करते हैं.

पुरस्कार प्राप्त करने वाले सभी चार भारतीयों ने अपने-अपने शोध कार्य को मौखिक प्रस्तुतियों के रूप में भी पेश किया.


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सौर अनुसंधान के लिए पुरस्कार

भारतीय विद्वानों द्वारा जीते गए सभी पुरस्कार सौर अनुसंधान से संबंधित विषयों के लिए थे. भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के गोपाल हाजरा ने सौर चुंबकीय क्षेत्र के व्यवहार और इसकी सतह पर प्लाज्मा के मेरिडियन (उत्तर-से-दक्षिण) प्रवाह को 3 डी मॉडल के माध्यम से समझने से संबंधित अपने कार्य के लिए 2018 का पीएचडी एट-लार्ज पुरस्कार जीता.

प्रांतिका भौमिक, जो पहले भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, कोलकाता में अंतरिक्ष विज्ञान के उत्कृष्टता केंद्र (एक्सीलेंस सेंटर) से जुड़ी थीं, ने साल 2019 में भविष्य की सौर गतिविधि के कम्प्यूटेशनल मॉडल पर अपने काम के लिए पीएचडी एट-लार्ज पुरस्कार जीता.

कुमाऊं विश्वविद्यालय और आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज, नैनीताल की रीतिका जोशी ने सूर्य के क्रोमोस्फीयर (दिखने वाली सतह के ऊपर मौजूद वायुमंडलीय परत) में प्लाज्मा जेट और अन्य प्रकार की ऊर्जा फ्लेयर्स के अवलोकन पर अपने कार्य के लिए साल 2021 के लिए यह पुरस्कार जीता.

उसी वर्ष, सौविक बोस, जिन्होंने बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स से एम.टेक और ओस्लो विश्वविद्यालय से पीएचडी किया है, ने स्पिक्यूल्स या छोटे जेट – जो पूरे सूर्य में हर जगह ऊर्जा प्रवाहित करते हैं और बाहरी वायुमंडलीय परतों को ऊर्जावान बनाते हैं – पर अपने काम के लिए डिवीजन ई सन और हेलियोस्फीयर पीएचडी पुरस्कार जीता.

भारत पवेलियन में प्रदर्शित टेलीस्कोप, विज्ञान मिशन

एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई) की सार्वजनिक पहुंच और शिक्षा समिति के अध्यक्ष दिब्येंदु नंदी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि एएसआई ने अपने 50 साल के इतिहास में पहली बार आईएयू महासभा में देश की प्रमुख खगोल विज्ञान सुविधाओं को प्रदर्शित करने वाले एक भारतीय पवेलियन की स्थापना की.

भारतीय खगोलीय सुविधाएं जैसे विशालकाय मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (पुणे), भारतीय खगोलीय वेधशाला (हनले), देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (नैनीताल), और कोडाईकनाल और उदयपुर स्थित सौर वेधशालाओं को इस भारतीय पवेलियन में प्रदर्शित किया गया.

चंद्रयान, एस्ट्रोसैट, और आदित्य-एल1 जैसे विज्ञान मिशनों को भी प्रदर्शित किया गया था. साथ ही. लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (अमेरिका, इटली और भारत में फैली हुई), आगे आने वाली थर्टी मीटर टेलीस्कोप (हवाई), और स्क्वायर किलोमीटर ऐरे (ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में) जैसे वृहत्काय भौतिकी परियोजनाओं में भारत के योगदान को भी प्रदर्शित किया गया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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